बसो मेरे नैनन में नंदलाल पद की व्याख्या
प्रसंग
बसो मेरे नैनन में नंदलाल पद राजस्थान की सुविख्यात कृष्ण भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है।
संदर्भ
इस पद में मीरांबाई श्री कृष्ण के मनमोहक रूप का चित्रण करते हुए उनसे अपने नेत्रों में बस जाने का मधुर निवेदन कर रही हैं।
व्याख्या
मीरां श्री कृष्ण को नंदलाल (नंद के लाल या पुत्र) कहकर संबोधित करते हुए उनसे अपनी आंखों में बस जाने की अभिलाषा व्यक्त कर रही हैं। मीरां कृष्ण के चित्ताकर्षक रूप की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि उनकी सांवली सूरत है, मन को मोहने वाला व्यक्तित्व है और उनकी आंखें बड़ी-बड़ी हैं। श्री कृष्ण के अधरों पर अमृत रस बरसाने वाली मुरली सुशोभित हो रही है और हृदय पर वैजयंती पुष्पों की माला सज रही (जंच रही) है। श्री कृष्ण की कमर पर छोटी-छोटी घंटियों वाली करधनी शोभायमान है। उनके पैरों में घुंघरू बंधे हैं जो अत्यंत मधुर ध्वनि करते हैं।
मीरां कहती हैं कि उनके प्रभु श्री कृष्ण संतों को सुख देने वाले हैं और भक्तों के लिए शरणागत वत्सल हैं।
विशेष
1.मीरांबाई का यह पद सूर के कृष्ण की बाल छवि का वर्णन करने वाले पदों से मेल खाता है।
2.इस पद में उनका चित्रण कृष्ण भक्त के भाव विभोर हृदय द्वारा अपने इष्ट के मनोहर बाल रूप का चित्रण है। इससे इस पद में दांपत्य भाव की भक्ति की जगह नवधा भक्ति प्रतीत होती है।
3.अंतिम पंक्ति में श्री कृष्ण के बाल रूप के स्थान पर उसे सर्वशक्तिमान रूप का पुनर्चित्रण किया गया है, जो अपने भक्तों की हर प्रकार से सहायता करता है तथा संतो को आनंद प्रदान करता है।
4.अंत्यानुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
5.माधुर्य गुण और वैदर्भी रीति है।
6.गेय मुक्तक पद है।
7.राजस्थानी भाषा का सौंदर्य व्याप्त है।
8.भक्ति रस की उद्भावना हुई है।
9.शैली वर्णनात्मक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
इसी प्रकार मीरांबाई के एक अन्य पद मन रे परसि हरि के चरण की व्याख्या हेतु नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें..
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