मधुकर स्याम हमारे चोर पद की व्याख्या
प्रसंग
आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित ‘भ्रमरगीत सार’ से उद्धृत पद मधुकर स्याम हमारे चोर कृष्ण भक्ति शाखा के प्रधानतम कवि सूरदास जी द्वारा रचित “सूरसागर” के “भ्रमरगीत” प्रसंग से लिया गया है।
संदर्भ
मधुकर स्याम हमारे चोर पद में मधुकर अर्थात भँवरा शब्द उद्धवजी के लिए प्रयुक्त करते हुए गोपियां श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने का उन्हें उलाहना दे रही हैं।
व्याख्या
गोपियां उद्धव जी को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे मधुकर (उन्हें भंवरा क्यों कहती हैं गोपियां यह सुप्रसिद्ध कटाक्ष है उद्धव के प्रति) श्याम अर्थात कृष्ण उनके चोर हैं।
औरों के लिए राजा कृष्ण गोपियों के लिए चोर हैं। उन्होंने अपनी चित्ताकर्षक सांवली सूरत से उनके मन का हरण कर लिया और आंखों की चंचल चितवन से उनका चित्त अपनी ओर आकर्षित कर लिया।
गोपियां उद्धव जी से कहती हैं कि उन्होंने प्रेम और प्रीति के जोर से श्रीकृष्ण को अपने हृदय में छुपा कर अतल अनंत में बसा लिया था। इतने प्रेम से हृदय में बसाने के बावजूद भी श्रीकृष्ण उन्हें झांसा देकर वहां से निकल कर मथुरा गमन कर गए। हल्की हंसी से मन लुभाकर अथवा गले में हंसली डालकर श्री कृष्ण उन्हें बहलाकर छोड़कर चले गए। अर्थात वह तो गोपियों से भी बड़े चोर निकले।
गोपियाँ कहती हैं कि रात की नींद में वह उचक कर जाग रही थीं। यानी नींद में यादों और डर के झलकोरे ले रही थीं और सुबह आँखें खुलती ही सामने उनके दूत (उद्धव जी) खड़े दिखाई दे रहे हैं।
सूरदास जी लिखते हैं कि गोपियाँ उद्धव जी से अफसोस व दुख के साथ शिकायत करती हैं कि कृष्ण अपनी मीठी मुस्कान से उनका सर्वस्व चुरा कर ले गए। मनुष्य प्रेम में जिसे हृदय में स्थान देता है उसके जाने के बाद एकाएक रिक्त हस्त रह जाता है और स्वयं को ठगा सा पता है।
विशेष
1.गोपियां श्री कृष्ण के प्रेम में किस प्रकार स्वयं को विस्मृत कर उन्हें प्राथमिकता देती हैं, यह इस पद से ज्ञात होता है।
2.श्री कृष्ण का मथुरा जाना उनकी नज़रों में श्री कृष्ण की क्रूर चतुराई है।
3.उद्धवजी को मधुकर कहना उनके वर्ण और स्वभाव के अनुरूप पुराण प्रसिद्ध है।
3.अंत्यानुप्रास अलंकार का प्रयोग दर्शनीय है।
4.शैली व्यंग्यात्मक है।
5.ब्रजभाषा का प्रयोग अत्यंत कुशलतापूर्वक किया गया है।
6.उपालंभ व भक्ति रस का मिश्रित प्रयोग है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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