भारतेंदु युग की विशेषताएँ
हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इस युग में आकर साहित्य के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों का वाहक सबसे पहले भारतेंदु युग बना क्योंकि आधुनिक काल का पहला उपभेद भारतेंदु युग है। दूसरे शब्दों में भारतेंदु युग को आधुनिक काल का प्रवेश-द्वार कहा जा सकता है। आधुनिक काल की सबसे बड़ी बात साहित्य को राज दरबारों से उठाकर जनता से जोड़ने का कार्य है जो सबसे पहले भारतेंदु युग में किया गया। भारतेंदु युग की विशेषताएँ निम्न बिंदुओं के माध्यम से रेखांकित की जा सकती हैं-
1. गद्य के लिए खड़ी बोली की स्वीकृति-
भारतेंदु युग में आकर ब्रजभाषा का वर्चस्व कम हो गया। हालांकि पद्य के लिए अभी भी ब्रजभाषा का प्रचलन जारी था, लेकिन गद्य के लिए खड़ी बोली को अपना लिया गया। यह उस समय का एक बहुत बड़ा परिवर्तन माना जाता है।
2. भाषा का मनमाना प्रयोग-
खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग अपना तो लिया गया लेकिन उसके प्रयोग में एकरूपता (समानता) अथवा व्याकरण सम्मतता का अभाव था। एक ही शब्द को एक रचनाकार स्त्रीलिंग के रूप में प्रयोग कर रहा है तो दूसरा पुल्लिंग के रूप में। शब्दों की वर्तनी को लेकर भी एक मत नहीं था।
3. हिंदी प्रचार प्रसार के लिए मिशन भाव-
यद्यपि इस युग के साहित्यकारों में भाषागत कुछ खामियां थी परंतु हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए वे सभी एकमत से तत्पर थे। इसके लिए इन्होंने इलाहाबाद,आगरा,लखनऊ, कानपुर इत्यादि शहरों में हिंदी सेवा संस्थान खोले। विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन एवं पुरस्कार वितरण के माध्यम से हिंदी को आगे बढ़ाया।
4. औसत काव्य रचना-
इस बात को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे उसे युग में स्तरहीन साहित्य रचा गया। लेकिन यह कहना पूर्णतया ग़लत होगा। दरअसल उन्होंने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए समस्या पूर्ति,चित्र पहेली, वर्ग पहेली और कविता प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई,जो परिपक्व साहित्य में बचकानी समझी जाती हैं। इस प्रकार इस औसत काव्य रचना के पीछे एक बड़ा उद्देश्य था।
5. पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन-
भारतेंदु युग पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की दृष्टि से अत्यंत उर्वर युग था। इस युग में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘कवि वचन सुधा’ और ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। आठ अंकों के बाद ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का नाम बदलकर ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ रख दिया गया। इस युग में ‘ब्राह्मण’,’नागरी’ ‘नीरद’, ‘आनंद कदंबिनी’ जैसी अन्य पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हुआ।
6. गद्य की विविध विधाओं का विकास-
आधुनिक काल का दूसरा नाम गद्य काल है। आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेन्दु युग से माना जाता है। इस तरह एक प्रकार से भारतेन्दु युग गद्य की अनेक विधाओं के प्रारंभ का साक्षी बना। हिंदी की पहली कहानी ‘इंदुमती’, हिंदी का पहला उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’, प्रथम नाटक ‘भारतेंदु के नाटक’, व निबंध,आलोचना इत्यादि अनेक गद्य विधाओं का विकास इस युग की देन है।
7. समाज सुधार की प्रवृत्ति-
साहित्य का समाज के साथ संबंध भारतेंदु युग की एक अभूतपूर्व विशेषता है। इस युग में आकर पहली बार साहित्य में राजा-महाराजाओं, युद्धों,मंदिरों और स्वर्ग-नरक के बजाय समाज की वास्तविक समस्याओं यथा-बाल विवाह,विधवा विवाह निषेध,परतंत्रता,भुखमरी,गरीबी, नशाखोरी,अंधविश्वास, जाति और लिंगगत भेदभाव इत्यादि समस्याओं का साहित्य के माध्यम से चित्रण किया गया।
8. हास्य व्यंग्य की प्रवृत्ति-
इस युग के कवियों के लेखन में एक प्रकार की ताजगी के दर्शन होते हैं। कुंठा-रहित और हास्य व्यंग्य युक्त लेखन के लिए भारतेंदु युग जाना जाता है।रचनाओं के शीर्षक भी (दांत, भौं, पेट इत्यादि) उस युग के कवियों की हास्य-व्यंग्य की प्रवृत्ति पर मुहर लगा देते हैं।
9. प्राचीन काव्य रूपों का सृजन-
भारतेंदु युग में उन काव्य शैलियों को पुनर्जीवन मिला,जो कुछ समय से लेखन से अदृश्य थीं। खड़ी बोली के प्रथम साहित्यकार अमीर खुसरो की प्रमुख काव्य शैलियां-मुकरी,पहेली, दादरा और गज़ल इत्यादि को भारतेंदु युग के काव्य में पुनः देखा जा सकता है।
10. राज्याश्रय की प्रवृत्ति-
यह कथन भारतेंदु युग के लिए आक्षेप की तरह लगाया जाता है।भारतेंदु के काव्य में कई जगहों पर ब्रिटिश राज की प्रशंसा देखी जा सकती है। लेकिन गहराई से देखें तो यहां उन्होंने कुछ चतुराई से कम लिया है। ब्रिटिश हुकूमत का खुला विरोध करने से उनको कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने सीधी बुराई करने के बजाय उनकी प्रगतिवादी सोच से भारत की परंपरागत सोच की तुलना की तो उनका लेखन कार्य निर्विरोध चल सका।
इस बात को भारतेंदु के नाटक ‘भारत दुर्दशा’ को पढ़कर समझा जा सकता है,जहां उन्होंने भारतीयों की बाल-विवाह,छुआ-छूत, नशाखोरी,अंधविश्वास इत्यादि बुराइयों को दूर करने एवं उच्च शिक्षा,बीमारी में दवा एवं सही उम्र में विवाह के लिए अंग्रेजों का उदाहरण दिया। इससे पहले अंग्रेजों की कटु आलोचना करने से उनको कागज एवं छापे खाने का परमिट मिलना बंद हो गया था।
11. रीति की क्षीण प्रवृत्ति-
हालांकि भारतेंदु युग आधुनिक काल का काव्य माना जाता है तथापि उसके ठीक पहले रीतिकाल होने से उसमें भी रीतिकाल की प्रवृत्तियों के कुछ अंश पाए जाते हैं।भारतेंदु युग में भी स्वयं भारतेंदु समेत कइयों ने नायक-नायिका भेद,रसों का विवेचन और अलंकारों की विवेचना की है।
12. भक्ति पदों का सृजन-
भारतेंदु युग में कई कवियों ने भक्ति के सरल-सुंदर पदों की रचना की। भारतेंदु द्वारा रचित भक्ति के पद काशी में मंदिरों में प्रातः कालीन आरती में गाए भी जाते थे। ठाकुर जगमोहन सिंह एवं हरिऔध ने सुंदर भक्ति गीतों की रचना की।
13. छंदों एवं अलंकारों का पारंपरिक एवं नवीन प्रयोग-
भारतेंदु युग में रीतिकाल के प्रभावस्वरूप जहां प्राचीन छंदों और अलंकारों का प्रयोग हो रहा था,वहीं इस प्रयोग में नवीनता के दर्शन भी होते हैं। भारतेंदु ने प्राचीन दोहा,चौपाई, कवित्त,ठुमरी,कहरवा,चैती,श्रद्धा, लावणी इत्यादि छंदों के प्रयोग पर बल दिया।अलंकारों में उपमा,रूपक, दीपक,अनुप्रास,यमक,उत्प्रेक्षा इत्यादि शब्दालंकार एवं अर्थालंकार का सुंदर सहज प्रयोग दृष्टिगोचर होता है।
इस प्रकार साहित्य को खड़ी बोली से जोड़ना,उसे समाज से संबंधित करना, पत्र-पत्रिकाओं एवं गद्य-विधाओं का सृजन करके साहित्य में नए युग के आगमन की सूचना देना भारतेंदु युग की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
© डॉ. संजू सदानीरा
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