छायावाद की विशेषताएं : Chhayawad ki visheshtayen
छायावाद की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
I.सौन्दर्य के विभिन्न आयाम-
1)स्त्री सौंदर्य-
छायावादी काव्य में स्त्री-सौंदर्य का चित्रण अत्यंत भाव प्रवण तरीकों से किया गया है। न तो इस युग में रीतिकालीन ऊहात्मकता देखी जा सकती है और न ही द्विवेदीयुगीन वर्णनात्मकता।स्त्री-सौंदर्य के चित्रण में छायावाद में प्रकृति के अनुपम रूप और नूतन शैली का प्रयोग किया गया है।
उदाहरण-
नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ वन बीच गुलाबी रंग।
2) पुरुष सौंदर्य-
छायावादी युग में पुरुष- सौन्दर्य का भी चित्रण देखने को मिलता है जो कि अपने आप में एक नया प्रयोग था। उदाहरण-
अवयव की दृढ़ मांसपेशियां
ऊर्जस्वित था वीर्य अपार
स्फीत शिराएं स्वस्थ रक्त का
होता था जिसमें संचार।
3) प्रकृति सौंदर्य-
प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्रण करना और उसके अनछुए रूपों से पाठकों का परिचय करवाना छायावाद की प्रमुख विशेषताएं मानी जाती है। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत को तो प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एवं महादेवी वर्मा के काव्य में भी प्रकृति अपनी पूरी साज-सज्जा के साथ दृष्टिगोचर होती है।
उदाहरण-
छोड़ द्रुमों की चंचल छाया
तोड़ प्रकृति से मोह माया
बाले! तेरे बाल-जाल में
कैसे उलझा दूं लोचन
छोड़ अभी से इस जग को?
II. वेदनानुभूति-
छायावादी काव्य में वेदना की अनुभूति अथवा दुख के स्वर को अत्यंत गहराई के साथ अभिव्यक्ति मिली है। इसके पहले किसी काव्य में मानव मन की वेदना को इस तीक्ष्णता के साथ वाणी नहीं मिली थी।
उदाहरण-
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं और जो नहीं कही!
III. वैयक्तिकता-
इसके कवियों ने अपने वैयक्तिक सुख-दुख और जीवनानुभवों का मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी चित्रण अपने काव्य के माध्यम से किया है। दुखद है कि छायावाद के चारों आधारस्तंभ कवियों का व्यक्तिगत जीवन संघर्षयुक्त एवं घटनाओं के उतार-चढ़ाव से भरा था। जीवनसाथी का लघु साथ (प्रसाद एवं निराला) या साथी का अभाव (पंत एवं महादेवी) इन कवियों के जीवन पथ को एकांत युक्त एवं बोझिल बना रहा था। इसके साथ ही आर्थिक एवं सामाजिक रूप से भी कई मसले थे, जिनकी व्यथा उनके काव्य में व्यंजित हुई है।
उदाहरण-
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी आई
दुर्दिन में आंसू बनकर
वह आज बरसने आई।
-जयशंकर प्रसाद
मैं नीर भरी दुख की बदली – महादेवी वर्मा
IV. स्त्री के प्रति समानता का भाव-
छायावाद के सभी कवियों ने स्त्री को किसी भी रूप में कमतर नहीं माना है। इन कवियों की दृष्टि में स्त्री सम्मान एवं समानता की हकदार है।
उदाहरण-
योनि नहीं है रे नारी!
वह भी है मानवी प्रतिष्ठित – पंत
V. स्त्री के प्रति सखी भाव-
छायावादी कवियों ने स्त्री के प्रति सम्मान एवम् समानता तो रखी ही है, उससे आगे बढ़कर इनके बीच सखी भाव की संभावना एवं आशा भी की है। महादेवी के साथ निराला एवं पंत के अत्यंत पारिवारिक एवं आत्मीय संबंध थे। ये कवि मानते थे कि स्त्री पुरुष के बीच पति-पत्नी, भाई-बहन के अतिरिक्त मित्रता का संबंध भी हो सकता है,जो कलुषता से परे,पूर्ण स्वस्थ हो सकता है।
VI. सांस्कृतिक वैभव का गान (देश-प्रेम की भावना) –
इस युग के कवियों ने सिर्फ व्यक्तिगत सुख दुखों का गान ही नहीं किया, बल्कि अपने देश के सांस्कृतिक एवं भौगोलिक वैभव तथा सुषमा को भी अपने काव्य के माध्यम से दर्शाया है। इन्होंने वसुदेव कुटुंबकम,परदुखकातरता, शौर्य,उदारता का चित्रण भी अपने काव्य के माध्यम से किया है। उदाहरण-
अरुण यह मधुमेह देश हमारा
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा -प्रसाद
पेशोला की प्रतिध्वनि -प्रसाद
VII. प्रकृति का मानवीकरण-
छायावादी कवियों की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विशेषता रही है-प्रकृति का मानवीकरण। महादेवी ने तो छायावाद को परिभाषित करते हुए भी इसी बात को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इस युग में प्रकृति उनके साथ मनुष्य के समान हंसी,रोई,रूठी,मुरझाई और खिलखिलाई है। यह इस युग की एक उल्लेखनीय विशेषता है।
उदाहरण-
सिंधु सेज पर धरा वधू अब
तनिक संकुचित बैठी- सी
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में
मान किये सी ऐंठी सी-प्रसाद
VIII. दार्शनिकता-
साहित्य में दर्शन ने हमेशा ही अपनी जगह बनाई है। मार्क्सवाद, अस्तित्ववाद,प्रत्यभिज्ञा दर्शन, गांधीवाद,अद्वैतवाद इत्यादि अलग-अलग समय में अलग-अलग काव्य में परिलक्षित होते रहे हैं। छायावादी कवियों में भी दर्शन की विभिन्न भावभूमि एवं शाखाएं देखी जा सकती हैं।
प्रसाद जी का रुझान जहां प्रत्यभिज्ञा दर्शन (शैव दर्शन) की तरफ हो गया था,वहीं निराला जी अद्वैतवाद और कहीं-कहीं मार्क्सवाद से प्रभावित थे। पंत का रुझान अरविंद दर्शन, गांधी दर्शन और मार्क्सवाद की तरफ था तो वहीं महादेवी के काव्य में सर्वात्मवाद, रहस्यवाद और आध्यात्मिकता गहराई से देखी जा सकती है।
IX. स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह-
द्विवेदी युग तक काव्य में वर्णन प्रधानता देखी जाती है। छायावाद के काव्य में भावों के सूक्ष्म अंकन (वर्णन की जगह चित्रण)का प्रचलन सर्वप्रथम प्रारंभ हुआ।इस प्रकार वर्णन के बजाय भाव प्रवण चित्रण छायावादी कवियों की अन्यतम विशेषता है।
उदाहरण-
वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरु की छूटी हुई लता-सी दीन
दलित भारत की ही विधवा है।-निराला
X. प्रेम के प्रगाढ़ रूप का चित्रण-
छायावादी कवियों का प्रणय-चित्रण और प्रेम-निवेदन दोनों ही हृदय की पूरी तरलता के साथ चित्रित हुआ है। छायावादी कवियों का प्रेमांकन भावुक और स्निग्धहृदय पाठकों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण तो है ही,अपनी उच्च भावभूमि के कारण साहित्य के क्षेत्र में भी प्रतिष्ठा रखता है।
उदाहरण-
तुम्हारे छूने में था प्राण
संग में पवन गंगा स्नान
तुम्हारी वाणी में कल्याणी
त्रिवेणी की लहरों का गान। – पंत
XI. रहस्यवाद-
रहस्यवाद छायावादी कविता की एक और बड़ी विशेषता है। कबीर के रहस्यवाद के बाद छायावाद में एक बार फिर रहस्यवाद अपने नवीन रूप में दृष्टिगोचर होता है। जिज्ञासा भी इस काव्य की एक विशेषता है।
यह छायावाद की प्रमुख विशेषताएं कवियों में सर्वाधिक महादेवी के काव्य में देखी जा सकती हैं। एक अज्ञात,अनंत, अनिर्वचनीय सत्ता के प्रति, प्रकृति के प्रति, सृष्टि के प्रति प्रश्नातुर होना रहस्यवाद एवं जिज्ञासा के अंतर्गत आता है।
उदाहरण-
कौन तुम मेरे हृदय में
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ फिर झरता अपरिमित
स्वर्ण सपनों का चितेरा
नींद के सूने निलय में
कौन तुम मेरे हृदय में।- महादेवी वर्मा
XII. लाक्षणिक पदावली-
छायावादी कवियों ने अपने काव्य में वर्णन-शैली के साथ-साथ अभिधा को भी नकारा है। चित्रात्मकता के साथ-साथ लाक्षणिकता छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषता है।
उदाहरण-
धूल की ढेरी से अनजान
छिपे है मेरे मधुमय गान।-पंत
XIII. संगीतात्मकता-
छायावादी काव्य का अधिकांश हिस्सा गीतिकाव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है इसलिए इस काव्य में संगीतात्मकता और नाद-सौंदर्य निहित है। महादेवी का समस्त काव्य गेय है।
XIV. पाश्चात्य अलंकारों का प्रयोग-
छायावाद में मानवीकरण एवं ध्वन्यर्थ व्यंजना इन दो पाश्चात्य अलंकारों का प्रयोग प्रचुरता से देखा जा सकता है।
इस प्रकार छायावाद की विशेषताएं सौंदर्य की नवीन सर्जना, वैयक्तिकता,वेदना की अनुभूति,प्रकृति का मानवीकरण, लाक्षणिकता एवं संगीतात्मकता इत्यादि कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं,जो इसे अन्य काव्यों से अलग पहचान दिलाती हैं।
© डॉ.संजू सदानीरा
इसी तरह द्विवेगी युग की विशेषताएँ पढ़ने के लिए कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें..
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