महिला आरक्षण अधिनियम 2023 : Women reservation act 2023

 महिला आरक्षण अधिनियम 2023 : Women reservation act 2023 

दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए

मुझ को अब इतना भी आसान न समझा जाए

 मैं भी दुनिया की तरह जीने का हक़ माँगती हूँ

 इस को ग़द्दारी का एलान न समझा जाए ..

महिला आरक्षण अधिनियम के सन्दर्भ में रेहाना रूही की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। ये स्त्री की आकांक्षाओं को बहुत करीने से बयां करती हैं। एक ऐसा देश जहां कहने को तो उसे देवी का दर्ज़ा मिला है लेकिन उसे एक इंसान के तौर पर भी नहीं देखा जाता। आबादी का 48.4% हिस्सा रखते हुए भी प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर महत्त्पूर्ण स्थानों पर इनके हिस्सेदारी एक चौथाई भी नहीं है।

जन्म लेने के पहले से ही कदम-कदम पर एक महिला को लिंग के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसकी पुष्टि यूनाइटेड नेशन के ‘जेंडर इक्वलिटी इंडेक्स 2023’ के नवीनतम आंकड़ों से भी होती है, जिसके अनुसार जेंडर इक्वलिटी में भारत की रैंक 146 देशों में 127वीं है। लिंग के आधार पर यह भेदभाव सामाजिक व प्राकृतिक न्याय और सार्वभौमिक मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ है।

किसी भी समाज या देश की प्रगति समाज के सभी वर्गों के समुचित प्रतिनिधित्व से ही मापी जानी चाहिए, अन्यथा यह एक छलावा मात्र है। सदियों से चले आ रहे इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए समय-समय पर कई सराहनी कदम उठाए गए जिनमें से एक है महिला आरक्षण अधिनियम यानी ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023’।

महिला आरक्षण अधिनियम 2023-

महिला आरक्षण अधिनियम जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम भी कहा जाता है, से सम्बन्धित विधेयक अर्जुन राम मेघवाल द्वारा 128वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया गया था और इसे 454 सदस्यों के बहुमत से पारित कराया गया। विरोध करने वाले सदस्यों में एआईएमआईएम (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी और इम्तियाज जलील थे।

 

इन्होंने महिला आरक्षण के अंतर्गत अल्पसंख्यक महिलाओं के प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर विरोध दर्शाया। इसके बाद राज्यसभा में यह 215 वोटों के पूर्ण बहुमत से पारित कराया गया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के साथ ही यह बिल 108वां संविधान संशोधन ऐक्ट बन गया।

 

महिला आरक्षण अधिनियम के अंतर्गत लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिए 33% सीटों को आरक्षित कर दिया गया। यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वाली सीटों पर भी लागू होगा जिसका पालन रोटेशन के आधार पर किया जाएगा। इसमें अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

ग़ौरतलब है कि, इस एक्ट के पारित होने के बावजूद यह आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में तत्काल प्रभाव से लागू नहीं हो सकता। क्योंकि इसका एक प्रावधान है जिसके अनुसार यह महिला आरक्षण का लोकसभा और विधानसभाओं में तब लागू हो सकता है, जब नए सिरे से सीटों का परिसीमन किया जाए।

परिसीमन के लिए जनगणना आवश्यक हो जाती है, क्योंकि 2011 के बाद से अब तक जनगणना नहीं हुई, जिसका कारण कोविड महामारी बताया जाता है। इसलिए अगली जनगणना और उसके बाद सीटों के परिसीमन के बाद ही इस महिला आरक्षण अधिनियम अर्थात ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को लागू किया जा सकेगा इसके लिए कम से कम 2029-30 तक का इंतज़ार करना पड़ सकता है। यह आरक्षण लागू होने के बाद भी सिर्फ़ 15 वर्षों के लिए लागू होगा, उसके बाद इसकी समीक्षा की जाएगी। इसके बाद आगे लागू किए जाने या ख़त्म किए जाने का निर्णय लिया जाएगा।


महिला आरक्षण का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-

राजनीति में महिलाओं की प्रतिनिधित्व का विचार राजनीतिक रूप से सबसे पहले 1931 में सरोजिनी नायडू और बेगम शाहनवाज ने व्यक्त किया था, जब इन्होंने पत्र लिखकर राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया था। इसके बाद 1983 में कर्नाटक पहला राज्य बना, जहां ग्राम एवं नगर पंचायत में महिलाओं को 25% आरक्षण दिया गया।

1987 में आंध्र प्रदेश में भी ग्राम एवं नगर पंचायत में महिलाओं को 9% का आरक्षण दे दिया गया। 1992 में उड़ीसा में पहली बार महिलाओं को स्थानीय निकायों में 33% का आरक्षण मिला। 1987 में मार्गरेट अल्वा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई, जिसमें महिला आरक्षण की सिफ़ारिश की गई थी। 1989 में स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण का विधेयक संसद में पेश किया गया, जो कि लोकसभा से पारित हो गया परंतु राज्यसभा से पारित नहीं हो सका। 

 

महिला आरक्षण की दिशा में 1992 और 93 में 73वां-74वां संविधान संशोधन मील का पत्थर साबित हुआ। जब देश भर के ग्राम एवं नगर पंचायतों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। परंतु तब तक संसद और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण की कोई चर्चा नहीं हुई थी। 1996 में पहली बार 81वें संविधान संशोधन विधायक के माध्यम से संसद एवं राज्य विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण को लागू करने का प्रयास किया गया। इसके बाद गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी एक रिपोर्ट में अन्य पिछड़े वर्ग यानी OBC की महिलाओं को अलग से आरक्षण देने की सिफारिश की गई।

इसके बाद 1997, 98, 99 और 2004 में महिला आरक्षण विधेयक को संसद में रखा गया, परंतु यह पारित न हो सका। 2006 में बिहार राज्य ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य की ग्राम एवं नगर पंचायत में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण प्रदान किया, ऐसा करने वाला बिहार पहला राज्य बना।

इसके बाद 2007 में सिक्किम और धीरे-धीरे देश के 20 राज्यों में ग्राम व नगर पंचायत में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण का प्रावधान किया गया। जिसका नतीजा है कि आज देश की 31 लाख ग्राम व नगर पंचायतों में 15 लाख महिलाएं हैं। 2010 में एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक संसद में रखा गया, जो कि राज्यसभा में तो पास हो गया लेकिन लोकसभा में जाकर अटक गया। आख़िरकार 2023 में ‘नारी शक्ति वंदन एक्ट’ के रूप में यह लंबे अंतराल के बाद पारित होने में सफल रहा।

 

वर्तमान स्थिति और वैश्विक संदर्भ-

भारत की संसद और विधानसभा में वर्तमान स्थिति देखी जाए तो इस बार यानी 18वीं लोकसभा में कुल 74 महिला प्रतिनिधि चुनी गई हैं जो कि लोकसभा के कुल सांसद संख्या का मात्र 13.6% है। इनमें से 43 नई महिला सांसद पहली बार संसद में पहुँची हैं। ग़ौरतलब है कि राज्य की विधानसभाओं में तो महिलाओं की संख्या 10% से भी कम है।

वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो संसद में प्रतिनिधित्व के मामलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 24% है। संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के रैंकिंग में भारत का स्थान 185 देशों में से 141वां है जो कि अत्यंत चिंताजनक है। इस मामले में हमारे पड़ोसी देश भी हमसे काफी आगे हैं। जैसे, बांग्लादेश और श्रीलंका में ही 30% से अधिक महिलाएं संसद में हैं।

पाकिस्तान में 20%, बांग्लादेश में 21% और नेपाल में 33% महिलाएं संसद में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। अफ्रीकी देश रवांडा 61% और क्यूबा 55% महिलाओं को देश की संसद में प्रतिनिधित्व देने के साथ ही रैंकिंग में उच्च पायदान पर आसीन हैं। स्पष्ट है कि भारत की संसद व विधानसभा में महिला आरक्षण कितना ज़रूरी कदम है।

महिला आरक्षण अधिनियम से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधान-

‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को लागू करने के लिए संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में संशोधन किया गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के लिए अनुच्छेद- 239AA में एक नया खंड जोड़ा गया। लोकसभा में आरक्षण के लिए अनुच्छेद 330A में नया खंड जोड़ा गया तथा विधानसभा में आरक्षण के लिए अनुच्छेद 332A में एक नया खंड जोड़ा गया।

इसके साथ ही अनुच्छेद 334A में नया खंड जोड़कर इसे 15 साल तक के लिए लागू किया गया है, इसके बाद इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 84वें संविधान संशोधन 2002 के अनुसार परिसीमन को 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। इसके बाद होने वाली जनगणना के बाद सीटों का परिसीमन किया जाएगा और 33% महिला आरक्षण लागू किया जा सकेगा।

 

महिला आरक्षण अधिनियम से सम्बन्धित चुनौतियां-

लोकसभा और राज्य की विधानसभा में 33% महिला आरक्षण लागू होने के रास्ते में अभी बहुत सारी चुनौतियां हैं। सबसे पहले तो इस ऐक्ट की परिसीमन वाली शर्त जिस वजह से यह 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं किया जा सका और 2027 में होने वाले 8 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी लागू नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा कोई निश्चित समयसीमा न होने से इसे लंबे समय तक स्थगित भी किया जा सकता है, जो इसकी मंशा पर शक़ पैदा करता है।

साथ ही अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान न होने से कई राजनीतिक पार्टियां इससे संतुष्ट नहीं हैं।  इसके अलावा पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज कागजी हो जाने का जोख़िम भी है। पंचायत के प्रधानपति की तरह सांसद व विधायक पति जैसी अवधारणा भी इसके मूल मकसद के लिए चिंता का कारण बन सकती है।

राज्यसभा और राज्य की विधान परिषदों में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है परंतु महिला आरक्षण अधिनियम में इसके बारे में कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा इसमें महिलाओं के अंतर्गत सिर्फ जैविक महिलाओं को ही मान्यता मिली है, थर्ड जेंडर को इसमें कोई जगह नहीं दी गई है जो कि समावेशी विकास के सिद्धांतों के विपरीत है।

संभावनाएं-

हालांकि महिला आरक्षण की राह में बहुत सारी चुनौतियां हैं, लेकिन महिला आरक्षण अधिनियम एक अवसर है इन चुनौतियों से निपटने का। राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलने से संसद में महिलाओं के लिए अपनी बात रखना अपेक्षाकृत आसान होगा। इससे जेंडर इक्वलिटी की दिशा में आगे बढ़ने में काफी सहायता मिलेगी। संपूर्ण एवं समावेशी विकास (जो कि संविधान के कल्याणकारी राज्य का आधार बिंदु है) की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे।

महिला साक्षरता, लिंगानुपात, कार्यक्षेत्र में भागीदारी, गतिशीलता, प्रसन्नता, संपत्ति और अवसर की समानता जैसे महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील मसलों पर महिला आरक्षण ऐक्ट एक अभूतपूर्व कदम साबित हो सकता है। जो कि महिलाओं की उन्नति के साथ ही समाज और राष्ट्र की प्रगति में उल्लेखनीय योगदान देने में सक्षम हो सकेगा। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था,

‘मैं किसी समाज की तरक्की इस बात से देखता हूं कि, वहां महिलाओं ने कितनी तरक्की की है।’

© प्रीति खरवार

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