धर्मवीर भारती की कविता ‘बोआई का गीत’ की मूल संवेदना : Boaai ka geet

 

धर्मवीर भारती की कविता ‘बोआई का गीत’ की मूल संवेदना : Boaai ka geet

 

धर्मवीर भारती हिंदी कविता के एक अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। बोआई का गीत इनकी एक लोकप्रिय कविता है। इन्होंने निबंध, नाटक, उपन्यास, कहानी एवं कविता सभी विधाओं में विपुल साहित्य रच कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है। सूरज का सातवां घोड़ा और गुनाहों का देवता उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। कनुप्रिया,सात गीत वर्ष और ठंडा लोहा उनके प्रसिद्ध काव्य संकलन हैं। अंधा युग इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध और अनेक बार मंचित सफल गीति-नाटक है। इन्होंने लंबे समय तक धर्मयुग नामक पत्रिका का सफल संपादन किया।

 

बोआई का गीत धर्मवीर भारती द्वारा रचित एक छोटी सी कविता है जो गेय शैली में रची गई है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने कृषक व सामाजिक जीवन और प्राकृतिक परिवेश से जुड़े अनुभवों का सुंदर चित्रण किया है।

कवि धरती के सौंदर्य का चित्रण करते हुए दर्शाते हैं कि धरती खरपतवार रहित होने के कारण बहुत सुंदर लग रही है। ऐसा तब होता है जब किसान को अपने खेत में नई फसल के लिए बीज बोना होता है। कवि बीज बोने के लिए तैयार धरती की क्यारी के संगीत को सुन पाते हैं और जिज्ञासा व्यक्त करते हैं कि किस फसल के बीज इन क्यारियों में रोपे जाएंगे! कवि संभवत साथ ही उत्तर देते हैं कि वह खेत में मेहनतकश युवतियां, इंद्रधनुषी नये सितारे और नई पीढ़ियां बोयेंगे।

कवि का आशय यह है कि वह खेतों में श्रम करने वाले युवाओं को देखना चाहते हैं। वह आसमान पर सतरंगी इंद्रधनुष अर्थात आश्वस्त करने वाला आसमान देखना चाहते हैं। कवि इसके लिए बोये गए बीजों को बादलों से बरसा कर के अंकुरित करने का अवसर चाहते हैं। कवि अगली पंक्तियों में देश के त्योहार से जुड़े प्रतीकों का सुंदर प्रयोग करते हैं।

ग्रामीण परिवेश में आज भी सावन की पहली तीज, हरी चूनर, मेहंदी और राखी के त्योहार का आकर्षण बरकरार है। कवि इन सबको बोने की बात करके जीवन में उत्सवप्रियता की निरंतर चाहते हैं। यहाँ एक प्रकार का नॉस्टालजिया भी देखा जा सकता है। कवि अब शहर के वासी हो गये हैं तो रूढिवादी त्योहारों की विरासत अब भी उनको रोमांचित कर रही है। बाकी ग्रामीण जीवन का अपना विशेष सौन्दर्य तो है ही! 

इस प्रकार इस कविता के माध्यम से कवि ने अपने पारंपरिक दृष्टिकोण का परिचय दिया है। इस लघु काय कविता में कृषि से जुड़े कुछ भावात्मक पहलुओं का आत्मीय चित्रण हुआ है। कृषि को लेकर भी सुखद अनुभूति व्यक्त करना कवि नहीं भूले हैं। 

© डॉ. संजू सदानीरा 

 

यह धरती है उस किसान की कविता की मूल संवेदना : Yeh dharti hai us kisaan ki

बोआई का गीत : धर्मवीर भारती

गोरी-गोरी सौंधी धरती-कारे-कारे बीज
बदरा पानी दे!
क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीत
बोने वालो! नई फसल में बोओगे क्या चीज ?
बदरा पानी दे!
मैं बोऊंगा बीर बहूटी, इन्द्रधनुष सतरंग
नये सितारे, नयी पीढियाँ, नये धान का रंग
बदरा पानी दे!
हम बोएंगे हरी चुनरियाँ, कजरी, मेहँदी
राखी के कुछ सूत और सावन 
की पहली तीज!
बदरा पानी दे!
Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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