ऐसी मूढ़ता या मन की पद की व्याख्या : Aisi mudhta ya man ki pad ki vyakhya

 ऐसी मूढ़ता या मन की पद की व्याख्या :  Aisi mudhta ya man ki pad ki vyakhya

 

“ऐसी मूढ़ता या मन की।

 

परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की॥

 

घूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की।

 

नहिं तँह सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की॥

 

ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तन की।

 

टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की ॥

 

कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि ! जानत हौ गति जन की।

 

तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुःख, करहु लाज निज पन की॥”

 

 

प्रसंग: 

ऐसी मूढ़ता या मन की पद तुलसीदास द्वारा रचित अत्यंत प्रसिद्ध पद है। यह पद विनय पत्रिका में संकलित है। तुलसीदास हिंदी कविता की राम भक्ति शाखा के सर्वाधिक ख्यातिलब्ध कवि हैं। कवि से ज़्यादा इन्हें भक्त माना जाता है। 

संदर्भ: 

राम भक्त के प्रति आस्था व्यक्त करना इस पद का ध्येय है।

व्याख्या: 

ऐसी मूढ़ता या मन की पद में तुलसीदास जी मूर्ख बोलकर उस मानव की निंदा कर रहे हैं, जो राम भक्त रूपी गंगा को छोड़कर सांसारिक विषय-वासनाओं रूपी ओस कणों में सुख ढूंढता है। यहां वे उदाहरण देते हैं कि जैसे चातक पक्षी प्यास से व्याकुल होकर धुएं के बादलों को असली बादल समझ कर उस ओर दौड़ पड़े, परंतु न उससे उसकी प्यास बुझे न व्याकुलता मिटे। वरन धुएँ से उसकी आंखों को जो कष्ट और नुकसान हो वह अलग। ठीक उसी प्रकार भक्त का मन भी अज्ञानतावश सांसारिक विषय वासनाओं की ओर भटकता फिरता है।

न तो इससे वास्तविक सुख प्राप्त होता है और न ही आत्म कल्याण होता है। बाज पक्षी कांच में अपनी परछाईं देखकर उस पर चोंच मार-मार कर अपनी चोंच तोड़ लेता है। इस बात का भान उसे अपनी भूख के कारण नहीं होता और वह कांच (शीशे) पर चोंच मारता चला जाता है। वैसे ही कवि ( तुलसी) का मन भी अपनी हानि नहीं देखता और काल्पनिक सुख प्राप्ति के लिए विषय वासनाओं की तरफ भागता है। 

 

प्रभु श्री राम को कृपा का भंडार कहकर संबोधित करते हुए कवि कहते हैं कि ऐसे भ्रमों का वह कहां तक वर्णन करें! प्रभु अंतर्यामी होने के कारण जीव की इस गति को अच्छी तरह से जानते हैं। प्रभु श्री राम से विनती करते हुए तुलसीदास कहते हैं कि वह अपने भ्रम में पड़े भक्त को उबार कर अपनी शरणागत वत्सल छवि पुनः दिखाएं। अर्थात राम शरण में आए हुओं की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं, इस बार भी ऐसा करके वे अपनी दयालुता दिखाएं।

 

विशेष: 

1.राम भक्ति के प्रति अनन्य आस्था प्रदर्शित की गई है।

2.चातक और बाज पक्षी का उदाहरण विषय वासना में फंसे मनुष्यों के लिए किया गया है।

3.अंत्यानुप्रास, उदाहरण और रूपक अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। भाषा में प्रवाहमयता है। ब्रजभाषा का साहित्यिक रूप द्रष्टव्य है।

4.शैली उपदेशात्मक है। शांत रस का सुंदर उदाहरण है।

 

© डॉ. संजू सदानीरा 

 

राम जपु राम जपु पद की व्याख्या : Ram japu ram japu pad ki vyakhya

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