भई जु आनि अबाज आय सहाबुद्दीन सुर पद की व्याख्या
भई जु आनि अबाज, आय सहाबदीन सुर ।
आज गही प्रथिराज, बोलल्लंत गज्जत धुर ।।
जोध जोधा अनन्त, करिय पती आनि गज्जिय ।
बानं नालि हयनालि, तुपक तीरह सब सज्जिय ।।
पर्व पहार मानो सार के, मिरि भुजा गजनेस बल ।
आप्त हकारि हंकार करि, चुरासान सुलतान दल ।।
प्रसंग
प्रस्तुत पद आदिकाल के महाकवि चंदबरदाई द्वारा रचित महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के बीसवें सर्ग पद्मावती समय से लिया गया है।
सन्दर्भ
पद में पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन गौरी दोनों की अपनी-अपनी सेनाओं का आमने-सामने होने के दृश्य का वर्णन जीवंतता के साथ किया गया है।
व्याख्या
शहाबुद्दीन गौरी की भयंकर ललकार और बजते नगाड़ों की भीषण गर्जना चारों ओर गूंज रही है। शहाबुद्दीन गौरी ने गर्जना करते हुए कहा कि आज वह किसी भी तरह से पृथ्वीराज को ज़रूर पकड़ लेगा। गौरी की सेना में युद्ध करने के लिए उन्माद से भरे हुए अनेक बलवान योद्धा थे। उसके पास हाथियों की भी विशाल पंक्ति थी और युद्ध के माहौल से उन्मत्त ये हाथी जोर जोर से चिंघाड़ रहे थे। बादशाह की सेना के साथ आई हुई विशाल सेना और उसके सैनिक तोप, विशालकाय हाथियों से खींची जाने वाली बड़ी तोप, अन्य प्रकार की तोपें, धनुष बाण और अस्त्र-शस्त्र से लैस थे।
यहां पर कहने का भाव यह है कि शहाबुद्दीन गौरी की सेना के पास हर प्रकार की युद्ध सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। उसकी सेना जिरह बख्तर से युक्त लड़ाई के मैदान में जिस तरह से आगे बढ़ रही थी ऐसा लग रहा था मानो लोहे के पहाड़ ही चलते दिखाई दे रहे हों। सारे के सारे योद्धा अपने बादशाह गजनेश (गौरी) का बल अपनी भुजाओं में भरकर सामने खड़ी सेना को परास्त करने के लिए आगे बढ़ रहे थे। खुरासन के बादशाह की सेना जिसे बादशाह शहाबुद्दीन गौरी ने अपने साथ आने के लिए आह्वान किया था,आ पहुंची।
इसके साथ ही उसकी अपनी विशाल सेना विकट लग रही थी। इस प्रकार बादशाह गौरी अपनी और अपने मित्रों की सेनाओं के दलबल के साथ पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करने के लिए बेचैन था।
विशेष
1.अपने प्रतिद्वंद्वी से लड़ने के लिए राजाओं और सेनाओं की व्याकुलता का सहजता के साथ चित्रण किया गया है।
2.शहाबुद्दीन की सेना के रूप में प्रतिद्वंद्वी की सेना की विशालता का चित्रण स्वाभाविक रूप से किया गया है।
3. मित्रों की सेना का युद्ध में साथ देने के लिए आना दिखाया गया है,जो कि इतिहास सिद्ध है।
4.छेकानुप्रास अलंकार और वर्ण मैत्री काव्य सौंदर्य बढ़ा रहे हैं।
5.वीर रस की उद्भावना हुई है।
6.भाषा अपभ्रंश है जो डिंगल से प्रभावित है।
7.शैली वर्णनात्मक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा