निकट नगर जब जान, जाय वरि विंद उभय मय पद की व्याख्या
निकट नगर जब जान, जाय वरि विंद उभय भय ।
समुद सिषर धन नद इन्दु दुहुं ओर घोर गय ।।
अगिवानिय – अगिबान, कुंअर बनि बनि हय सज्जति ।
दिष्षन को त्रिय सवनि, चढ़ि गौष छाजन रज्जति ।।
विलषि अवास कुंवरि बदन, मनो राहु छाया सूरत ।
झंसति गवष्षिपल पल पलकि, विषति पंथ दिल्ली सुपति ।।
प्रसंग
प्रस्तुत पद महाकवि चंदबरदाई द्वारा रचित आदिकाल के अत्यंत लोकप्रिय महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय से लिया गया है।
संदर्भ
राजा कुमोदमणि के बारात लेकर समुद्र शिखर में आने के बाद के दृश्य का चित्रण किया गया है।
व्याख्या
पद्मावती के पिता राजा विजयपाल द्वारा पद्मावती के लिए चुना गया वर कुमोदमणि अपनी बारात लेकर समुद्र शिखर पहुंच जाता है। बारात के स्वागत में जोर शोर से नगर में ढोल-नगाड़े बजने शुरू हो जाते हैं। बारात राजा की होने की कारण परंपरानुसार इधर भी खूब नगाड़े बजाये जाते हैं। दोनों तरफ के नगाड़े बजने से समुद्र शिखर में उत्साह के साथ साथ भयंकर शोर भी उत्पन्न हो जाता है। खूब सजे संवरे राजकुमार अपने घोड़ों को भी अच्छी तरह से सजाने के बाद उन पर बैठकर बारात की अगवानी करने के लिए निकले। सज-धज कर आए दूल्हे और विशाल बरात को देखने समुद्र शिखर की स्त्रियां खिड़कियों और छज्जों पर नज़र आने लगीं।
दूसरी तरफ राजकुमारी पद्मावती कुमोदमणि के आने की ख़बर सुनकर अपने कक्ष में बैठकर रोने लगी। वह इस बारात के साथ जाने के नाम पर बहुत दुखी थी। उसका चेहरा इस तरह पीला पड़ गया मानो चंद्रमा को राहु ने ग्रस लिया हो। वह अपने कक्ष के गवाक्ष से लगातार उस रास्ते की तरफ देख रही थी, जिधर से दिल्ली के राजा पृथ्वीराज को आना था। अर्थात दिल्ली से समुद्रशिखर की ओर आने वाले रास्ते की तरफ पृथ्वीराज की प्रतीक्षा में पद्मावती व्यग्र होकर बैठी थी।
विशेष
1.राजा की बारात का स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
2.बारात के स्वागत का दृश्य परंपरागत है।
3.दूल्हे को देखने के लिए महिलाओं का छज्जे पर आना दृश्य बिम्ब प्रस्तुत करता है।
4.अनिच्छित वर के लिए वधू की प्रतिक्रिया स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक है।
5.उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
6.भाषा आदिकालीन डिंगल पिंगल मिश्रित है।
7.शैली मनोवैज्ञानिक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
Very nice….
Thank you