सुनि गज्जनै आवाज पद की व्याख्या
सुनि गज्जनै आवाज, चढ्यो साहाबदीन बर।
पुरासान सुलतान, कास काविलिय मीर घर।
जंग जुरन जालिम जुझार, भुज सार भार भुअ ।
धर धयंकि भजि सेस, गगन रबि लुप्पि रैन हुअ।
उलटि प्रवाह मनौ सिंधु सर, रुक्कि राह अड्डौ रहिय।
तिही घरी राज प्रथिराज सौ, चंद वचन इहि विधि कहिय ॥
प्रसंग
प्रस्तुत पद आदिकाल के सुप्रसिद्ध कवि चंदबरदाई द्वारा रचित महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय से उद्धृत है।
संदर्भ
पृथ्वीराज चौहान के वहां (समुद्र शिखर) जाने की सूचना पाकर शहाबुद्दीन गौरी के भी युद्ध के लिए वही पहुंच जाने का चित्रण इस पद में किया गया है।
व्याख्या
गजनी में शहाबुद्दीन गौरी को जब पद्मावती के विवाह की ख़बर सुनाई देती है तो वह समुद्रशिखर पर धावा बोल देता है। अपने साथ वह एक बहुत ही शक्तिशाली सेना लेकर चढ़ाई करता है, जिसमें खुरासान देश के सुल्तान, काबुल और कंधार के अत्यंत धैर्यवान और वीर सेनापति सम्मिलित थे। लड़ाई के मैदान में वे सब के सब अपने दुश्मन को पटखनी देने में माहिर थे। उन युद्ध वीरों की भुजाएं इस कदर फ़ौलादी थीं कि मानो वे पृथ्वी को उठाने में सक्षम थीं अथवा पृथ्वी उनके भार से धंसी जाती थी। पृथ्वी के डगमगाने के कारण शेषनाग अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ रहा था।
उस अति विशाल सेना के कदमों से उठती धूल इतनी घनी थी कि उससे सूर्य भी ओझल हो गया और दिन में ही रात्रि जैसा अंधकार छा गया। शहाबुद्दीन की विशाल सेना को देखकर ऐसा लगता है मानो समुद्र और नदियों का प्रवाह सीमा तोड़कर बह निकला हो । ऐसा भी कह सकते हैं कि पद्मावती का वरण करने गए पृथ्वीराज का रास्ता रोक कर गौरी की सेना इस प्रकार अड़ के खड़ी हो गई जैसे नदी के सहज वेग को सागर ने आकर रोक लिया हो। इस स्थिति के बीच यह सारा वर्णन चंदबरदाई ने पृथ्वीराज के समक्ष किया।
विशेष
1.युद्ध के लिए सेना प्रस्थान की तैयारी को सजीवता के साथ दिखाया गया है।
2.शत्रु सेना की विशालता और वीरता का चित्रण चंदबरदाई ने अत्यंत स्वाभाविकता के साथ किया है।
3.शेषनाग के पुराणों में वर्णित प्रसंग का भी उल्लेख किया गया है।
4.स्वयंवर के समय दो राजाओं के बीच लड़ाई आदिकाल के काव्य में बहुत बार दिखाई गई है।
5.उत्प्रेक्षा और अंत्यानुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
6.रौद्र रस की उद्भावना हुई है।
7.भाषा अपभ्रंश का तत्कालीन रूप है।
8.शैली वर्णनात्मक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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