विवाह में एक स्त्री का स्थाई विस्थापन तो होता है लेकिन पुनर्वास अमूमन नहीं.हैरानी और दुख की बात तो ये है कि सदियों से हो रहे इस विस्थापन पर नजर तक नहीं जाती समाज सुधारकों और समाजशास्त्रियों की ,ऐसे में संवेदना और सुलझन की उम्मीद बेमानी है.छोटी बच्चियों से लेकर महत्त्वाकांक्षी युवतियों तक देश की लगभग हर लडकी बचपन से इस विस्थापन के लिए इस मनोवैैज्ञनिक खूबसूरती से तैयार की जाती है कि इसे वे अपनी नियति से जोडकर देखती हैं.ये एक ऐसा सौदा है जिसमें स्त्रियाँ हमेशा से घाटे में रहती आई है.(हालाँकि पढी-लिखी बेटियों के अमीर माँ-बाप भी इस सौदे के लिए मरे जाते हैं)सुदूर भविष्य में कोई गुंजाइश दिखती हैं लडकियों के लिए,अभी तो कहीं तनिक सी राहत दिख जाए बेशक,बाकी हालात बेहद अफसोसनाक और चिंताजनक हैं.
आइए,हम अपनी बच्चियों को एक बेहतर समाज,समय और जीवन का सपना देखना सिखाएँ,उनके मित्र,उनके सहयात्री बनें !!
Dr. Sanju Sadaneera