अमीर खुसरो का साहित्यिक योगदान / अमीर खुसरो के काव्य की विशेषताएं

अमीर खुसरो का साहित्यिक योगदान / अमीर खुसरो के काव्य की विशेषताएं

 

अमीर खुसरो भारत के एक महान कवि, संगीतकार और सूफ़ी संत थे। इनका आविर्भाव 1253 ईस्वी में एवं अवसान 1325 ईस्वी में हुआ था, परंतु अमीर खुसरो जैसे लोग पैदा तो होते हैं समाप्त कभी नहीं होते। अपने कालजयी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के माध्यम से ये साहित्य के आकाश में हमेशा जगमगाते रहते हैं।अपनी एक रचना में उन्होंने स्वयं को “ तूती ए हिन्द “ कहा, जो बाद में सच ही साबित हुआ और ईरान के मशहूर फारसी कवि ‘अर्फी’ तथा ‘शिराज़ी’ ने खुसरो को ‛तूती-ए-हिन्द’ नाम से बार-बार सम्बोधित किया ।खालिकबारी, पहेलियाँ, मुकरियां, दो सुखने इत्यादि इनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

 

अमीर खुसरो के काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

 

1.समन्वयवादी दृष्टिकोण

अमीर खुसरो एक मुस्लिम गायक और संगीतकार थे। निजामुद्दीन औलिया उनके गुरु थे। उनके साथ-साथ ये हिंदू संतो और पीर-फकीरों के प्रति भी बेहद सम्मान रखते थे । अमीर खुसरो ने दो अलग-अलग संस्कृतियों, धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं में पारस्परिक प्रेम, सौहार्द और सामंजस्य का परिवेश तैयार करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। “काहे को ब्याही बिदेश” जैसे गीत के माध्यम से उन्होंने विदा के बाद बेटी के मन की पीड़ा को गहरी मार्मिकता के साथ व्यक्त किया है। यह गीत हिन्दू धर्म और रीति रिवाजों पर इनकी गहरी पकड़ को दर्शाता है ।

 

2. भाषाई समन्वय और समझ की मिसाल

अपनी भाषाई पकड़ और विद्वता के ये अपने आप में मिसाल थे। बात कहने की अलग-अलग शैली के तो खुसरो अनुकरणीय एवं अप्रतिम उदाहरण हैं। हिंदी के प्रति उनका प्रेम निम्न काव्य पंक्तियों से प्रकट होता है –

तुर्क हिंदुस्तानियम दर हिन्दवी गोयम जवाब

शक्र मिश्री न दारम कज अरम गोयम सुखन

अर्थात मैं हिंदुस्तान का तुर्क हूं और हिंदवी (खड़ी बोली) में उत्तर देता हूं। मेरे पास मिश्री की मिठास नहीं है कि मैं अरबी में जवाब दूं।

गोरी सोवे सेज पर” शुद्ध ब्रजभाषा में तो “एक थाल मोती से भरा” शुद्ध खड़ी बोली में लिखा गया है।

निम्न ग़ज़ल की पहली पंक्ति पर्सियन और दूसरी हिन्दवी की है और एक हिन्दी फिल्म में इसे बड़ी खूबसूरती से फिल्माया जा चुका है-

“ ज़े हाले मिसकीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैना बनाय बतियाँ।

कि ताबे-हिजरा न दारम् ऐ जां न लेहु काहे लगाय छतियाँ॥

 

ब्रजभाषा में

(1) “चूक भई कुछ बासों ऐसी। देस छोड़ भयो परदेसी ॥”

(2) “एक नार पिया को भानी। तन वाको सरगा ज्यों पानी ॥”

(3) “चाम मास वाके नहि नेक। हाड़ हाड़ में वाके छेद ॥

 मोहि अचंभों आवत ऐसे। वामें जीव बसत है कैसे ॥”

 

दोहे और गीत ब्रजभाषा में-

 

(१) “उज्जल बरन, अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।

देखत में तो साधु है, निपट पाप की खान।”

 

(२)“खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग। तन मेरो मन पीउ को, दोउ भए एक रंग।”

 

(३)“गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारै केस। चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहु देस।”

 

3.संगीत में योगदान

अमीर खुसरो भारतीय शास्त्री संगीत के क्षेत्र में प्रकाश स्तंभ की मानिंद थे। उन्हें ख़याल और तराना गायकी के जनक के रूप में जाना जाता है। तबले और सितार के अविष्कार का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाता है। कव्वाली शैली के जनक भी अमीर खुसरो ही हैं जो सूफ़ी संगीत की महत्त्वपूर्ण पद्धति है।

 

4.कविता लेखन और ग़ज़ल गायकी

अमीर खुसरो ने हिंदी कविता लेखन और उर्दू ग़ज़ल गायकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी लिखी ग़ज़लों को गाकर जाने-अनजाने गायकों ने अनगिनत मौकों पर संगीत के क्षेत्र में ऊंचा स्थान हासिल किया। इनके द्वारा रचित गीत “सकल बन फूल रही सरसों” हाल फिलहाल नेटफ्लिक्स पर रिलीज हीरामंडी में फिल्माया गया है जो कि अत्यंत सफल रहा।

इस फिल्म के पहले भी यूट्यूब पर पर उसे करोड़ों ( जी हाँ) श्रोताओं के द्वारा सुना जा चुक है। इससे खुसरो के लेखन के जादू को महसूस किया जा सकता है।

 

5.सूफ़ी विचारधारा के आधार स्तम्भ

सूफ़ी काव्य में गुरु का स्थान सर्वोपरि होता है। प्रेम की उदात्त भाव भूमि को स्पर्श करते हुए सूफ़ी कवियों ने जीवन को राग, रंगो एवं सरसता से आपूरित किया है। अमीर खुसरो इस परंपरा के प्रारंभकर्ता एवं पोषक माने जाते हैं। जीवन के सभी रंग, सभी धर्म के त्योहार और गुरु निज़ामुद्दीन औलिया के लिए प्रगाढ़ प्रेम अमीर खुसरो को सबसे विशिष्ट स्थान पर प्रतिष्ठित करता है।

उनका एक सूफी गीत, जो आज भी युवा गायकों की पहली पसंद है और पीढ़ियों से गाया जाकर घर घर तक पहुँच चुका है-

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके

प्रेम भटी का मदवा पिलाइके

मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके।

अपनी छवि बनाइ के जो मैं पी के पास गई,

जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के

बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।

बल बल जाऊं मैं तोरे रंगरिजवा

अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।

प्रेम बटी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीन्हीं रे

मोसे नैना मिलाइ के।

गोरी-गोरी बइयां हरी – हरी चुरियां

बइयां पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।

खुसरो निजाम के बल-बल जइए

मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।

 

6.सांस्कृतिक पुल के प्रतीक

सच्चा साहित्यकार संकुचित सोच और तंग दिल वाला नहीं हो सकता। अमीर खुसरो ने भी भारतीय और इस्लामी संस्कृति के बीच सेतु (पुल) का काम किया। इन्होंने भारतीय, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की एवं फ़ारसी संस्कृति के बीच आत्मीय संबंध स्थापित किए। उपासना और इबादत को इन्होंने अपने जीवन में एक करके दिखाया। “छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके” जैसा गीत केवल अमीर खुसरो ही लिख सकते थे। कला, साहित्य, संगीत, नृत्य और वाद्य यंत्रों इत्यादि तमाम साधनों के माध्यम से इन्होंने संस्कृतियों को आपस में जोड़ने का काम किया।

7. गहन प्रेम के कवि

अमीर खुसरो ने न सिर्फ पहेली और मुकरी जैसी विधा से जनता का मनोरंजन किया बल्कि प्रगाढ़ प्रेम में पगे गीतों और ग़ज़लों से भावुक दिलों के मन की व्यथा की राह भी थी। एक बार उनके द्वारा सृजित गीतों को सुनने के बाद उनका प्रभाव स्थायी रूप से मन पर पडता है। भावुक तो खुसरो इतने थे कि गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु की खबर सुन कर हमेशा हमेशा के लिए घर द्वार छोड़ कर फकीर बन गये।

 

8. पहेली जैसी मनोरंजक विधा के पुरस्कर्ता

हालांकि संगीत और वाद्य यंत्रों के क्षेत्र में उनके योगदान को रेखांकित किया चुका है परन्तु एक ऐसी लेखन विधा है, जो अमीर खुसरो के नाम के बिना अधूरी है और अलग से उल्लेखनीय है। वह विधा है पहेली। पहेली आज भी अलगस- अलग रूपों में प्रचलित है चाहे वर्ग पहेली हो या सुडोकू। कहीं न कहीं इसकी शुरुआत का श्रेय अमीर खुसरो से ही जुड़ता है। गरीब और पस्त हाल जनता के लिए कभी यह विधा मनोरंजन का सस्ता और सुलभ साधन रही होगी।

उनकी पहेलियों के कुछ मशहूर उदाहरण-

(१.)एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।।

चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे।। ( आकाश)

(२.) एक नार ने अचरज किया। सांप मारि पिंजड़े में दिया।।

जों जों सांप ताल को खाए।सूखे ताल सांप मर जाए।। (दिया बाती)

 

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कैसे अमीर खुसरो ने सरस, सजीव और रागमय लेखन से पीढ़ियों को लाभान्वित और सुखमय किया। इनके द्वारा रचित गीत और कव्वालियां आज भी म्यूज़िक कॉन्सर्ट और संगीत समारोहों में गाई जाती हैं और सबसे ज़्यादा तालियां बटोरती हैं। पहेली हो या मुकरी, तबला हो या सितार, गुरु के प्रेम के गीत हों या विरह का काव्य, अमीर खुसरो का नाम इन सब क्षेत्रों मेंसदैव अग्रणी, स्मरणीय एवं प्रासंगिक रहेगा।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

अमीर खुसरो अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

 

 

 

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