आवत हैं बन ते मनमोहन पद की व्याख्या
आवत हैं बन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला ।
बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु ख्याला ।
हेरत हेरित चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला ।
देखि सुआनन को रसखनि तज्यौ सब द्योस को ताप कसाला।
प्रसंग
प्रस्तुत आवत हैं बन ते मनमोहन पद कृष्ण भक्ति शाखा के अनन्य कवि रसखान द्वारा रचित है जो पाठ्यक्रम में विद्यानिवास मिश्र द्वारा संपादित “रसखान रचनावली” से लिया गया है।
संदर्भ
गाय चराकर गोधूलि बेला में लौटते श्रीकृष्ण और उनके दर्शन के लिए व्याकुल गोपी की मनःस्थिति का चित्रण इस पद में बहुत गहराई से किया गया है।
व्याख्या
श्रीकृष्ण गोधूलि बेला में गायों के झुंड और ग्वाल बालों के साथ वन से लौट रहे हैं। रसखान कहते हैं कि ग्वालों के साथ कृष्ण के आने का यह दृश्य अत्यंत मनोहारी है। ग्वालों के साथ आते कृष्ण अत्यंत आकर्षक दिख रहे हैं। श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते हुए और गाते हुए आ रहे हैं। संपूर्ण परिवेश को भयरहित करते हुए वे अपने विचारों में चले आ रहे हैं। एक गोपी अपने घर के झरोखे से झांक-झांक कर कृष्ण के दर्शन पाने को बेचैन है। ऐसा लगता है जैसे घर के बुजुर्ग अभिभावकों के कारण वह संकोचवश घर के बाहर जाकर कृष्ण को नहीं देख पा रही है। इसलिए घर की खिड़कियों से ताक झांक कर रही है। सुंदर मुखड़े वाले श्रीकृष्ण के दर्शन होते ही गोपी दिन भर के कठोर ताप को भूल जाती है। मानो कवि कहना चाहते हैं कि प्रिय के दर्शनों की साध पूरी होने मात्र से धूल, धूप, मिट्टी, पसीना, प्रतीक्षा की पीड़ा और संताप सभी मन से धुल जाते हैं।
विशेष
1.सांध्य काल में कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ लौटना प्रायः सभी कृष्ण भक्त कवियों ने चित्रित किया है।
2.रसखान ने गोपी की कृष्ण दर्शन के प्रति लालसा अत्यंत हृदयग्राही रूप से की है।
3.प्रेमा भक्ति का चित्रण रसखान ने अत्यंत कुशलता व भावप्रवणता के साथ किया है।
4.ब्रज भाषा का सौंदर्य द्रष्टव्य है।
5. बेनु बजावत, हेरत हेरति और चके चहुँ में अनुप्रास अलंकार है। संपूर्ण पद में अन्त्यनुप्रास की छटा विद्यमान है।
6.छंद सवैया है। भक्ति रस के साथ उपालंभ का सम्मिश्रण प्रशस्य है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा