15 अगस्त, आज़ादी के मायने: Speech on Independence Day

 

15 अगस्त, आज़ादी के मायने : Speech on Independence Day 

प्रति वर्ष 15 अगस्त की सुबह हमारे देश में आजादी का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।विशेष रूप से स्कूलों में उत्सव की तैयारियां लगभग महीने भर पहले शुरू करवा दी जाती है, जिसमें विशेष रूप से आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले वीरों के जीवन पर आधारित नाटिकाएं और देशभक्ति के गीतों की प्रस्तुतियां होती है।

और हो भी क्यों नहीं! 15 अगस्त को मनाए जाने वाले स्वतंत्रता के इस समारोह का अधिकार आखिर हजारों जानों की कीमतों और लाखों लोगों की अनदेखी मेहनत के बाद जो मिला था! 

स्वतंत्रता के लिए पहला प्रयास अठ्ठारह सौ सत्तावन में हुआ, जिसे अंग्रेजी इतिहासकार गदर या गदर की लड़ाई कहते हैं। हकीकत में यह गदर(गुंडागर्दी) नहीं अपितु अपने देश को ब्रिटिश हुकूमत से स्वतंत्रता दिलाने के अटूट प्रयास का प्रारंभ था। कूटनीतिक और सामरिक कमियों के कारण यह विद्रोह असफल रहा लेकिन इसने आगे की लड़ाई का मार्ग प्रशस्त किया। अठ्ठारह सौ सत्तावन की इस लड़ाई के सेनानियों में बहादुर शाह जफर, मंगल पांडे, तात्या टोपे, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई  इत्यादि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

इसके बाद दूसरा सबसे सशक्त आंदोलन बीसवीं शताब्दी में हुआ। भारत छोडो़ आंदोलन, असहयोग आंदोलन और इन सबके बाद 15 अगस्त 1947 में हमारे देश को विदेशी हुकूमत से आजादी मिली। उन्नीस सौ पचास में अपने संविधान के बाद इस आजादी पर परिपूर्णता की मुहर लग जाती है। 

आजादी के इन परवानों में वीर कुंवर सिंह,बिरसा मुंडा, महात्मा गॉंधी,नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, बाबा साहेब अंबेडकर, स्वर्ण कुमारी देवी, सरोजिनी नायडू, दुर्गा भाभी, अरूणा आसफ अली,कस्तूरबा गांधी, मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, एनी बेसेन्ट, कल्पना दत्त, सूर्य सेन, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, रोशन लाहिड़ी, चंद्रशेखर आज़ाद इत्यादि हजारों हजार स्वतंत्रता सेनानियों का नाम याद किया जा सकता है।

खुदी राम बोस को सबसे कम उम्र में फांसी लगी,जिसने गुलामी से निजात के लिए एक आग पैदा की,भगतसिंह की फांसी ने युवाओं को बेचैन करके उनमें विद्रोह की ज्वाला भरी। देश पर मर मिटने वालों की एक पूरी खेप है,जिसका नाम इतिहास की किताबों में दर्ज नही, वहाँ बहुत आगे निकल जाने वाले कुछ ही लोगों का नाम आया है, लेकिन यह लडाई हमने चंद कुर्बानियों से नहीं जीती, यह हमें स्मरण रखना चाहिए। 

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले 

वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा”

भगतसिंह की इन पंक्तियों में इस बात को महसूस किया जा सकता है कि देश के लोग आजादी का मतलब भूल चुके हैं और बस दिवस विशेष पर अपने हीरोज़ और हीरोइन्स (सच्चे अर्थों में) को माल्यार्पण कर अपने कर्तव्यों की इति श्री समझते हैं।

सच तो यह है कि जब तक हमें अंधविश्वासों, छुआछूत, असमानताओं और अशिक्षा से आजादी नहीं मिलती,तब तक 15 अगस्त को मनाई जाने वाली हमारी आजादी अधूरी है। हमें हर संभव प्रयास करके अपने देश से इन धब्बों को मिटा कर आजादी के दीवानों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए,यही सच्चा सेलिब्रेशन भी होगा। 

जय हिंद! जय संविधान! जय विज्ञान! 

 

© डॉ. संजू सदानीरा

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