हरीश भादानी के काव्य की विशेषताएं : Harish Bhadani ke kavya ki visheshtayen

हरीश भादानी के काव्य की विशेषताएँ

हरीश भादानी क्रांति के कवि के तौर पर जाने जाते हैं। कवि कर्म करना बहुत से लोगों के लिए मनोरंजन का कार्य अथवा जीविकोपार्जन का साधन हो सकता है,वहीं दूसरी तरफ बहुत से कवियों के लिए यह जीवन मूल्यों की स्थापना का साधन और सामाजिक क्रांति का वाहक है।            

हरीश भादानी कलम से उन सच्चे उपासकों में गिने जाते है,जो जीवन भर सामाजिक चेतना लाने और शोषण मिटाने के लिए लिखते हैं। उनका जन्म राजस्थान के बीकानेर जिले में 1933 ई. में और देहावसान 2009 ई. में हुआ ।

हरीश भादानी ने हिन्दी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में प्रचुर साहित्य लिखा। अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत उन्होंने गीत लेखन से की और धीरे-धीरे मंचों पर अपने गीतों का सुमधुर प्रस्तुतीकरण करने के कारण संपूर्ण राजस्थान में विख्यात हो गए । 

कालांतर में हरीश भादानी लोहिया के समाजवादी आंदोलन से प्रभावित हुए और लेखन के साथ-साथ सामाजिक आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे।बीकानेर से इन्होंने “वातायन” नामक साहित्यिक पत्रिका का बरसों तक सम्पादन किया। यह अपने समय की एक अत्यंत महत्वपूर्ण पत्रिका थी। इस पत्रिका के संपादन के लिए इतना कहा जा सकता है कि यह काम घर फूंक तमाशा देखने के जैसा था फिर भी ये इन्होंने किया।

जीवन भर के संघर्षों और मानवीय दृष्टि ने इन्हें मार्क्सवादी विचारधारा की तरफ मोड़ दिया। इनको जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्य के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने साहित्य को कांति का मार्ग दिखाने वाला माना है ।

हरीश जी ने अपने लेखन को कभी भी जीविकोपार्जन का साधन नहीं माना इसलिए तमाम उम्र वे आर्थिक सङ्घर्ष करते रहे। शोषितों और पीड़ितों की पक्षधरता से उनका सम्पूर्ण काव्य ओत-प्रोत है। 

प्रगतिवादी काव्य की समस्त विशेषताएं उनके काव्य में पायी जाती है। सरलता (सुबोधता) संवेदनशीलता,मानवीय मूल्य ,शोषण के विरुद्ध आक्रोश,शोषित के प्रति सहानुभूति,अन्याय के प्रति विरोध और क्रांति में अटूट आस्था इनके काव्य की अन्यतम विशेषताएं हैं।

आदमी के द्वारा आदमी के शोषण को इन्होंने अत्यंत हेय माना और इस स्थिति को बदलने के लिए इन्होंने शोषितों में अपनी कविता के माध्यम से क्रांति का आह्वान किया। इनकी “सुनो, कुंती को सुनो” पौराणिक प्रतीकों को माध्यम बनाकर लिखी गई एक कालजयी कविता है। भूख का भ्रूण ( सुलगते पिण्ड)भुखमरी की त्रासदी दर्शाती एक अत्यंत मार्मिक कविता है। 

 राजस्थान की मिट्टी की खुशबू इनके काव्य के शब्द- संयोजन में गहराई से महसूस की जा सकती है। इनके प्रमुख काव्य संकलन हैं- सड़कवासी राम, उजली नज़र की सूई, अधूरे गीत, हंसिनी याद की, सुलगते पिण्ड,एक अकेला सूरज खेले,मैं मेरा अस्तित्व, क्यों करें प्रार्थना, बाथां मं भूगोल, रेत रै समंदर रो पाणी (राजस्थानी काव्य संकलन) । 

इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा मीरा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन को गरिमा प्रदान करने में हरीश जी का अतुल्य योगदान था। प्रतिबद्धता इनके लेखन की पहली पहचान थी। ये सच्चे अर्थों में एक जनकवि थे। 

© डॉ. संजू सदानीरा

नौका विहार कविता की मूल संवेदना पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर सम्बन्धित लेख पढ़ सकते हैं..

 

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