हरि बिन कूण गति पद की व्याख्या

हरि बिन कूण गति पद की व्याख्या

 

प्रसंग

प्रस्तुत पद राजस्थान की सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है। पाठ्य पुस्तक में यह पद मीरां पदावली से लिया गया है। इसके संपादक शंभू सिंह मनोहर हैं।

 

संदर्भ

विनम्र मीरा कृष्ण भक्ति में लीन होकर हरि बिन कूण गति पद में अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त करते हुए बता रही हैं कि बिना हरि (कृष्ण) के उनकी कोई कद्र नहीं है। उनका कृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई आसरा नहीं है।

 

व्याख्या

मीरांबाई अपने अनन्य कृष्ण भक्ति के लिए जगत प्रसिद्ध हैं। इस पद में भी उनका वही भक्ति भाव प्रवणता के साथ अभिव्यक्त हुआ है।

मीरां कहती है कि हरि (कृष्ण) के बिना उनकी कोई गति नहीं है। अर्थात सिवाय कृष्ण के और कहीं उनकी मुक्ति नहीं है, आसरा उनका ही है मीरां को तो। मीरां कृष्ण को तुम कह कर संबोधित करते हुए कहती हैं कि भले कृष्ण उनके मन के विपरीत बात कहें लेकिन वे तो अपने राजा कृष्ण की दासी हैं।

मीरां कहती है कि वह तो शुरू से आख़िर तक कृष्ण के नाम की माला फेरती आ रही हैं। अर्थात दिन रात में वो कृष्ण के नाम की माला अपने हृदय में फेरती रहती हैं। मीरां बार-बार कृष्ण की गुहार लगाकर कहती हैं कि उन्हें उनकी कृपा की आकांक्षा है। कृपा प्राप्ति के लिए उनका मन आर्त है। मीरां इस संसार को विकारों का सागर (बुराइयों का समंदर) कह कर अपने को उसमें गिरा हुआ बताती हैं।

मीरां के आस की नाव टूट रही है और वह विकार सागर में डूब सकती है इसलिए कृष्ण से तुरंत पाल बांधकर उन्हें डूबने से बचाने की अरदास करती हैं। मीरां अपने को विरहिणी बताते हुए कृष्ण रूपी प्रिय की प्रतीक्षा में आतुर बताती हैं और प्रार्थना करती हैं कि कृष्ण यह विरह पीड़ा मिटाकर उन्हें अपने पास रख लें। मीरां आगे कहती हैं कि वह राम की दासी हैं (राम कृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है)। उन्हें अपने शरण में लेकर उन्हें इस भवसागर से पार लगाएँ। मीरां उनकी शरण में आने की आतुरता व्यक्त करती हैं।

 

विशेष:

1.मीरां को जिस अटूट कृष्ण भक्ति के लिए स्मरण किया जाता है यह पद उसी की एक बानगी है।

2.ईश्वर भक्ति में भक्त की विह्वलता किसी प्रकार से हृदय विगलित करती है, पद इसका भी उदाहरण है।

3.संत कवियों की तरह मीरां ने भी संसार को विकार सागर की उपमा दी है।

4.दास्य भाव की भक्ति की उद्भावना हुई है।

5.वृत्यानुप्रास और अन्त्यानुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

6.राजस्थानी भाषा के सहज सौंदर्य का रसास्वादन किया जा सकता है।

7.शैली मार्मिक है।

8.गेय मुक्तकपद है।

9.प्रसाद गुण और पांचाली रीति है।

 

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

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