स्त्री की अस्मिता

स्त्री की अस्मिता

कितने कमाल की बात है,जिन सुविधाओं का महिलाओं के जरिये उपभोग कर रहे हैं, उन्हीं की उन्हें बधाई दी जा रही है!आपकी माँ, बहन, बेटी, पत्नी से परे भी उनका एक नागरिक की हैसियत से स्वतंत्र अस्तित्व है। सुपर वूमन के नाम पर उसे पूजनीय और सर्वगुणसम्पन्न साबित मत कीजिए।

वो भी आपकी ही तरह हाड़-माँस की इंसान है,वो भी ग़लतियाँ करती है, वो भी थकती है वो भी घूमने-फिरने और जॉब की आजादी आप जितनी ही चाहती है और यकीन करिए घर के काम करना वो माँ के पेट से सीखकर नहीं आती है। आपके और उनके स्कूल-कॉलेज का सिलेबस अलग अलग नहीं है।

ठोक पीट कर, बहला फुसलाकर या ताने देकर सब सिखाया जाता है.नहीं तो उनका मन भी आपकी तरह पका पकाया खाने को करता है, नहीं मन करता, सबके कपड़े धुलने का, कभी मन में झाँक कर देखिए सबको आराम पसंद आता है। मतलब कि संविधान में जो नागरिक है, घरों में वो माँ, बहन, बेटी के रूप में अनपेड वर्कर है और उसी रूप का महिमामंडन कर बधाई रूपी कर्तव्य की इतिश्री हो रही है। बंद कीजिए ये तमाशा!

(सिर्फ़, मां,बहन,बेटी, पत्नी,अलाय,बलाय नहीं है वो-एक मुकम्मल इंसान हैं, नागरिक हैं।)

 

© डॉ. संजू सदानीरा

 

इसी तरह स्त्री पर समाज के दृष्टिकोण को बयां करने वाली कविता पढ़ने के लिये कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे..

 https://www.duniyahindime.com/%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%97%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%80%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%95%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be/

 

2 thoughts on “स्त्री की अस्मिता”

Leave a Comment