सोधि जुगति कौ कन्त, कियौ तब चित्त चहुं दिस पद की व्याख्या

सोधि जुगति कौ कन्त, कियौ तब चित्त चहुं दिस पद की व्याख्या

 

सोधि जुगति कौ कन्त, कियौ तब चित्त चहुं दिस ।

लयौ विप्र गुरु बोल, कही समुझाय बात तस ।।

नर नरिन्द नरपति, बढ़े गढ़ द्रुग्ग असेसह ।

सीलवन्त कुल सुद्ध. देहु कन्या सुनरेसह ।।

तब चलन देहु पुज्जह लगन, सगुन बन्द हिय अप्प तन ।

आनन्द उच्छाह समुदह सिषर, बजत नद्द नीसांन धन।।

 

प्रसंग

प्रस्तुत पद आदिकाल के सर्वाधिक प्रसिद्ध और विवादास्पद महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय से लिया गया है। इस महाकाव्य की रचना महाकवि चंदबरदाई द्वारा की गयी है।

 

संदर्भ

इस पद में पद्मावती के पिता द्वारा उसके लिए योग्य वर को लग्न देने हेतु विप्र को प्रस्थान करने के प्रसंग का वर्णन किया गया है।

व्याख्या

जब पद्मावती किशोरावस्था में पहुंची तब तत्कालीन रूढ़ि अनुसार उसके पिता राजा विजयपाल को उसके विवाह की चिंता हुई। उन्होंने चारों दिशाओं में योग्य वर के लिए अपनी नज़रें दौड़ाई। जब उन्हें उचित निर्णय लेने में परेशानी आई तो उन्होंने इसके लिए अपने गुरु को बुलवाया। उन्हें अच्छी तरह से समझाया कि जो राजा सभी राजाओं में श्रेष्ठ, वीर, प्रतापी और वैभवशाली हो, जनता का प्रिय हो, उसका विशाल किला हो और जो चरित्रवान हो, ऐसे योग्य राजा को पद्मावती के वर के रूप में चुनें। राजा ने परंपरानुसार गुरु को पीढ़े (लकड़ी के पाटे) पर बिठाकर उनकी पूजा, अर्चना और तिलकार्पण करके उन्हें अपनी बेटी के लिए टीके की सामग्री देकर लग्न हेतु प्रस्थान करवाया ।

इस शुभ अवसर हेतु भेजते समय विजयपाल ने समस्त शुभ शगुन का भी ध्यान रखा और ईश्वर से गुरु के कार्य की सफलता के लिए प्रार्थना की। लग्न लेकर गुरु के जाने के समाचार को सुनकर संपूर्ण समुद्रशिखर प्रदेश में प्रसन्नता और उत्साह की लहर दौड़ गई। बादलों की गंभीर गर्जना के समान नगाड़ों की ध्वनि करके इस उत्साह को व्यक्त किया गया।

 

विशेष:

1.राजा की कन्या के विवाह हेतु उचित वर ढूंढने पहले गुरु को भेज दिया जाता था(जो ब्राह्मण ही होता था)।वह अपने राजा की पुत्री के योग्य वर को लग्न देने के लिए स्वतंत्र था। पद्मावती समय में भी उक्त परंपरा का पालन किया गया है।

2. पुत्री की किशोरी अवस्था को ही विवाह के योग्य समझ लिया जाना रूढ़ि से ही चला आ रहा है।

3.राजा की जाति के बजाय उसका वैभव, वीरता और शील का महत्त्व था, ऐसा भी दर्शाया गया है।

4. प्रजा राजा के सुख में तब भी ऐसे ही प्रफुल्लित होती थी, जैसे आधुनिक युग में नेताओं,अभिनेताओं,(सेलिब्रिटीज़) के लिए हो जाती है।

5.अनुप्रास का सौंदर्य है।

6.भाषा अपभ्रंश है।

7.शैली वर्णनात्मक है।

8.कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

कुट्टिल केस सुदेस पद की व्याख्या

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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