साठोत्तरी कविता की विशेषताएं : Sathottari kavita ki visheshtayen
प्रश्न- साठोत्तरी कविता की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
साठोत्तरी कविता में साठोत्तरी शाब्दिक अर्थ है साठ के बाद की अर्थात उन्नीस सौ साठ के बाद की वह कविता धारा जिसने हिंदी कविता को एक अलग रुप में प्रस्तुत किया।
देश की आज़ादी को पंद्रह बीस साल हो चुके थे। आजादी के बाद की नयी परिस्थितियों को देख कर ये कवि क्षुब्ध थे। इन्होंने गरीबी, असमानता और नैतिक पतन के खत्म हो जाने का जो सपना देखा था वह इन्हें धूमिल होता हुआ दिखाई दे रहा था।
ऐसी अवसादग्रस्तता और निराशा में जो कविता आई, वह साठोत्तरी कविता के नाम से हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठित है। धूमिल और रघुवीर सहाय इस कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। धूमिल की सुदामा पांडे का जनतंत्र और कल सुनना मुझे प्रमुख काव्य संकलन हैं। लोग भूल गए हैं, आत्महत्या के विरुद्ध, और कुछ पते कुछ चिट्ठियां रघुवीर सहाय के प्रमुख काव्य संकलन हैं।
साठोत्तरी कविता की प्रमुख विशेषताएं
1. मोहभंग-
साठोत्तरी कविता में जो मोहभंग की स्थिति है, वह उसे पूर्ववर्ती कविता से अलग पहचान दिलाती है। राजनीतिक अवस्था, मूल्य- वृद्धि, नेताओं के झूठे आश्वासन, बेरोजगारी इत्यादि ऐसी अनेक बातें थीं, जिन्होंने युवा कवियों का मोह भंग करने का काम किया।
उदाहरण-
मंत्री खिलखिला कर बढ़ता
भक्त बनता, पूंछ हिलाता
फिर आ रहा मतदान पेटी के पास
कवि अपने मन को राहत देने के लिए
संसद के उन लोगों पर
व्यंग्य करता है
जो बुराइयों को अपने भीतर छिपा कर
भोले भाले चेहरे बनाकर
देश हित की बात करने के लिए
आ बैठते हैं।
– धूमिल
2 अनिश्चितता, असंतोष और निर्मम वास्तविकताओं की कविता-
साठोत्तरी कविता का कवि तनाव और अनिश्चितता का सामना करके टूटते हुए इंसान की बात करता है। इंसान की पराजय पूर्ण स्थिति का मार्मिक चित्र इस कविता में मिलता है।
उदाहरण-
मैं बिल्ली की शक्ल में
छिपा हुआ चूहा हूँ
औरों को रौंदता हुआ
अपने से डरा हुआ बैठा हूँ।
3. राजनीतिक चेतना-
इस कविता के कवियों ने राजनीति पर पैने व्यंग्य करने के लिए राजनीतिक चेतना- शक्ति परबल दिया।इन्होंने आलोचनात्मक दृष्टि से हर बात को देखा और लिखा।
उदाहरण-
अपने यहाँ संसद तेली की घानी है
जिसमें आधा तेल आधा पानी है।
4. नयी संवेदना-
साठोत्तरी कविता की संवेदनाएं नये प्रकार की हैं। वे परिस्थितियों की सहज देन हैं। उनके भीतर तनाव होने के कारण बाहर सब ओर उनकी विसंगतियों पर नजर जाती है। उन्हें परंपरागत चीजें बासी लगती हैं।
उदाहरण-
कितना अच्छा था छायावादी
एक दुख लेकर एक जान देता था
कितना अच्छा था प्रगतिवादी
एक दुख का कारण वह पहचान लेता था
कितना महान था गीतकार
जो दुख के मारे अपनी जान ले लेता था
कितना अकेला हूँ मैं इस समाज में
जहाँ सदा मरता है एक और मतदाता।’’
-रघुवीर सहाय
5. प्रकृति का नूतन चित्रण-
इन कवियों ने प्रकृति का चित्रण भी छायावाद और प्रगतिवाद से अलग मानव मन की सहज ,सरल,संश्लिष्ट,विचलन-फिसलन की भाव भूमि पर किया, जो बहुत हद तक विश्वसनीय प्रतीत होता है।
उदाहरण-
पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास।
बन की रानी, हरियाली-सा भोला अन्तर
सरसों के फूलों-सी जिसकी खिली जवानी
पकी फसल-सा गरुआ गदराया जिसका तन
अपने प्रिय को आता देख लजायी जाती।
गरम गुलाबी शरमाहट-सा हल्का जाड़ा
स्निग्ध गेहुँए गालों पर कानों तक चढ़ती लाली जैसा
फैल रहा है।
हिलीं सुनहली सुघर बालियाँ!
उत्सुकता से सिहरा जाता बदन
कि इतने निकट प्राणधन
नवल कोंपलों से रस-गीले ओंठ खुले हैं
मधु-पराग की अधिकाई से कंठ रुँधा है।
– रघुवीर सहाय।
इस प्रकार साठोत्तरी कविता समाज के प्रति प्रतिबद्ध, राजनीतिक रूप से सचेत कविता धारा है। यह काव्य- धारा समसामयिक सत्य को अभिव्यक्ति देने का प्रयास करती है। इसमें साफ-साफ बात कहने की प्रवृत्ति के कारण लाक्षणिकता और व्यंजनापूर्ण सौंदर्य की कमी है।
यह सौंदर्यशास्त्र के प्रतिमानों की कविता नहीं है। आम मतदाता की आपाधापी और व्यवस्था की खामियों को दर्शाती यह काव्य धारा अत्यंत महत्वपूर्ण है तो यही इसकी सीमाएँ भी साबित हुई।
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https://youtu.be/3NPLpswsbF8?si=crs85sJMHcxEhUH8
© डॉ. संजू सदानीरा
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