समरथ को नही दोष गोसाईं की मूल संवेदना
सफ़दर हाशमी न सिर्फ़ एक सफल एकांकीकार और नाटककार थे,वरन एक ज़िम्मेदार नागरिक भी थे। वे सक्रिय कम्युनिस्ट थे,जिस वजह से उन्होंने अपनी नागरिक जिम्मेदारियों को पहचाना और पूरा किया। साहित्यकार न सिर्फ़ सुन्दर का सृजन करता है बल्कि हर प्रकार के सत्य का उद्घाटन भी करता है। समाज में कड़वे-मीठे हर प्रकार के सत्य विद्यमान होते हैं।ग़ैरज़िम्मेदार नागरिक और छलयुक्त लोग जिन सच्चाइयों पर पर्दा डालते हैं, सफ़दर हाशमी ने उन पर अपनी लेखनी की पैनी धार चलाई है।
समरथ को नही दोष गोसाईं एकांकी में मौजूदा समाज की विकराल समस्याओं-जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी,भुखमरी,लाचारी, बेकारी इत्यादि को सक्षम तरीके से उठाया गया है।साथ ही इस एकांकी ने उस नापाक गठजोड़ पर भी करारा व्यंग्य किया गया है,जो नेताओं,व्यापारियों,अफसरों और पुलिस के बीच होता है। भारत भूख से ग्रस्त लोगों वाले देशों में अग्रणी स्थान पर है।
हमारे देश में एक तरफ गोदामों में अनाज सड़ रहा है,राशन का बाकी सामान बेशुमार मात्रा में तालों में बंद है तो दूसरी तरफ जनता रोटी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही थी।सड़ते हुए अनाज को गरीब की रसोई के खाली बर्तन शर्मिन्दा कर रहे हैं। ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले को नेता समय नहीं देते हैं, अफसर महत्त्व नहीं देते और पुलिस मरहम नहीं देते ।यहाँ तक कि गिड़गिड़ाने पर भी व्यापारी मुट्ठी भर अन्न भी नही देते हैं।
सरकार हमेशा उनकी सुनती है,जो उनको जीतने के लिए चुनाव में चन्दा देते हैं।पुलिस उनकी सुनती है,जो रिश्वत देते हैं।इस कारण एक आम आदमी अपनी बात से न व्यापारी को डरा सकता,न पुलिस को धमका सकता है।वह बस बेबसी के आँसू बहा सकता है। जनता हवा खाती है और एम. सी. डी. के नल का पानी पीती है।बार-बार राजनीतिक दलों के टूटने पर भी एकांकीकार ने व्यंग्य किया है। एकांकीकार ने मदारी और जमूरे के रिश्ते को नेताओं के रिश्तों से मजबूत माना है।
एकांकी में एनजीओ(गैर सरकारी संगठनों) के भीतर घटित होने वाली अमानवीय गतिविधियों पर भी व्यंग्य किया गया है। व्यंग्य में पाखण्ड और पाखण्डी बाबाओं का भी मुखौटा उतारा गया है।एकांकी में सिर्फ़ निराशा ही नहीं है,बल्कि जनता को जागरुकता का संदेश और अपने हक़ के लिए लड़ने को तैयार रहने को भी कहा गया है।
एकांकी में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी और उसके मन्त्रियों की भी पोल खोली गई है। हर बात में पाकिस्तान और विपक्ष का हाथ होने को दिखाया है,जो कि आज भी प्रासंगिक है।
अंत में एकांकीकार ने अपने देश की जनता को समझदार और अगले चुनाव में सही निर्णय लेने वाली शक्ति के रूप मे दर्शाया है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि समरथ को नही दोष गोसाईं एकांकी मौजूदा हालात में सर्वथा प्रांसगिक है। एकांकी में दर्शाया गया है कि नेताओं, अफसरों और व्यापारियों का गठजोड़ जनता को दुःखी करता है और महंगाई,मिलावटखोरी,बेकारी आदि जनता की दुखती रग है,जिसका इलाज सबकी एकजुटता और समझदारी से ही संभव है।
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© डॉक्टर संजू सदानीरा
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