समकालीन कविता

समकालीन कविता

 

साहित्य के अनेक जानकार नयी कविता और साठोत्तरी कविता को ही समकालीन कविता बताते रहते हैं कुछ मायनो में यह बात ग़लत भी नहीं है। समकालीन कविता में भी आस्था का नया स्वर, परंपरागत के प्रति अनास्था, मोहभंग और सपाटबयानी जैसी विशेषताएं मौजूद हैं जो नई कविता और साठोत्तरी कविता में भी देखी जाती हैं ।बात उससे आगे की यह है कि कविता अब किसी चौहद्दी में नहीं बांधी जा सकती। धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, धूमिल और रघुवीर सहाय जैसे कवियों से होते हुए अब कविता चंद्रकांत देवताले, मंगलेश डबराल से होते हुए ऋतुराज, विहाग वैभव, नेहा नरूका, श्रुति कुशवाहा, मोहन मुक्त, जसिंता केरकट्टा, नीलेश रघुवंशी, रूपम मिश्र, प्रज्ञा सिंह, नाज़िश अंसारी, अदनान कफ़ील दरवेश और जाने-अनजाने अनेक नामों तक जाती है और यात्रा अनवरत जारी है।

समकालीन कविता अधिक प्रतिबद्ध हुई है। विभिन्न आयामों से गुजर रही है,उम्मीद जगा रही है। जो अब तक अछूते थे ,उन विषयों पर निर्भीकता से समकालीन कवि लिख रहे हैं।

 

समकालीन कविता की विशेषताएं

 

1.प्रतिबद्धता

इस युग के कवियों ने सामाजिक जीवन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने वाला काव्य लिखा है। हालांकि राज प्रशस्ति करने वाला काव्य समानांतर हर युग में लिखा जाता रहा है फिर भी निडरतापूर्वक अपनी जिम्मेदारी निभाता लेखन भी दिखाई देता है। कवि बेलौस तरीके से जब अपनी बात कविता के जरिए रखते हैं तो समकालीनता उनके लिए और भी समीचीन हो जाती है। युद्धों से झुलसती दुनिया का दर्द इन पंक्तियों में बयान करने की एक कोशिश –

आओ,

युद्ध-युद्ध खेलें,

गिलहरी,गौरैया और गेंदा

निकाल फेंके शब्दकोष से,

गन,गोले और गर्जना

को बना दें मांगलिक,

आओ बहा दें

गेह और नेह को दूर कहीं,

विस्थापन और विनाश को

बना लें भविष्य अपना,

राजनीति को “शहादत”

कह झेलें,

आओ,

युद्ध-युद्ध खेलें।

डॉ. संजू सदानीरा

 

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अर्थ, रस, गंध और स्पर्श

सब अपनी सवारियों से पलायन कर रहे हैं

और यही इस दौर की सबसे विकराल महामारी है

अगर नहीं तो

एक ऐसे मनुष्य से मिलाओ

जिसे मनुष्य कहकर पुकारूँ और वह पलटकर जवाब भी दे।

विहाग वैभव

 

2. विमर्श की नवीन संभावनाएं

समकालीन कविता में पिटे-पिटाए मुद्दों से बात आगे बढ़ती है। यहां पुरुष उस स्त्री से भी ईर्ष्यारत है जो अपनी प्रतिभा से बॉस के निकट है, तो वहीं स्त्री कैसे अपनी हाउस हेल्फ के लिए क्रूर है, यह भी यह कविता दिखाती है। घर-बाहर, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय हर मुद्दे पर समकालीन कविता बात करती है। कुमार अंबुज लिखते हैं –

 

“जब ढह रही हो आस्था

जब भटक रहे हों रास्ता

इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास”

××××

“जो कहते हैं कि हम छले गए स्त्रियों से

वो छले गए अपनी ही कामनाओं से”

 

3. अतीत का पुनर्पाठ

अतीत के ग्रंथों, देवों, अवतारों और मठाधीशों के कर्मों का सूक्ष्म निरीक्षण कर तमाम घटनाओं का पुनर्पाठ इस समय की कविताएं करती हैं। ध्यान से देखने पर गौरव गाथाओं के भीतर की सीलन भरी कहानियां इन कविताओं में बखूबी उभरती हैं। युवा कवि मोहन मुक्त की कविताएं इस काम को बखूबी करती हैं। उनकी एक कविता की पंक्तियां –

 

मैं खुश हूँ

कि मैं अपने पुरखों के बारे में नहीं जानता

मैं नहीं जानता क्योंकि वो इतिहास में नहीं हैं

वो इतिहास में नहीं हैं

क्योंकि वो आक्रमणकारी नहीं थे

उन्होंने कोई नगर नहीं जीते

कोई गाँव नहीं जलाये

उन्होंने औरतों के बलात्कार नहीं किये

उन्होंने अबोध बच्चों के सर नहीं काटे

वो धर्माधिकारी नहीं थे

वो ज़मींदार नहीं थे

निश्चित ही वो लुटेरे नहीं थे

मैं खुश हूँ कि मेरे पुरखों ने गाय और भैंस दोनों को खाया था

मैं खुश हूँ कि मेरे पुरखे आदमखोर नहीं थे।

 

4. अनास्था का स्वर

गढ़े गए बिंबों, प्रतीकों की श्रेष्ठता को ध्वस्त करती इस युग की कविताएं नए-नए सवाल करती हैं। आस्था के लिजलिजे प्रतीकों को ढहाकर उन पर मानवीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रश्नचिन्ह लगाती हैं। इसके साथ ही समकालीन कविताओं में प्रकृति एक प्रमुख पात्र है,न कि महज सौन्दर्य विधायक उपकरण।

 

मंदिर मस्जिद गिरजाघर टूटने पर

तुम्हारा दर्द कितना गहरा होता है

कि सदियों तक लेते रहते हो उसका हिसाब

पर जंगल जिनका पवित्र स्थल है

उसको उजाड़ने का हिसाब, कौन देगा साब ?

जसिंता केरकेट्टा

 

 

5. हाशिए के लोगों का लेखन

इस युग में ही सदियों से दमित, शोषित और प्रताड़ित लोगों का काव्य में प्रवेश हुआ। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, विकलांग विमर्श और आदिवासी विमर्श जैसे तमाम ज़रूरी विषय काव्य और साहित्य में प्रभावी रूप से दर्ज़ होने शुरू हुए।युवा आदिवासी कवि जसिंता केरकेट्टा लिखती हैं –

अ से अनार लिखा

उन्होंने कहा

आह! कितना सुंदर

आ से आम लिखा

उन्होंने आम के गुण गाए

जब अ से अधिकार लिखा

वे भड़क गए।

 

6. सहानुभूति और समानुभूति की पड़ताल

समकालीन कविता में सिंपैथी और एंपैथी को बहुत अच्छी तरह अलग-अलग करके दिखाया गया है। दया और उदारता, क्षमा और शेखी कुछ नहीं बच पाया है इस कविता से।

 

और मैं एकदम स्पष्ट कि

इतिहास से बहिष्कृत

और सभ्यताओं में तिरस्कृत लोग ही

बनायेंगे नया इतिहास

गढ़ेंगे नई सभ्यता

सबके लिए

सभी के लिए

-मोहन मुक्त

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दुनिया के वे पिता जिनके वीर्य से बच्चियाँ बनीं

काश खुद को ‘पुरुष बनने’ से बचा लेते!

तो ये बच्चियाँ कम से कम अपने आँगन में तो फुदक लेतीं

काश ये बच्चियाँ कुछ बरस चिड़िया बनकर जी लेतीं!!

तो मेरी उदास क़लम से ये शोकगीत न निकलता।

नेहा नरूका

×××

इसी दुनिया में बहुत लोग हैं हमारे जो बहुत सारा सच नहीं जान पाते

वे घरों में, दुकानों में ,खदानों में, सड़कों पर ,खेतों में काम करते जीवन बिताते हैं

उन्हें जानना चाहिए कि उमर एक ऐसा मनुष्य है जो सच और न्याय की एक ऊँची पामीर बना देता है

अन्यायी जिसपर चढ़ने की कोशिश करते हैं और मुँह के बल गिरते हैं

वे चाहते हैं कि हम उमर को भूल जाएं

उन्हें पता ही नहीं कि

हमने आत्मा में आजादी का एक पर्यावाची उमर लिख लिया है

धरती पर तरह-तरह के फूलों के खिलने के दिन हैं

और एक खूबसूरत फूल जेल में उदास है।

रुपम मिश्र

7. हास्य के साथ तीव्र व्यंग्य बोध

आज के दौर की बेतुकी बातों और विडंबनाओं को भी इन कविताओं में बड़ी बेबाकी से दर्ज किया गया है। सामूहिक पागलपन के बीच रोजगार और पेट की फ़िक्र करती यह पीढ़ी पूंजीवादी व्यवस्था के “वर्क कल्चर” पर सीधा प्रहार करती है। बोलो हंस कर,मारो कस कर की तर्ज पर लिखी एक कविता –

होंठों की नरमी

सीने की आग

सारी जवानी

दफ़्तर में ख़ाक

दफ़्तर में सुबह

दफ़्तर में शाम

घर पे जो पहुँचे

घर में भी काम

चूहे सी तनख़ा

अजगर से दाम

साहब को हरदम

ठोंके सलाम

साहब का टॉमी

टॉमी भी बॉस

ख़ादिम की जिनगी

कद्दू का सॉस।

श्रुति कुशवाहा

 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि समकालीन कविता अगर कुछ पुराने सोच वाले कवियों को ढो रही है तो बहुत सारे नए लोगों को भी साथ लेकर चल रही है । हिंदी कविता का यह दौर सामंतवाद, फासीवाद और पर्यावरण के खात्मे के ख़तरों के साथ-साथ- फेमिनिज्म, एंपैथी, भूमंडलीकरण, बाजारवाद इत्यादि सब कुछ को समेटे हुए चल रही है। शक है तो संदिग्ध प्रतिबद्धता से! ईमानदारी और आत्म निरीक्षण भी इस समय की कविता की महती अपेक्षा और पहचान है।

 

©डॉ. संजू सदानीरा

 

साठोत्तरी कविता की विशेषताएं : Sathottari kavita ki visheshtayen

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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