वृक्षत्व कविता का भावार्थ

 वृक्षत्व कविता का भावार्थ

 

नरेश मेहता आधुनिक हिंदी कविता में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वृक्षत्व कविता इनकी एक प्रमुख कविता है। प्रयोगवाद एवं नयी कविता धारा में जिन कवियों ने अपनी कृतियों से एक अलग पहचान बनाई,नरेश मेहता उनमें से एक हैं। ‘नकेनवाद’ के तीन कवियों में (नरेश मेहता, केसरी कुमार और नलिन विलोचन शर्मा) ये भी शामिल थे। अज्ञेय द्वारा संपादित “दूसरा सप्तक” में भी नरेश मेहता की कविताएँ संकलित थी। वन पारखी सुनो,उत्सवा, समय देवता,प्रार्थना पुरुष और संशय की एक रात इत्यादि नरेश मेहता की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं ।

वृक्षत्व कविता नरेश मेहता द्वारा रचित लघु आकार की एक सारगर्भित कविता है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने संज्ञा के साथ उसके विशेषण को कुछ इस तरह से संयुक्त किया है कि कविता न सिर्फ प्रभावोत्पादक बन पड़ी है बल्कि प्रेरणास्पद भी सिद्ध होती है।

कवि अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि एक दिन वे माधवी वृक्ष के नीचे बैठे थे और अचानक ऐसी हवा चली, जिससे डाली से फूल झर जाते हैं। ऐसे में अचानक ही फूलों का एक गुच्छा कवि पर आकर हौले से गिरा।कवि को माधवी वृक्ष का यह वृक्षत्व ( गुण) सुगंध से भर गया।

उसके बाद कवि को अपने ही एक व्यवहार की याद आती है। कवि को खयाल आता है कि कुछ दिन पहले एक भिखारी ने भीख के लिए लिए गुहार लगाई थी तो कवि ने द्वार पर आये उस याचक का स्वागत अपशब्दों और दुत्कार के साथ किया था।

कवि सोच रहे हैं कि जैसे वृक्ष के वृक्षत्व ने कवि को पुष्पांजलि और सुगंध से भर दिया था,वैसे ही कवि के व्यवहार ( मनुष्य की मनुष्यता )ने भिखारी को और चाहे जो भी दिया हो, सुगंधित अर्थात प्रसन्न तो नहीं ही किया। 

वृक्षत्व कविता में कवि बड़ी खूबसरती से चित्रित करते हैं कि हर संज्ञा (व्यक्ति, वस्तु, स्थान) की अपनी एक विशेषता होती है।ये अलग बात है कि किसी की विशेषता हृदय को प्रफुल्लित करती है, मन का संताप हरती है,तो किसी की विशेषता नकारात्मक होती है और मन को खेद से भरती है । इस प्रकार नूतन दृष्टिकोण से युक्त यह कविता सौन्दर्य बोध को एक मानवीय और आत्मिक स्पर्श प्रदान करती है।

© डॉ. संजू सदानीरा 

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वृक्षत्व- नरेश मेहता

 

 माधवी के नीचे बैठा था

 कि हठात् विशाखा हवा आयी

 और फूलों का एक गुच्छ 

 मुझ पर झर उठा;

 माधवी का यह वृक्षत्व

 मुझे आकण्ठ सुगंधित कर गया।

 

 उस दिन 

 एक भिखारी ने भीख के लिए ही तो गुहारा था

 और मैंने द्वाराचार में उसे क्या दिया?-

 उपेक्षा, तिरस्कार

 और शायद ढेर से अपशब्द।

 मेरे वृक्षत्व के इन फूलों ने

 निश्चय ही उसे कुछ तो किया ही होगा,

 पर सुगंधित तो नहीं की।

सबका

 अपना-अपना वृक्षत्व है।

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