राष्ट्रीय संविधान दिवस 26 नवम्बर: National constitution day

राष्ट्रीय संविधान दिवस 26 नवम्बर : National constitution day

 

राष्ट्रीय संविधान दिवस का महत्त्व और प्रासंगिकता में निरन्तर वृद्धि हो रही है। किसी भी देश को समुचित तरीके से चलाने के लिए कुछ निश्चित नियम, कानून या विधान होते हैं। जिसके आधार पर देश की शासन व्यवस्था कार्य करती है। प्रत्येक देश में इसमें थोड़ा बहुत फेरबदल हो सकता है, परंतु इसकी मूल भावना सार्वभौमिक मानवाधिकारों को सुनिश्चित करना होता है।

हमारे देश में इसके लिए जो सबसे प्रमुख विधान है, उसे हम संविधान (Constitution) कहते हैं। संविधान दो शब्दों से मिलकर बना है, सम + विधान अर्थात समान विधान यानी सभी के लिए बराबर विधान (कानून)। हमारा संविधान हमें अर्थात देश के सभी नागरिकों को एक समान दर्ज़ा देता है। संविधान के समक्ष देश के सभी नागरिक चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, क्षेत्र या नस्ल के हों- उनके साथ एक समान व्यवहार किया जाएगा। यह संविधान जनता द्वारा जनता के लिए बनाया गया है।

 पूरे विश्व में धीरे-धीरे लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना को प्रमुखता दी जा रही है और लोकतंत्र का सबसे मजबूत आधार है- संविधान।

 

राष्ट्रीय संविधान दिवस-

हमारा राष्ट्रीय संविधान दिवस प्रतिवर्ष 26 नवंबर को देशभर में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2015 में हुई, जब यह सुनिश्चित किया गया कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। 26 नवंबर वह ऐतिहासिक दिन है, जब 1949 में हमारा संविधान पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ था। इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। ग़ौरतलब है कि, संपूर्ण रूप से संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

 

राष्ट्रीय संविधान दिवस का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-

संविधान का निर्माण संविधान सभा के द्वारा किया गया था और संविधान सभा बनाने का विचार सर्वप्रथम 1934 में एम एन रॉय के द्वारा व्यक्त किया गया। 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की मांग की। इसके बाद 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि संविधान सभा ही संविधान का निर्माण करेगी।

इसके बाद 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता सबसे उम्रदराज सदस्य होने के नाते सच्चिदानंद सिन्हा ने की। इसके बाद 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष बनाया गया। संविधान निर्माण के संवैधानिक सलाहकार बीएन रॉय थे। 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव लाया गया, जिसका उद्देश्य संविधान का निर्माण करना था।

आज़ादी के बाद 29 अगस्त 1947 को मसौदा समिति बनी, जिसके अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर थे। इनके अलावा समिति के अन्य सदस्यों में गोपाल स्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, केएम मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, बीएल मित्र और डीपी खेतान थे। 

 

संविधान निर्माण की प्रक्रिया-

संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान सभा का पहला वाचन 4 नवंबर 1948 को हुआ, जिसमें 5 दिन चर्चा हुई। इसमें 9 महिलाओं समेत कुल 207 सदस्य शामिल थे। सभा का दूसरा वाचन 15 नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तक चला। संविधान का दूसरा वाचन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें सबसे अधिक समय तक विचार विमर्श और चर्चा हुई। जबकि तीसरा वाचन 14 नवंबर 1949 से 26 नवंबर 1949 तक चला।

इस प्रकार 26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण का कार्य औपचारिक रूप से सम्पन्न हुआ। ग़ौरतलब है कि, प्रस्तावना को सबसे अंत में जोड़ा गया। इस प्रकार संविधान निर्माण में कुल 2 साल, 11 माह और 18 दिन का समय लगा। मूल रूप से संविधान को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अंग्रेजी में लिखा, इसके लिए इन्हें 6 महीने का समय लगा। संविधान का हिंदी संस्करण बसंत कृष्ण बैती ने लिखा। इस पर चित्रकारी का कार्य नंदलाल बोस और राम मनोहर सिन्हा द्वारा किया गया।


संविधान से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

26 जनवरी 1949 को जब संविधान पारित किया गया तब इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और आठ अनुसूचियां थी, परन्तु वर्तमान में संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं। संविधान को और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसमें समय-समय पर संशोधन होते आ रहे हैं, परंतु इसकी मूल संरचना को यथावत रखने के निर्देश हैं।

भारतीय संविधान सबसे ज्यादा 1935 के भारत शासन अधिनियम से प्रेरित है। संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 के अधिनियम से या तो यथावत हैं या थोड़ा बहुत संशोधन के साथ लिए गए हैं। इसके अलावा भारतीय संविधान के निर्माण में विदेशी स्रोतों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका से मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं वित्तीय आपात जैसी अवधारणाएं ली गए हैं।

ब्रिटेन से संसदीय प्रणाली, एकल नागरिकता और विधि निर्माण प्रक्रिया को शामिल किया गया है। आयरलैंड से नीति निर्देशक सिद्धांत, राज्यसभा में सदस्यों का मनोनयन आदि जबकि आस्ट्रेलिया से केंद्र राज्य संबंध, प्रस्तावना की भाषा और संसदीय विशेषाधिकार लिए गए हैं। इसी प्रकार रूस से मौलिक कर्तव्य, दक्षिण अफ्रीका से संविधान संशोधन की प्रक्रिया, जापान से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया जैसी अवधारणाएं संविधान में शामिल की गई हैं।

 

राष्ट्रीय संविधान दिवस के समक्ष चुनौतियां –

डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा था, “मैं समझता हूं कि कोई संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। एक संविधान चाहे जितना बुरा हो, वह अच्छा साबित हो सकता है, यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्छे हों।” इसका उदाहरण हमें अपने दैनिक जीवन में देखने को मिलता रहता है।

संविधान के मौलिक अधिकारों में किसी भी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र नस्ल इत्यादि के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध है, परंतु वास्तविकता क्या है इससे कोई भी अनजान नहीं हैं। फासीवाद, पूंजीवाद, सामंतवाद और रूढ़िवाद संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के सबसे बड़े दुश्मन साबित हो रहे हैं। परंपरा, संस्कृति और सभ्यता के नाम पर शोषण और अमानवीय व्यवहार को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

 

संभावनाएं-

भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को समान दर्ज़ा देता है और न्यायपूर्ण समानता के लिए इसमें विभिन्न प्रावधान भी किए गए हैं परंतु इसकी सार्थकता तभी होगी, जब इसको समुचित तरीके से लागू किया जाए। किसी भी देश का विकास तभी हो सकता है, जब इसका लाभ समाज के अंतिम/हाशिए के व्यक्ति तक समान रूप से पहुंचे।

न सिर्फ़ सरकार बल्कि देश के सभी नागरिकों को इसके लिए आगे आना होगा और पूरे मनोयोग से प्रयास करना होगा। आज संविधान दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि व्यक्तिगत स्तर पर हम संवैधानिक मूल्यों का पालन करें और लोगों में इसके लिए जन-जागरुकता लाने का प्रयास करें। 

 

© प्रीति खरवार

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