राणा जी थे जहर दियो म्हें जाणी पद की व्याख्या

राणा जी थे जहर दियो म्हें जाणी पद की व्याख्या

 

राणा जी थे जहर दियो म्हें जाणी।

जैसे कंचन दहत अगिन में निकसत बारह बाणी।

लोक लाज कुल काण जगत की दई बहाय जसपाणी॥

अपने घर का परदा कर ले मैं अबला बौराणी।

तरकस तीर लग्यो मेरे हियरे गरक गयो सनकाणी॥

सब संतन पर तन मन वारों चरण कँवल लपटाणी।

मीरा को प्रभु राखि लई है दासी अपणी जाणी।।

 

प्रसंग

प्रस्तुत पद राणा जी थे जहर दियो म्हें जाणी राजस्थान की प्रख्यात भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है।

 

संदर्भ

इस पद में मीरांबाई को राजघराने के उनके देवर के द्वारा जहर दिए जाने और उनकी एकनिष्ठ कृष्ण भक्ति का चित्रण किया गया है।

 

व्याख्या

मीरां कहती हैं कि राणा जी ने उन्हें धोखे से जहर दिया था, जिसका उनको अच्छी तरह पता है। जैसे सोना अग्नि में तप कर शुद्ध स्वर्ण (कुंदन) बनाकर निखरता है वैसे ही मीरां अपनी अग्नि परीक्षा (जहर दिए जाने की घटना से) अब तप कर पूर्ण रूप से राजसी जीवन के झूठे घमंड से बाहर आकर कृष्ण भक्ति में अपने को लीन कर चुकी हैं।

लोक लाज (समाज की मान्यताओं) को मीरां ने बहा दिया है। उन पर स्त्री होने के नाते घर के भीतर रहने के जो दबाव थे वह उन्होंने नहीं माना और अपनी स्वतंत्र सोच के साथ नई रीतियों की नींव रखी।मीरा ने पति की मृत्यु के बाद न सिर्फ सती होने से इनकार किया बल्कि घर में कैद रहना भी नामंजूर किया। पति के रहते भी उनकी कृष्ण भक्ति में कोई कमी नहीं आई थी क्योंकि उनके पति को मीरां की कृष्ण भक्ति की गहराई का भान हो गया था।

लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके खानदान के पुरुष नहीं चाहते थे कि मीरा पहले की तरह भक्ति भाव में लीन रहें, संत समाज से विमर्श करें, इसमें उन्हें अपने राज घराने का अपमान दिखाई देता था जबकि मीरा कृष्ण भक्ति के समक्ष और किसी चीज को मूल्य नहीं देती थीं। इसीलिए उन रिश्तेदारों ने इन्हें मारने की कोशिश की।

मीरां कहती हैं कि रोक-टोक करने वाले दकियानूसी लोग उनसे अपने घर की स्त्रियों को दूर रखें, क्योंकि मीरां का तो दिमाग खराब हो गया है। (आजादी पसंद औरतों को अकसर सुनना पड़ता है कि उनका दिमाग खराब हो गया है) मीरा तो बस अपने दिल की सुनती हैं।

बाकी महिलाओं का ध्यान रखें उनके घरवाले मीरा के तो हृदय में भक्ति का तरकश लग गया है। उनकी तो बुद्धि सटक गई है। मीरा ने अपना तन-मन संतों पर वार दिया है (न्योछावर कर दिया है) और भगवान श्री कृष्ण के चरण कमल से उनका जी लिपट चुका है।

मीरां कहती है कि उनको तो उनके प्रभु श्री कृष्ण ने अपनी दासी जानकर (समझकर) अपने पास रख लिया है अर्थात जागतिक क्रिया व्यापारों से उनका कोई नाता रह नहीं गया है।

 

विशेष

1.मीरां की कृष्ण भक्ति के मार्ग की पारिवारिक बाधाओं का चित्रण इस पद में किया गया है।

2.मीरां उस जमाने में जितनी आज़ादख़याल थीं, उसका भी सटीक चित्रण पद के माध्यम से किया गया है।

3.मीरां जिस प्रकार से मर्दों को अपने घर की महिलाओं को संभाल कर रखने की बात कहती है वह एकदम व्यंग्यात्मक और तब के हिसाब से चुनौतीपूर्ण है।

4. मैं अबला बौरानी में अबला और बौराना दोनों शब्द अत्यंत सार्थक हैं।

4.राजस्थानी भाषा का सौंदर्य द्रष्टव्य है।

5.शैली व्यंग्यात्मक व मार्मिक दोनों है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

इसी तरह मीरांबाई के एक अन्य पद माई म्हें तो गोविन्द के गुण गास्यां की व्याख्या हेतु नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें…

 

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