रस एवं रस के भेद
रस भारतीय काव्यशास्त्र में प्राचीन समय से समझा और परिभाषित किया जाता रहा है। काव्य की आत्मा के संबंध में अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, औचित्य,ध्वनि और रस संबंधी मतों में से बाद में रस को काव्य की आत्मा सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।( हालांकि आधुनिक कविता के साथ यह उस तरह से प्रासंगिक नहीं रह गया।)
रस की परिभाषा
जिस प्रकार किसी सुंदर स्थान को देखने अथवा किसी स्वादिष्ट वस्तु को खाने में सुख मिलता है उसी प्रकार काव्य (साहित्य) के किसी भी रूप को देखने (नाटक), सुनने अथवा पढ़ने से मिलने वाले आनंद को रस कहा जाता है ।नाट्यशास्त्र के आधार पर रस को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- “विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति:” अर्थात विभाव अनुभाव और व्यभिचारी (संचारी) भावों के स्थायी भाव के समीप आकर अनुकूलता ग्रहण करने से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के भेद
प्रारंभ में भरत मुनि ने काव्यशास्त्र संबंधी अपनी रचना नाट्यशास्त्र में रसों की कुल संख्या 8 मानी थी क्योंकि उसे समय काव्य का एक ही रूप नाटक प्रचलित था जहां आठ रसों से काम चल जाता था । निर्गुण संत कवियों की संसार को असार बताने वाली वैराग्यपूर्ण रचनाओं के बाद शांत रस के रूप में नौवें रस की उद्भावना हुई। तुलसी, मीरा और रसखान जैसे कवियों की हृदय की गहराई से अपने इष्ट के लिए लिखे गए काव्य के बाद दसवें रस के रूप में भक्ति रस की परिकल्पना की गई।
ईश्वर के बाल रूप की कल्पना करके जब सरस, सहज और मनोवैज्ञानिक चित्रणयुक्त काव्य लिखा गया विशेष कर सूर का कृष्ण के बाल रूप का मानोहारी चित्रण तब ग्यारहवें रस के रूप में वत्सल को रस के रूप में स्वीकृति मिली ।अतः संप्रति रसों की कुल संख्या ग्यारह है ।आगे सभी रसों का क्रमिक वर्णन सोदाहरण किया जाएगा।
1.शृंगार रस
शृंगार रस को रसराज कहा जाता है। विभाव,अनुभाव एवं संचारी भावों के सहयोग से अभिव्यक्त होने वाला पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका का रति स्थाई भाव से परिपक्व होने वाला रस शृंगार रस कहलाता है। इसका विवेचन इस प्रकार है..
स्थायी भाव- रति
आलंबन विभाव- नायक-नायिका
उद्दीपन विभाव- वसंत ऋतु, पुष्प वाटिका, चांदनी रात, वन विहार, मधुर संगीत।
अनुभाव- नेत्रों का मिलन,कटाक्ष, मुस्कुराना,आलिंगन इत्यादि।
शृंगार रस के दो भेद माने गए हैं..
1) संयोग शृंगार
2) वियोग अथवा विप्रलम्भ शृंगार
1) संयोग शृंगार
नायक-नायिका के परस्पर दर्शन,मिलन,श्रवण, स्पर्श, आलिंगन और वार्तालाप इत्यादि द्वारा पूर्णता को प्राप्त होने वाला रति नामक मनोविकार स्थायी भाव संयोग शृंगार में परिणत होता है।
उदाहरण
राम को रूप निहारत जानकी, कंकण के नग की परछाईं
या ते समय सुधि भूलि गई, पल टेक रही पल टारत नहीं।
स्थाई भाव- रति
संचारी भाव- चिंता स्मृति वितर्क
अनुभाव- वाचिक अनुभाव, आश्रय- सीता, आलंबन-राम
उद्दीपन- सूना प्रांत, पर्ण कुटी, सुंदर वाटिका
2) वियोग शृंगार
नायक नायिका के बिछड़ जाने से वियोग शृंगार की अभिव्यंजना होती है, अर्थात नायक-नायिका के आपसी दर्शन, श्रवण, आलिंगन अथवा बातचीत इत्यादि के संबंध में जब कोई व्यवधान उत्पन्न हो जाता है तब रति स्थायी भाव युक्त वियोग शृंगार की स्थिति बनती है।
उदाहरण
हे खग हे मृग है श्रावक श्रेणी
तुम देखी सीता मृगनयनी
***
निस दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहत पावस ऋतु इनमें
जब ते स्याम सिधारे
दृग अंजन लागत नहीं कबहूं
उर कपोल भई कारे
कंचुक नहिं सूखत सुन सजनी
उर विच बहत बनारे।
आश्रय- गोपियां
आलंबन- श्रीकृष्ण
उद्दीपन- वर्षा ऋतु
अनुभाव- गोपियों का रोना, आहें भरना
संचारी भाव- आवेग, चिंता, विषाद, जड़ता
इनके सहयोग से रति की पूर्णता वियोग शृंगार में परिणत हुई है।
2. हास्य रस
हास्य रस का स्थायी भाव हास है। इसका आलंबन विलक्षण आकृति वाले प्राणी, हंसी जगाने वाली वस्तुएं एवं विकृत वचन वाले मनुष्य और दर्शक इसके आश्रय हैं। इसके उद्दीपन में हास्य उत्पन्न करने वाली चेष्टाएं, अनोखी वेशभूषाएं और वचन को लिया जा सकता है। अनुभाव है आश्रय की हंसी,आंखों का मींचना, बंद करना ,मुख का फैल जाना इत्यादि।
उदाहरण
नाक चढ़ै सी-सी करे जिते छबीली छैल
फिरि फिरि भूलि वहीं गहै त्यौं के करीली गैल।
आलंबन- नायिका
उद्दीपन विभाव- नायिका का सी-सी करना
अनुभाव- नायक का हास्य
संचारी भाव- नायिका को सी-सी करते देखने की उत्सुकता, चपलता
3. करुण रस
स्थायी भाव- शोक
आलंबन- पीड़ित या मृत व्यक्ति
उद्दीपन विभाव- उससे संबंध रखने वाली वस्तुएं तथा अन्य संबंधी
अनुभाव- भाग्य को कोसना, रोना, विलाप करना, धरती पर गिरना, सिर पीटना, छाती कूटना
संचारी भाव- मोह, व्याधि, स्मृति, ग्लानि, विषाद, उन्माद, जड़ता, चिंता इत्यादि।
परिजनों की दुखांत के कारण करुण रस की अभिव्यंजना होती है।
उदाहरण
तुम्हारे मसृण अंगों को सहलाया था इन्होंने, इन्हें जीवन मिला था अब यह अग्नि को सहलाएंगे, आंसू बहाएंगे रुधिर के, जल गई जिजीविषा, मृत जीवन!
***
कौरवों का श्राद्ध करने के लिए
या कि रोने को चिता के सामने
शेष अब है रह गया कोई नहीं
एक वृद्धा एक अंधे के सिवा ।
आलंबन- विनाश
उद्दीपन- चिंता
संचारी भाव- ग्लानि, चिंता, लज्जा
स्थायी भाव- शोक
आश्रय- युधिष्ठिर
4. वीर रस
आततायी शत्रु के प्रभाव हेतु वीर व्यक्ति के कार्यों की अभिव्यंजना वीर रस का परिपाक कराती है।
स्थाई भाव- उत्साह
संचारी भाव- हर्ष, धृति, गर्व ,असूया, ईर्ष्या
आलंबन विभाव- शत्रु का उत्कर्ष और आतंक
आश्रय- प्रतिपक्षी
उद्दीपन विभाव- मारू राग आदि तथा रणभेरी का बजाना, रण कोलाहल इत्यादि
अनुभाव- अंग स्फूरण, रक्तिम नेत्र आदि।
उदाहरण
देख रण में रिपुओं की बाढ़
रक्त नैन स्फुरित बाहु पृथ्वीराज
मेघ खण्डों को छिन्न-भिन्न करती
सौदामिनी चंद्रहास ,खेलता सा बढ़ चला।
आलंबन- गौरी की सेना
उद्दीपन- सेना की बाढ़
अनुभाव- पृथ्वीराज के रक्तिम नेत्र, बाहु स्फुरण
संचारी भाव- उग्रता का आवेग। वीर रस का परिपाक हुआ है।
5. अद्भुत रस
विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से पुष्ट विस्मय स्थायी भाव से अद्भुत रस का परिपाक होता है। इसका अनुभव विचित्र साज सज्जा या अलौकिक रूप अथवा वस्तु के दर्शन से होता है।
उदाहरण
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,
क्षण भर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया.
***
अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।
चकित भई गद्गद बचन,विकसित दृग पुलकातु.
स्थायी भाव- विस्मय
आलंबन – श्रीकृष्ण
आश्रय- यशोदा
उद्दीपन – श्रीकृष्ण का मुंह खोलना
अनुभाव – यशोदा का मुंह आश्चर्य से खुला रह जाना, आंखें फैल जाना।
संचारी भाव – आवेग,वितर्क ,मति,हर्ष, स्मृति, त्रास।
6. वीभत्स रस
किसी घृणित वस्तु को देखने या सुनने से जहां घृणा या जुगुप्सा का भाव परिपुष्ट हो वहां वीभत्स रस का परिपाक होता है।
स्थाई भाव- जुगुप्सा
आलंबन विभाव- घृणास्पपद वस्तु या कार्य
उद्दीपन विभाव- आलंबन का कार्य
अनुभाव- मुंह मोड़ना, नाक व आंखें बंद करना,थूकना
संचारी भाव- मोह,असूया, अपस्मार, आवेग।
उदाहरण
यह पराजित युद्ध क्षेत्र शवापूरित
गीध गीदड़ स्वान वायस पूर्ण
दुर्गंध का उन्मुक्त पारावार
पिशाचिनी का नाच।
आलम्बन- क्षत विक्षत युद्ध क्षेत्र
उद्दीपन- लाशों का विद्रूप
7. भयानक रस
भयानक वस्तु या कार्य की अभिव्यक्ति से भयानक रस की उत्पत्ति होती है।
स्थाई भाव- भय
आलंबन विभाव- बाघ, चोर, भयंकर वन इत्यादि
उद्दीपन विभाव- आलम्बनगत चेष्टाएं
अनुभाव- गिड़गिड़ाना,आंखें बंद करना
संचारी भाव- दैन्य, जड़ता, मोह।
उदाहरण
एक ओर अजगरहिं लखि, एक और मृग राय
विकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय।
आलंबन विभाव- अजगर और सिंह
उद्दीपन विभाव- दोनों की भयंकर आकृति तथा चेष्टा
अनुभाव- पथिक की व्याकुलता और मूर्छा
संचारी भाव- स्वेद, कंप रोमांच आवेग
8. रौद्र रस
क्रोध से इंद्रियों की प्रबलता या प्रसार रौद्र रस की अभिव्यंजना कराती है।
स्थायी भाव- क्रोध
आलंबन विभाव- अपराधी व्यक्ति अथवा शत्रु
उद्दीपन विभाव- शत्रु की गर्वोक्ति
अनुभाव- नेत्रों का रक्तिम होना, होंठ चबाना, त्योरियां चढ़ाना
संचारी भाव- मद, उग्रता, अमर्ष, स्मृति
उदाहरण
तुमने धनुष तोड़ा शशि शेखर का
मेरे नेत्र देखो
इनकी आग में डूब जाओगे सवंश राघव
गर्व छोड़ो काट कर समर्पित कर दो अपने हाथ
मेरे नेत्र देखो
इसमें राम परशुराम के क्रोध के आलंबन हैं।
उद्दीपन विभाव परशुराम के रक्तिम नेत्र और गर्वोक्ति अनुभाव है, उग्रता और मद यहां संचारी भाव है।
9. शांत रस
हृदय में शांति उत्पन्न करने की प्रायोजक अभिव्यंजना शांत रस का बोध कराती है अर्थात असार सांसारिक वस्तुओं की क्षणभंगुरता और परमात्मा के स्वरूप का आभास होने से संतों एवं भक्तों के हृदय को एक ऐसी शांति मिलती है जो उन्हें सांसारिक भोगों के सेवन से नहीं मिलती है।
स्थायी भाव- निर्वेद
आलंबन विभाव- निर्वेद उत्पन्न करने वाली वस्तुएं या घटनाएं
उद्दीपन विभाव- सत्संग, पुण्याश्रम, तीर्थ, एकांत के प्रति समर्पित दार्शनिक दृष्टिकोण
अनुभाव- रोमांच, दृढ़ता
संचारी भाव- मोह हर्ष मति
उदाहरण
ओ क्षण भंगुर भव राम राम
मैं भाग रहा हूं भार देख
तू मेरी और निहार देख
मैं त्याग चला निस्सार देख
अटकेगा मेरा कौन काम
ओ क्षण भंगुर भव राम राम
आश्रय- सिद्धार्थ
आलंबन- क्षण भंगुर भव (नश्वर संसार)
उद्दीपन- उसकी निस्सारता, क्षणभंगुरता की प्रतीति तथा रोग, भोग, लोभ इत्यादि में लिप्त होना
अनुभाव- सिद्धार्थ का वैभव छोड़कर चले जाना
संचारी भाव- धृति, मति, निर्वेद इत्यादि
10. वात्सल्य रस
विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सहयोग से व्यक्त वात्सल्य नामक स्थायी भाव को वात्सल्य रस कहते हैं। माता-पिता का अपनी संतान पर जो हार्दिक स्नेह होता है, उसी को वात्सल्य रस की अभिधा प्राप्त है अर्थात पुत्र/संतान विषयक रति (वत्सल)
स्थायी भाव- वत्सलता
आलंबन विभाव- बच्चों की क्रियाएं
उद्दीपन विभाव- आलंबन की चेष्टाएं
अनुभाव- स्नेह से देखना, आलिंगन, चुंबन इत्यादि
संचारी भाव- हर्ष, गर्व
उदाहरण
प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहां है
दुख जल निधि डूबी का सहारा कहां है
पल-पल जिसके पंथ को मैं देखती हूं
निसि दिन जिसके ही ध्यान में हूं बिताती ।
आलंबन- प्राण प्यारा पुत्र अर्थात कृष्ण
आश्रय- यशोदा
उद्दीपन- कृष्ण का अभाव
अनुभाव- यशोदा का प्रलाप
संचारी भाव- चिंता स्मृति तथा शंका ।
***
किलक भरे मैं नेह निहारूं
इन दांतों पर मोती वारूं
पानी भर आया फूलों के मुख में आज सबेरे
हां गोपा का दूध जमा है राहुल मुख में तेरे
लटपट चरण चाल अटपटसी मन आई है मेरे
तू मेरी अंगुलि धर अथवा मैं तेरा कर धारूं
इन दांतों पर मोती वारूं।
11. भक्ति रस
इष्ट देव के प्रति रति भाव की अभिव्यंजना भक्ति रस का परिपाक कराती है ।ईश्वर या इष्टदेव विषयक प्रेम)।
स्थायी भाव- ईश विषयक रति
आलंबन- आराध्य देवता (राम, कृष्ण , दुर्गा इत्यादि)
उद्दीपन विभाव- आराध्य के रूप उनके कार्य (धर्म-चर्चा, श्रवण, सत्संग इत्यादि)
अनुभाव- रोमांच,गदगद होना, अश्रुपात
संचारी भाव- जुगुप्सा ।
उदाहरण
बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनी मूरत, साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती माल
छुद्रघंटिका कटितट सोभित, नूपुर सबद रसाल
मीरां प्रभु संत
न सुखदाई भगत बछल गोपाल॥
***
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई
साधुन संग बैठि बैठि लोकलाज खोई
अब तो बात फैल गई जानत सब कोई
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई
मीरा को लगन लगी होनी होई सो होई।।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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