मोर पखा सिर ऊपर राखिहौ पद की व्याख्या

मोर पखा सिर ऊपर राखिहौ पद की व्याख्या

 

मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माला गरे पहिरौंगी।

ओढि पितंबर लै लकुटी वन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥

भाव तो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

 

प्रसंग

प्रस्तुत सवैया मोर पखा सिर ऊपर राखिहौ लोकप्रिय कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित है।

 

संदर्भ

कृष्ण के रूप-लावण्य पर मुग्ध और उनकी भक्ति में लीन हुई कोई गोपी अपनी सखी दूसरी गोपी से जो कहती है, जो अभिलाषा व्यक्त करती है, उसका चित्रण इस पद में हुआ है।

 

व्याख्या

कृष्ण के प्रति अनुरक्त कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि वह अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के जैसे दिखना चाहती है। वह कृष्ण की तरह अपने सिर पर मोर पंख धारण करेगी और गले में मोतियों की माला पहनेगी। जिसे पहनकर श्रीकृष्ण ग्वाल बालों के साथ गोधन लेकर वन में चराने जाते हैं। वैसे ही वह गोपी भी पीतांबर ओढ़ कर हाथ में लाठी लेकर गोधन को चराने ग्वाल बालों के साथ घूमेगी।

ग़ौरतलब है कि पीला दुपट्टा (पीतांबर) श्रीकृष्ण का प्रिय वस्त्र है। रसखान कहते हैं कि गोपियां श्री कृष्ण की तरह दिखने के लिए सारे स्वांग (अभिनय/नाटक) करेंगी।

श्रीकृष्ण ने जिस मुरली को अपने होठों से लगातार लगाया है ,बस उसे अपने होठों पर नहीं रखेगी। यहां गोपी के मन के दो भिन्न भावों को समझा जा सकता है। प्रथम कि श्रीकृष्ण के अधर का स्पर्श पाकर उनकी जूठी हो जाने के कारण वो उसे अपने अधर पर नहीं धरेंगी। द्वितीय यह कि बांसुरी कृष्ण को इतनी प्रिय थी इसलिए वह इसे धरा पर नहीं धरेगी ( रखेगी) । यहाँ बांसुरी के प्रति ईर्ष्या का भाव भी हो सकता है क्योंकि अन्यत्र किसी सवैये में रसखान इस प्रकार के भावों का उल्लेख भी कर चुके हैं।

 

विशेष

1.अपने प्रिय पात्र के जैसा दिखने की चाह के मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण मोर पखा सिर ऊपर राखिहौ पद में हुआ है।

2.भक्त का भगवान के प्रति अतिशय आकर्षण एवं तादात्मीकरण देखने योग्य है।

3.ब्रजभाषा का स्वाभाविक सौंदर्य द्रष्टव्य है। शैली मनोवैज्ञानिक एवं मार्मिक है।

4.भक्ति रस एवं सवैया छंद का सुंदर संयोग मनमो

 

 

© डॉ. संजू सदानीरा

इसी तरह अगर आप या लकुटी अरु कामरिया पद की व्याख्या पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिये लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं…

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