मानुस हौं तो वही रसखान सवैये की व्याख्या
मानुस हौं तो वही रसखान बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरा चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन।।
प्रसंग
प्रस्तुत सवैया प्रसिद्ध कवि रसखान द्वारा रचित है। पाठ्यक्रम में इसे रसखान रचनावली से लिया गया है, जो प्रख्यात साहित्यकार विद्या निवास मिश्र द्वारा संपादित है।
संदर्भ
रसखान की अटूट कृष्ण भक्ति के साथ-साथ प्रेमाभक्ति का भी सुंदर उदाहरण इस पद के द्वारा व्यक्त हुआ है।
व्याख्या
रसखान श्रीकृष्ण के प्रति अगाध भक्ति भावना से भरकर अपने मन की साध व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि अगर उन्हें फिर से मनुष्य योनि में जन्म मिले या वास्तव में इस संसार में किसी का जन्म हो तो गोकुल गांव के ग्वाले के रूप में हो। अगर मनुष्य के बजाय पशु रूप में जन्म मिले तो गोकुल में नंद जी की गायों के बीच एक गाय या गोधन के रूप में जन्म हो। पशु का स्वयं पर वश नहीं पर गायों के झुंड में नंद जी के बाड़े में पशु के रूप में रहने का अवसर तो मिलेगा। यदि पत्थर के रूप में उत्पत्ति हो तो उस गोवर्धन पर्वत का भाग बनने का अवसर प्राप्त हो जिसे इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर धारण कर लिया था और यदि पंछी के रूप में जन्म मिले तो कालिंदी (यमुना) नदी के तट पर उपवन में कदंब के पेड़ पर नीड़ हो।
ध्यातव्य है कि यमुना किनारे श्रीकृष्ण का गोपियों संग रास रचाने की कथा प्रसिद्ध है।
कवि चाहते हैं कि पक्षी के रूप में उन्हें उस मनोहरी वातावरण में उन दिव्य क्षणों का साक्षी बनने का लाभ प्राप्त होगा।
विशेष
1. भक्ति से ओत-प्रोत इस पद में रसखान की श्रीकृष्ण के प्रति नैकट्य की लालसा व्यक्त की गई है।
2.कवि प्रेमा भक्ति के वशीभूत होकर पशु,पक्षी ही नहीं पत्थर तक बनने को तैयार हैं।
3.कालिंदी कूल कदम्ब की डारन में अनुप्रास का सौंदर्य विद्यमान है।
4.सवैया छंद में रचित यह रसखान का अत्यंत लोकप्रिय पद है।
5.भाषा ब्रजभाषा है एवं भक्ति रस का सुंदर परिपाक हुआ है।
© डॉ. संजू सदानीरा
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