माधव मोह-पास क्यों छूटै पद की व्याख्या

 माधव मोह-पास क्यों छूटै पद की व्याख्या : Madhav moh paas kyo chhute 

 

“माधव मोह-पास क्यों छूटै।

बाहर कोट उपाय करिय अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै॥1॥

घृतपूरन कराह अंतरगत ससि प्रतिबिम्ब दिखावै।

ईंधन अनल लगाय कल्पसत औंटत नास न पावै 2॥

तरु-कोटर मँह बस बिहंग तरु काटे मरै न जैसे।

साधन करिय बिचारहीन मन, सुद्ध होइ नहिं तैसे॥3॥

अंतर मलिन, बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।

मरै न उरक अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे॥4॥

तुलसीदास हरि गुरु करुना बिनु बिमल बिबेक न होई।

बिनु बिबेक संसार-घोरनिधि पार न पावै कोई॥5॥”

 

प्रसंग:

प्रस्तुत पद माधव मोह-पास क्यों छूटै राम भक्ति शाखा के शीर्ष कवि एवं अनन्य राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास की कृति ‘विनय पत्रिका’ से उद्धृत है।

 

संदर्भ:

प्रस्तुत पद में कवि विषय वासनाओं के पाश से मुक्ति का साधन विवेक शक्ति को बता रहे हैं।

 

व्याख्या:

माधव मोह-पास क्यों छूटै पंक्तियों के प्रारंभ में इष्ट को माधव नाम से संबोधित करते हुए तुलसीदास विषय वासनाओं के न छूट पाने का कारण निवेदन कर रहे हैं। उनका कहना है कि बाहरी उपकरण जितने चाहे अपना लिए जाएं जब तक अभ्यंतर (भीतरी) हृदय की स्वच्छता पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक मोह रूपी पाश से निकलना मुश्किल है। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए वे अनेक उदाहरणों को प्रस्तुत करते हैं।

तुलसीदास जी एक बड़ी सटीक उपमा देते हुए कहते हैं कि खुले आकाश तले आंगन में रखी घी से भरे हुए कड़ाह में चंद्रमा की पड़ती परछाईं को जिस प्रकार 100 कल्पों तक ईंधन और आग लगाकर औटाने (खौलाने) से मिटाया नहीं जा सकता, वैसे ही अंतःकरण की शुद्धता के बिना मोह पाश से मुक्ति असंभव है। 

मोहांध रहने तक यूं ही जीवन मरण (आवागमन) का चक्कर लगा रहेगा। किसी वृक्ष की कोटर में रहने वाले पंछी की मृत्यु पेड़ के काटने से नहीं हो सकती। पेड़ भी कट जाएगा और पक्षी अन्यत्र उड़ जाएगा। इस प्रकार बाहरी साधनों का कितना भी सहारा लिया जाए इससे अभ्यंतर की शुद्धि नहीं हो सकती।

सांप के बिल पर बाहर से कितने भी प्रहार किए जाएं, उसमें रहने वाला सांप उससे नहीं मारा जा सकता। सांप को मारने के लिए सांप के ऊपर ही प्रहार करने होंगे। वैसे ही शरीर पर पानी डालकर मल-मल कर नहाने से मन के मैल नहीं धुलते। मन के मैल को धोने के लिए साबुन पानी की नहीं, चिंतन-मनन की आवश्यकता है।

अंत में तुलसीदास जी ईश्वर से निवेदन करते हैं कि ईश्वर और गुरु की कृपा व करुणा के बिना और विवेक बुद्धि के अभाव में कोई जीव आवागमन के चक्कर से पार नहीं पा सकता।

 

विशेष:

1.तुलसीदास ने राम को माधव कहकर दोनों के एक ही होने की पुष्टि की है।

2.भगवत कृपा और विवेक शक्ति के बिना मोह-पाश न कटने की बात कवि कहते हैं।

3.उपमा, रूपक, उदाहरण और अंत्यानुप्रास अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। शांत रस की उद्भावना है। भाषा परिष्कृत है।

4.शैली उपदेशात्मक है।


© डॉ. संजू सदानीरा 

 

अस कछु समुझि परत रघुराया पद की व्याख्या : As kachhu samujhi parat raghuraya

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