माई म्हैं तो गोविंद का गुण गास्याँ पद की व्याख्या
माई म्हैं तो गोविंद का गुण गास्याँ।
चरणामृत को नेम हमारो नित उठ दरसण जास्याँ॥
हरि मंदिर में निरत करास्याँ घुँघरियाँ घमकास्याँ।
राम नाम का झाँझ चलास्याँ भव सागर तर जास्याँ॥
यह संसार बाड़ का काँटा ज्याँ संगत नहिं जास्याँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्याँ॥
प्रसंग
माई म्हैं तो गोविंद का गुण गास्याँ पद प्रख्यात कृष्ण भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है।
संदर्भ
इस पद में मीरांबाई अपने आप को श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित करने और भवसागर से तर जाने (मोक्ष पाने) की अपनी मनोकामना को व्यक्त कर रही हैं।
व्याख्या
मीरां कहती है कि हे मां! वह तो अपने प्रिय गोविंद (श्रीकृष्ण) के गुणों का गान करेंगी। मीरां का नित्य प्रति का नियम ही प्रातःकाल मंदिर जाने का है। वह इस नियम का पालन करते हुए देवालय जाएंगी और हरि नाम के अमृत का पान करेंगी, चरणामृत का पान करेंगी।
मीरांबाई अपनी भक्ति भावना की तन्मयता के लिए जगत प्रसिद्ध हैं। उन्हें राजमहल के ऐश्वर्या नहीं वरन संतों का साथ प्रिय था। भजन करते-करते भाव विभोर होकर वह नृत्य करने लगती थीं। यहां वही बातें दिखाई दे रही हैं। “घुंघरियाँ धमकास्या” बहुत ही आकर्षक चाक्षुष बिम्ब बना रहा है। जिसमें वे बता रही हैं कि घुंघरू को जोर-जोर से बजा कर मस्त मगन होकर नाचेंगी। राम के नाम (कृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है) की झांझ को बजाकर संसार से विरक्त होकर मीरां इस भवसागर को पार कर जाने का अपना निश्चय बता रही हैं। इस संसार को वह बाड़ का कांटा (मोह माया का झंझट) बताते हुए उससे बचकर निकल जाने की सोचती हैं।
मीरां कहती हैं कि उनके प्रभु (मालिक) तो गिरधर नागर (गोवर्धन पर्वत धारी) चतुर सुजान श्री कृष्ण हैं, वह उन्हीं के गुण गाएंगी, उन्हीं का नाम जपेंगी।
विशेष
1.मीरां की अनन्य भक्त इस पद में व्यक्त हुई है।
2.’राम’ यहां श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।
3.नृत्य और संगीत को भी भजन का भाग अथवा ईश्वर भजन का माध्यम माना गया है।
4.राजस्थानी भाषा का स्वाभाविक सौंदर्य दर्शनीय है।
5.गेय मुक्तक पद है।
6.भक्ति रस के साथ शांत रस का मिश्रण दर्शनीय है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
इस तरह मीरांबाई के अन्य पद नैना निपट बंकट की छबि अटके पद की व्याख्या हेतु नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें..
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