भारत में समलैंगिक विवाह : Same sex marriage in India

भारत में समलैंगिक विवाह : Same sex marriage in India

 

 

भारत में समलैंगिक विवाह अभी भी वर्जित विषय के तौर पर देखा जाता है। किसी भी सभ्यता की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर देशकाल और परिस्थिति के अनुसार उसके ढांचे में बदलाव ज़रूरी होता है। जिसने इसका महत्त्व नहीं समझा और बदलाव के लिए तैयार नहीं हुआ, वह जल्द ही अतीत का हिस्सा हो गया। दुनिया की तमाम सभ्यताओं ने समय के साथ खुद को अनुकूलित किया और अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखा।

सभ्यता,संस्कृति,परंपराएँ,रीति-रिवाज और जीवनशैली गतिशील संप्रत्यय होते हैं। कभी सामान्य समझी जाने वाली दास प्रथा आज पूरी दुनिया में ग़ैरकानूनी और अमानवीय मानी जाती है। इसी तरह सती प्रथा,बाल विवाह, जौहर प्रथा,जाति प्रथा जैसी कुरीतियां जो कभी सभ्यता और संस्कृति के नाम पर समाज में स्वीकृत थीं,आज ग़ैरकानूनी तथा दंडनीय अपराध हैं।

सार्वभौमिक मानवाधिकारों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विश्वस्तर पर नई-नई पहलें की जा रही हैं,जिससे सभी व्यक्तियों को हर तरह के भेदभाव से संरक्षण और समान रूप से गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार मिले। इसी क्रम में देश में सेम सेक्स मैरिज यानी भारत में समलैंगिक विवाह का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। 

भारत में समलैंगिक विवाह की स्थिति- 

जब विवाह की बात आती है तो ज़्यादातर लोगों के मन में जो इमेज बनती है,वह एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल स्त्री की होती है। इसी तरह परिवार की अवधारणा में माता-पिता और बच्चे ही पारंपरिक रूप से फिट माने जाते हैं परंतु इसके अलावा भी एक ऐसा बड़ा तबका है,जो समाज में मौजूद तो है,पर जिसके वजूद को लंबे समय से नकारा जाता रहा है। हम बात कर रहे हैं समलैंगिक, नॉन बायनरी और एलजीबीटीक्यूएआई+ व्यक्तियों के बारे में! 

समलैंगिक ऐसे व्यक्ति हैं,जो समान जेंडर के प्रति रोमांटिक रूप से आकर्षण महसूस करते हैं तथा संबंधों में स्थायित्व और सामाजिक तथा वैधानिक स्वीकृति के लिए विपरीत लिंगी (heterosexual) जोड़ों की तरह विवाह की आवश्यकता महसूस करते हैं। वर्तमान में भारत में समलैंगिक विवाह से संबंधित मौजूदा किसी भी कानून में कोई प्रावधान नहीं है।

हालांकि 6 सितंबर 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक लोगों को एक साथ (लिव-इन में) रहने की अनुमति दे दी फिर भी बहुत सारी वैधानिक और सामाजिक चुनौतियां बरकरार हैं,जो इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक साबित करती हैं। बराबरी की दिशा मेंभारत में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलना मील का पत्थर साबित हो सकता है।

वैश्विक परिदृश्य-

इस समय दुनिया के 32 देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल चुकी है,जिसमें यूएसए,यूके,कनाडा, ऑस्ट्रेलिया,अर्जेंटीना,साउथ अफ्रीका और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं। ताइवान 2019 में पहला एशियाई देश बना,जिसमें सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता मिली है। इसके अलावा हाल ही में क्यूबा, एंडोरा स्लोवेनिया जैसे देशों ने भी सेम सेक्स मैरिज को लागू किया।

ग़ौरतलब है कि इसमें से 22 देशों में वहां की सरकार ने संसद में कानून लाकर समलैंगिक विवाह को मान्यता दी,जबकि 10 देशों में वहां के न्यायालयों की भी हिस्सेदारी रही है।

वर्तमान में भारत में मौजूदा विवाह संबंधी प्रावधान-

इस समय देश में व्यक्तिगत कानून के लिए मुख्य रूप से जो कानून प्रयोग में लाए जाते हैं वो हैं- हिंदू कोड बिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ, क्रिश्चियन मैरिज एक्ट और पारसी मैरिज एंड डायवोर्स एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट। इनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-

हिंदू कोड बिल (Hindu code bill) 1955-

11 अप्रैल 1947 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल का मसौदा संविधान सभा में प्रस्तुत किया था, जिसमें विशेष तौर पर तत्कालीन समाज में प्रचलित पुरुषों के बहु विवाह को ग़ैरकानूनी घोषित किया गया था।

हिंदू मैरिज एक्ट-1955, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम-1956, हिंदू अवयस्कता और संरक्षण अधिनियम इसके अंतर्गत आते हैं। ध्यातव्य है कि यहां हिंदू के अंतर्गत हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय को सम्मिलित किया जाता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim personal law)-

यह शरीयत पर आधारित कानून है, जो 1937 में मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट के तहत पारित और लागू किया गया था। यह मुसलमानों के लिए विवाह, तलाक़ जैसे व्यक्तिगत मसलों पर आधारित कानून है। इसमें एक बड़ा संशोधन 2019 में किया गया जब एक ऐक्ट पारित कर तीन तलाक को अवैध घोषित किया गया।

भारतीय क्रिश्चियन मैरिज एक्ट (Indian Christian marriage act)-

यह 18 जुलाई, 1872 में लागू हुआ था। इसमें विवाह करने वाले दोनों पक्षों,निर्धारित स्थान (चर्च), निश्चित समय और विवाह के लिए रजिस्टर्ड पादरी के बारे में स्पष्ट प्रावधान है। 

इसी तरह पारसी समुदाय के लिए ‘पारसी मैरिज एंड डायवोर्स ऐक्ट’ 1936 का प्रावधान भी है।

समान नागरिक संहिता (uniform civil code) – 

इसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक़, संपत्ति और दत्तक ग्रहण से संबंधित एक ही कानून लागू होगा,चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म या सम्प्रदाय का हो। समान नागरिक संहिता भारत के जिस एकमात्र राज्य में लागू था वह था-गोवा। गोवा में यह कानून 1867 से ही लागू है। हालांकि 19 दिसंबर 1961 को गोवा पुर्तगाल से आज़ाद हो गया और भारत का हिस्सा बना परंतु इसके बावजूद भारत सरकार द्वारा गोवा पर पहले से लागू समान नागरिक संहिता को मान्यता दे दी गई। यहां पर राज्य के सभी निवासियों के लिए एक ही कानून लागू है। हाल ही में फरवरी 2024 में उत्तराखंड में भी समान नागरिक संहिता लागू की गई।

विशेष विवाह अधिनियम (Special marriage act)-

विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत ऐसे जोड़ों की शादी का प्रावधान किया गया, जो अलग-अलग धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखते और शादी के लिए अपना धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहते। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी धर्म को न मानने वाले व्यक्तियों (स्त्री-पुरुषों) को भी शादी का वैधानिक अधिकार दिया गया। इस प्रकार यह एक धर्मनिरपेक्ष कानून बना।

इतने सारे प्रावधानों के बावजूद इनमें से किसी में भी भारत में समलैंगिक विवाह के बारे में कोई प्रावधान नहीं है। इन सारे मैरिज ऐक्ट्स में विवाह के दोनों पक्षों के रूप में पति-पत्नी यानी बायोलॉजिकल पुरुष और स्त्री का उल्लेख किया गया है। इसलिए अपने अधिकारों के लिए समलैंगिक जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की जिसमें सेम सेक्स मैरिज को वैधानिक मान्यता देने की बात की गई।

भारत में समलैंगिक विवाह और सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला-

सितंबर 2018 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 को आंशिक तौर पर रद्द कर दिया गया। आईपीसी की धारा 377 होमोसेक्शुअल रिलेशन को अप्राकृतिक और ग़ैरकानूनी मानती है।

1860में ब्रिटिश काल के इस रिग्रेसिव कानून को ख़त्म करके संविधान में लिखित फंडामेंटल राइट के तहत समानता स्थापित करने की एक कोशिश की गई लेकिन जब तक समलैंगिक जोड़ों को विवाह का अधिकार नहीं मिलता तब तक सही मायने में समानता स्थापित नहीं की जा सकती। साथ ही संविधान के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 21 में वर्णित गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी संभव नहीं है।

हाल ही में 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने Same sex marriage से जुड़ी याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, संजय किशन कौल,एस रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पी एस नरसिम्हा शामिल थे।

भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में दो न्यायाधीश थे,जबकि विपक्ष में तीन थे और इस प्रकार 3-2 की बहुमत से फ़ैसला आया। जिसके अंतर्गत सेम सेक्स मैरिज को मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया और इस पर कानून बनाने के लिए विधायिका को ज़िम्मेदारी सौंपी गई। ग़ौरतलब है कि समलैंगिक विवाह के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और संजय किशन कौल थे जबकि विपक्ष में न्यायाधीश एस रवींद्र भट्ट,हिमा कोहली और पी एस नरसिम्हा शामिल थे।

फ़ैसले के महत्त्वपूर्ण बिंदु-

हालांकि सुप्रीम कोर्ट से Same sex marriage कानूनी मान्यता देने की उम्मीद लगाए सेम सेक्स कपल और इनके समर्थकों को निराशा हासिल हुई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स कपल और LGBTQIA+ कम्युनिटी के अधिकारों के लिए कई आवश्यक दिशानिर्देश दिए। जिसमें समलैंगिकता को नैसर्गिक और प्राकृतिक बताया साथ ही इस बात का भी खंडन किया कि ये शहरी एलीट क्लास के लोगों के लिए है और विदेशी कल्चर का असर है।

सुप्रीम कोर्ट ने LGBTQIA+ कम्युनिटी की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर हेल्पलाइन और गरिमा गृह बनाने की बात की,जिससे इन्हें भेदभाव से संरक्षण मिल सके।इसके अलावा एडॉप्शन कानून (CARA) में बदलाव की बात भी की,जिससे सेम सेक्स कपल और अन्य अविवाहित हेट्रोसेक्सुअल कपल भी बच्चा गोद ले सकें।

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों को LGBTQIA+ कम्युनिटी के लोगों के लिए संवेदनशील बनाने का भी ज़िक्र किया। साथ ही राशन कार्ड,पेंशन,होम लोन,जॉइंट अकाउंट और वसीयत इत्यादि संबंधी कानूनी प्रावधानों की समीक्षा और आवश्यक बदलाव के लिए दिशानिर्देश दिया,जिससे यह और अधिक समावेशी बन सके तथा समलैंगिक जोड़ों को भी अपना अधिकार मिल सके।

 

भारत में समलैंगिक विवाह से जुड़ी चुनौतियां- 

अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि मानवाधिकारों और संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा सभी नागरिकों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार को लागू करने के लिए Same sex marriage को कानूनी मान्यता मिलना कितना ज़रूरी है। फिर भी इसकी राह में बहुत सारी चुनौतियां हैं।

एक तरफ जहां कट्टर धार्मिक रुढ़िवादी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं,वहीं बहुसंख्यकों की चुनाव में अहम भूमिका राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति को कमज़ोर कर रही है। साथ ही  भारत में समलैंगिक विवाह को लागू करने से वर्तमान में प्रचलित सभी पर्सनल कानूनों जैसे- हिंदू कोड बिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ, क्रिश्चियन मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट में बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता होगी। इसके अलावा समाज में LGBTQIA+ समुदाय के लिए जागरुकता लाना और सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दिलाना अत्यन्त चुनौतीपूर्ण है। 

 

संभावनाएं-

कहते हैं, जहां समस्या होती है वहां समाधान भी होता है। 1848 में जब सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए जब पहली बार स्कूल खोला,तब भी यह काम उस समय के धार्मिक रूढ़िवादियों को पसंद नहीं आया था। इसी तरह सती प्रथा,बाल विवाह, अस्पृश्यता और वर्ण विभाजन जैसी सामाजिक बुराइयां एक समय में परंपरा और संस्कृति का हिस्सा मानी जाती थीं लेकिन समय के साथ तमाम समाज सुधारकों ने समाज में जागरूकता लाने का प्रयास किया और इन पर कानून भी बने।

इस तरह धीरे-धीरे लोगों की मानसिकता में भी बदलाव आया और उन्होंने बदलाव को स्वीकार किया।इसी तरह सेम सेक्स मैरिज का कानून बन जाने से LGBTQIA+ समुदाय को इनका मूलभूत मानवाधिकार प्रदान करने की दिशा में एक सार्थक कदम उठाया जा सकता है। इससे रातों-रात तो परिवर्तन नहीं होगा,लेकिन धीरे-धीरे लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाया जा सकता है।इस तरह भारत में समलैंगिक विवाह को लागू करना संविधान में निहित समानता, समता, न्याय और मानवाधिकारों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

 

अगर आप दुर्गाबाई देशमुख के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये आर्टिकल की लिंक पर क्लिक करें..

https://www.duniyahindime.com/durgabai-deshmukh-in-hindi-%e0%a4%a6%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%96/

 

© प्रीति खरवार 

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