भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त

भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त

 

भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को शुरू हुआ था इसके उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 8 अगस्त को इसकी वर्षगांठ मनाई जाती है। अगस्त में शुरू होने की वजह से इसे अगस्त आंदोलन या अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इससे पहले भी देश की आजादी के लिए अनेक आंदोलन हुए लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन भारत की स्वतंत्रता के आंदोलनों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसने करोड़ों भारतीयों को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया था। इसी समय महात्मा गांधी द्वारा दिए गए “करो या मरो” के नारे ने स्वतंत्रता सेनानियों में अद्भुत उत्साह भरने का काम किया था

 

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

उस समय दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी और ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से सलाह लिए बिना देश को युद्ध में डाल दिया था। इसके बाद 1942 का क्रिप्स मिशन आया, जिसके माध्यम से युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेट्स का वादा करके विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग लेने की अंग्रेजों की मंशा थी। इसके बाद वर्धा में 6 से 14 जुलाई 1942 में हुई कांग्रेस की बैठक में जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, अबुल कलाम आज़ाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, महात्मा गांधी इत्यादि ने भाग लिया और यहीं पर ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास किया गया था। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष अबुल कलाम आज़ाद ने की थी।

 

भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942

8 अगस्त 1942 को मुंबई की ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में जवाहरलाल नेहरू द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव पेश किया गया था। जिसका समर्थन महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने किया था। यहीं पर महात्मा गांधी ने करो या मरो का प्रसिद्ध नारा दिया था। ग़ौरतलब है कि हिंदू महासभा, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, यूनियनिस्ट पार्टी ऑफ पंजाब और मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन नहीं किया था। इसके पहले हुए सभी आंदोलन कुछ वर्ग विशेष तक सीमित थे जबकि भारत छोड़ो आंदोलन में भारतीय समाज के सभी वर्गों ने अपनी भागीदारी दिखाई। इसमें किसान, मजदूर, महिलाओं एवं छात्रों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

 

ब्रिटिश सरकार द्वारा दमन

आंदोलन शुरू होते ही ऑपरेशन जीरो ऑवर के तहत महात्मा गांधी सहित प्रमुख नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू को पुणे के आगा खान पैलेस में रखा गया और कांग्रेस कार्य समिति के अन्य सदस्यों जवाहरलाल नेहरू अबुल कलाम आज़ाद, गोविंद बल्लभ पंत, प्रफुल्ल चंद्र घोष, डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैया, आचार्य कृपलानी इत्यादि को अहमदनगर किले में रखा गया। इसके अलावा डॉ राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल में ही नज़रबंद रखा गया। इस प्रकार सारे प्रमुख नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया लेकिन इसके बावजूद आंदोलन नहीं रुका। भारत छोड़ो आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मुंबई (तत्कालीन बम्बई), उत्तर प्रदेश और मद्रास में था।

भारत छोड़ो आंदोलन के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल था, जबकि इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे। इस दौरान मुंबई में कांग्रेस का गुप्त रेडियो कार्यक्रम भी प्रसारित किया जाता था जिसे पूरे देश भर में सुना जाता था। राम मनोहर लोहिया नियमित रूप से इस पर कार्यक्रम प्रसारण का काम करते थे जबकि उषा मेहता कांग्रेस के भूमिगत रेडियो संचालन करने वाले दल की एक महत्त्वपूर्ण सदस्य थीं।

अरुणा आसफ अली जो कि एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए याद किया जाता है। अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर जिन्होंने महात्मा गांधी की जीवनी लिखी थी इस आंदोलन के दौरान उनके साथ थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में आजमगढ़, बलिया, गोरखपुर तथा बिहार में गया, भागलपुर, सहारनपुर, गया, चंपारण इस स्वतः स्फूर्त आंदोलन के प्रमुख केंद्र थे।

समानांतर सरकारों की स्थापना

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के विभिन्न भागों में समानांतर सरकारों की स्थापना की गई थी। चित्तू पांडे के नेतृत्व में बलिया में अगस्त 1942 में समानांतर सरकार की स्थापना की गई थी। साथ ही महाराष्ट्र के सतारा में अगस्त 1943 से मई 1946 तक सबसे लंबी चलने वाली समानांतर सरकार बनी थी। इसके प्रमुख नेता वाई वी चौहान एवं नाना पाटिल थे। इसके अलावा उड़ीसा के तलचर में भी कुछ समय तक समानांतर सरकार रही थी। यह समानांतर सरकारें ब्रिटिश शासन के विरोध की प्रतीक तो थीं ही साथ ही भारतीयों की संगठन क्षमता और नेतृत्व का भी द्योतक थीं।

 

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव

भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभाव को दर्शाने के लिए तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को लिखे गए एक पत्र का उल्लेख करना आवश्यक है। इसमें वायसराय लिनलिथगो ने भारत छोड़ो आंदोलन को 1857 के बाद का सबसे गंभीर विद्रोह कहा था। इस आंदोलन से तुरंत आज़ादी तो नहीं हासिल हुई लेकिन इसने आज़ादी के लिए नींव का काम ज़रूर किया।

इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों को एहसास दिलाया कि भारतीयों को अब लंबे समय तक ग़ुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता। साथ ही इस आंदोलन में भारतीय राजनीति के बदलाव को दर्शाया और जनता के एकजुटता, दृढ़ता और संकल्प का भी परिचय दिया। भारत छोड़ो आंदोलन में विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला और भारत की आज़ादी के लिए दुनिया के तमाम देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इससे विश्व के अनेक अन्य उपनिवेशों में भी स्वतंत्रता की चाह ने जन्म लिया।

भारत छोड़ो आंदोलन आज़ादी की लड़ाई में भारतीयों की दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व, साहस और एकजुटता का प्रमाण है। इस आंदोलन में क्षेत्रीय, धार्मिक, जातीय, लैंगिक तमाम सामाजिक सीमाओं से परे करोड़ों लोगों को साझा मकसद के लिए एकजुट किया। आंदोलन के दौरान किया गया त्याग, बलिदान, साहस और समर्पण देशवासियों के लिए अनुकरणीय है। यह आंदोलन हमें सत्य और न्याय के लिए दृढ़ता और साहस के साथ संघर्ष करने की भी प्रेरणा देता है। आज़ादी का महत्त्व और सार्थकता तभी है जब यह देश के सभी वर्गों विशेषकर हाशिए पर रखे गए समुदाय को हासिल हो।

© प्रीति खरवार

 

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