भक्ति काल और भक्ति काल के भेद : Bhakti kaal aur bhakti kaal ke bhed
भक्ति काल और भक्ति काल के भेद की बात की जाए तो हिंदी साहित्य के इतिहास में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से भक्ति काल की परिस्थितियों, उसके कालों और भेदों का विश्लेषण किया है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं और महाविद्यालयों में सर्वाधिक महत्त्व आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित “हिंदी साहित्य का इतिहास” को दिया जाता है।
इस इतिहास ग्रंथ में भक्ति काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है–
1.निर्गुण भक्ति
2.सगुण भक्ति
इन दोनों के भी पुनः दो-दो भाग किए गए हैं-
निर्गुण भक्ति काव्य के अंतर्गत हैं-
(1) ज्ञानाश्रयी अथवा ज्ञानमार्गी शाखा,
इसका दूसरा नाम संत काव्य है।
(2) प्रेमाश्रयी अथवा प्रेममार्गी शाखा,
इसका दूसरा नाम सूफ़ी काव्य है।
सगुण भक्ति के भी निर्गुण भक्ति की तरह दो भेद हैं-
(1) राम भक्ति शाखा
(2) कृष्ण भक्ति शाखा
भक्ति काल और भक्ति काल के भेद के अन्तर्गत निर्गुण भक्ति में कवियों को संत कवि और सगुण भक्ति में उन्हें भक्त कवि कहा जाता है। संत काव्य में जहां खंडन की प्रवृत्ति है वहीं भक्ति काव्य में मंडन की। संत कवियों ने वर्णाश्रम व्यवस्था,जातिगत भेदभाव, धार्मिक विद्वेष, पूजा पद्धतियों में अंतर के आधार पर अंधविश्वासों का खंडन किया।
इन्होंने ईश्वर को सर्वशक्तिमान,अंतर्यामी एवं घट-घट का वासी माना, जिसे देखने के लिए किसी स्थान विशेष में जाने की आवश्यकता नहीं है। सद्गुरु की कृपा एवं सदाचरण से इसे प्राप्त किया जा सकता है।
दूसरी तरफ सगुण भक्ति में वर्णाश्रम व्यवस्था का समर्थन किया गया है। पूजा पद्धति में अंतर के आधार पर सगुण भक्ति में अनेक प्रकार के मत-मतांतर पाए जाते हैं। इन्होंने ईश्वर के त्रिगुणातीत नहीं वरन सगुण साकार रूप का चित्रण किया है। इन कवियों ने ईश्वर की लीलाओं का गान एवं पूजा-पाठ के अनेक नियम-विधान स्थापित किए गए हैं।
सगुण भक्ति काव्य में राम, कृष्ण, शिव, शक्ति एवं गंगा इत्यादि की भक्ति का उल्लेख मिलता है। परंतु सर्वाधिक महत्त्व राम एवं कृष्ण काव्य को उनकी विपुलता को देखते हुए दिया जाता है।
राम भक्ति शाखा में राम के शील, शक्ति और सौंदर्य का चित्रण है। यह लोग-मंगल एवं लोक-आचरण का काव्य बताया गया है। इस काव्य में मर्यादा एवं आदर्शवाद की स्थापना दिखाई गई है। इस काव्य में दास्य भाव की भक्ति प्रदर्शित की गई है। कवियों में आत्म-निवेदन, स्वान्त-सुखाय एवं लोक-हिताय की प्रवृत्ति बताई गई है।
तुलसीदास को राम भक्ति शाखा का शिरोमणि कवि माना जाता है। इनके द्वारा रचित रामचरितमानस को राम भक्ति शाखा का आदर्श उदाहरण माना जाता है। प्राण चंद चौहान, हृदय राम एवं अग्रदास अन्य राम भक्त कवि हैं।
कृष्ण भक्ति शाखा में कृष्ण के मनोहारी रूप का चित्रण मुख्य रूप में किया गया है। उनके लीलावतार का बखान इस काव्य का उपजीव्य है। कृष्ण भक्ति काव्य को लोक रंजन का काव्य माना जाता है। कृष्ण के बाल रूप, गोपियों के संग रास रचाना और मथुरा गमन करना अलग-अलग कवियों ने अपने काव्य में वर्णित किया है।
सूरदास इस काव्याधरा के शीर्ष कवि हैं। अष्टछाप के शेष कवि रसखान, मीरा इत्यादि इस काव्य धारा के अन्य महत्त्वपूर्ण कवि हैं। सूरदास द्वारा रचित सूरसागर इस काव्य धारा का अन्यतम उदाहरण है। राम भक्ति शाखा में प्रबंध काव्य की अधिकता है तो कृष्ण भक्ति शाखा में मुक्तक काव्य की। इसके पीछे मुख्य कारण इन आराध्य देवों के चरित्र चित्रण में भिन्नता है।
© डॉ. संजू सदानीरा