पंद्रह अगस्त कविता (15 अगस्त 1947) की मूल संवेदना
नई कविता के प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर की पंद्रह अगस्त कविता एक प्रासंगिक एवं समसामयिक कविता है। कवि नये -नये आज़ाद हुए अपने देश की आज़ादी को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए चिंतातुर हैं।
संभवतः 15 अगस्त 1947 को रची गई इस पंद्रह अगस्त कविता का शीर्षक भी यही है। जैसे लंबी बीमारी से उठे व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति सचेत किया जाता है, वैसे ही सदियों की ग़ुलामी से बाहर आए देश को उसकी स्वतंत्रता के लिए कवि सचेत करते हैं।
कवि अपने देशवासियों को चेता रहे हैं कि आज आज़ादी के जश्न की रात है, इसलिए अति उत्साह में किसी प्रकार की लापरवाही न हो जाए! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश हर प्रकार से सभी के लिए खुला है। ऐसे में दीपक के समान अडिग रहकर मार्ग भी प्रशस्त करना है और सुरक्षा का सजग प्रहरी भी बने रहना है।
कवि के अनुसार ग़ुलामी अगर नरक है तो आज़ादी स्वर्ग। देश इस दृष्टिकोण से स्वर्ग की तरफ पहला क़दम बढ़ा चुका है। आज़ादी अपने साथ ढेर सारी ज़िम्मेदारियां लाती है एवं मानसिक ग़ुलामी से धीरे-धीरे आज़ादी मिलती है। अनगिनत लोगों के आज़ादी की लड़ाई में शहीद होने के बाद आज़ादी रूपी रत्न की प्राप्ति हुई है।
अभी मुक्ति- डोर (वास्तविक स्वतंत्र चेतना) हाथ में आनी बाकी है क्योंकि अतीत के दुखों की छाया अभी नयी-नयी आज़ादी पर व्याप्त है। अभी समकालीन सोच की पतवार थाम कर समय सागर से सावधानी के साथ पार उतरना है।
ग़ुलामी की कठोर बेड़ियां टूटने के बाद शेष विश्व के द्वार भारत के लिए खुल चुके हैं। युग-युग से रुकी हुई विचारधारा रूपी हवाएं अब नई चेतना की आंधी बनकर गूंज रही हैं। सारी सीमाएं आज सिमट गईं हैं,उन पर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं एवं शोषण की प्रतीक पुरानी शासकीय प्रतिमाओं का भंजन हो रहा है। आज़ादी की नई हिलोर में कवि सावधान रहने एवं प्रहरी बने रहने की प्रेरणा देते हैं।
कवि के अनुसार हमारे दुश्मन पीछे अवश्य हो गए हैं लेकिन उनकी छाया अभी भी हम पर पड़ रही है। अर्थात ग़ुलाम बनाने वालों का आतंक अभी भी इस रूप में बना हुआ है। आज़ादी तो मिल गई परन्तु शोषण के कारण समाज मृतप्राय बन चुका है और देश कमजोर है। अच्छी बात यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के कारण मृतप्राय समाज को पुनर्जीवन प्राप्त हो सकता है।
कवि सकारात्मक सोच से भरे हुए हैं। जनता रूपी गंगा में नया उबाल आया है। ऐसे में लहरों अर्थात चेतना को सावधान रहने को कवि आगाह करते हैं। कहने का मतलब है कि मुश्किल से प्राप्त आज़ादी के बाद देशवासियों में जोश के साथ होश के बने रहने से ही देश का समुचित विकास संभव हो पाएगा।
इस प्रकार गिरिजा कुमार माथुर की पंद्रह अगस्त कविता सांकेतिक रूप से जहां स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए गए संघर्षों को दर्शाती है, वहीं इसे बचाए रखने के लिए उत्तरदायित्व का निर्वहन करने की प्रेरणा भी देती है । इस प्रकार यह एक अत्यंत प्रासंगिक एवं सोद्देश्य कविता है।
© डॉ. संजू सदानीरा
आज जीत की रात
पहरुए, सावधान रहना;
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना।
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंजिल का छोर,
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न हिलोर।
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्ता डोर,
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख
विगत साँवली कोर ।
ले युग की पतवार
बने अंबुधि महान रहना,
पहरुए, सावधान रहना।
विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं
खुलीं समस्त दिशाएँ,
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग बंदिनी हवाएँ।
प्रश्न चिह्न बन खड़ी हो गई
यह सिमटी सीमाएँ,
आज पुराने सिंहासन की
टूट रहीं प्रतिमाएँ।
उठता है तूफान, इंदु
तुम दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना।
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है,
शत्रु हट गया, लेकिन
उसकी छायाओं का डर है।
शोषण से मृत है समाज
कमज़ोर हमारा घर है,
किंतु आ रही नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है।
जनगंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहना !