नैना निपट बंकट छबि अटके पद की व्याख्या

नैना निपट बंकट छबि अटके पद की व्याख्या

 

नैना निपट बंकट छबि अटके।

देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।

बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥

टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके।

‘मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के।।

 

प्रसंग

नैना निपट बंकट छबि अटके पद सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है । पाठ्यक्रम में यह पद शंभूसिंह मनोहर द्वारा संपादित मीरां पदावली से लिया गया है।

 

संदर्भ

इस पद में मीरांबाई अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के मनोहर रूप और उनके अपने हृदय में बस जाने के बारे में बता रही हैं।

 

व्याख्या

इस पद में मीरां श्रीकृष्ण की बांके बिहारी वाले रूप की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि उनकी बांकी (त्रिभंगी) छवि मीरां के नैनों में विराज गई है। “मदनमोहन” कहते हुए मीरां श्री कृष्ण को कामदेव से भी मनमोहक बता रही हैं। उनके श्रीकृष्ण का रूप इतना अनुपम है कि उनके मीराबाई की पलकों में समाने से उनके नयन भी मटकने लगे हैं, इतराने लगे हैं। मानो उन्होंने अमृत का पान कर लिया हो।

अथवा इसका आशय यह भी हो सकता है कि अमृत पान करके भी इंसान इतना अहो भाग्य नहीं मानता, जितना प्रभु श्री कृष्ण के रूप लावण्य का पान करके मीरां की आंखें मटक रही हैं, आह्लादित महसूस कर रही हैं। कृष्ण की कमल जैसी भवें हैं, अलकों (बालों) की लटें घुंघराली हैं, आंखें मानो रूप रस से ऐसे भरी हैं कि अभी छलक जाएंगी। मीरां की आंखें श्रीकृष्ण की ऐसी मोहिनी छवि पर अटक कर रह गई हैं। घुंघराली लटों से उनके प्रिय का रूप और निखर रहा है।

श्रीकृष्ण जब बांसुरी बजाते हैं तो टेढ़े खड़े होते हैं। एक पैर के दूसरी तरफ दूसरा पैर ले जाकर कटि (कमर) किंचित झुका कर हाथों में बांसुरी लेकर जब उसे बजाते हैं तो उस समय की उनकी मुद्रा त्रिभंगी मुद्रा कहलाती है। मीरां इसी त्रिभंगी मुद्रा की बात करते हुए कहती हैं कि बांसुरी बजाने वाले मुरलीधर (श्री कृष्ण) की कटि (कमर) टेढ़ी, बांसुरी को पकड़े हुए हाथ टेढ़े (घूमे हुए), पैर घूमे हुए और गले में लड़ी (माला) लटक रही है (शोभित हो रही है)।

मीरा ऐसे प्रभु के रूप से लोभित हो गई हैं, उन पर लुभा गई हैं। कृष्ण के कई पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हुए अंतिम पंक्ति में वह उन्हें गिरधर नागर और नट (नटवर) कह रही हैं। मीरा के नेत्र नागर (चतुर), गिरि (गोवर्धन पर्वत) को धारण करने वाले गिरिधर मुरली मनोहर और मदन मोहन के रूप पर पूरी तरह मोहित हो चुके हैं।

 

विशेष

1.मीरांबाई की कृष्ण भक्ति में रचित यह पद अत्यंत प्रसिद्ध है। फ़िल्मों, नृत्य नाटिकाओं एवं ग्रामीण भजन कार्यक्रमों में इसे लोक प्रसिद्धि प्राप्त है।

2.कृष्ण के रूप लावण्य के बहाने पुरुष सौंदर्य का आकर्षक चित्रण इस पद में देखा जा सकता है।

3.श्री कृष्ण के अन्य अनेक नामों का प्रयोग इस पद में हुआ है।

4.’नैना निपट’ और ‘बंकट अटके’ में अनुप्रास का सौंदर्य है, अंत्यानुप्रास तो संपूर्ण पद में विद्यमान है।

5.संयोग शृंगार रस के साथ भक्ति रस मिश्रित है।

6.गेय मुक्तक पद है।

7. ट और ण परुष वर्ण होते हुए भी माधुर्य गुण में इनका प्रयोग होने पर रस निष्पत्ति में बाधा नहीं आई है।

8. राजस्थानी भाषा का सौंदर्य संपूर्ण पद को सरसता प्रदान कर रहा है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

इसी तरह लखियत कालिंदी अति कारी पद की व्याख्या हेतु नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें..

https://www.duniyahindime.com/%e0%a4%b2%e0%a4%96%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%a4_%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a5%80_%e0%a4%85%e0%a4%a4%e0%a4%bf_%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/

1 thought on “नैना निपट बंकट छबि अटके पद की व्याख्या”

Leave a Comment