नई कविता की काव्यगत प्रवृत्तियाँ
हिंदी साहित्य के इतिहास में 1939 ई. से लेकर आज तक अनेक वाद आए और गए । उनके पहले भी हालांकि रीतिकाल,भारतेंदु युग,छायावाद इत्यादि अलग-अलग वादों में अनेक काव्यधाराएं हमारे देश के साहित्य के इतिहास में आई है परंतु द्वितीय विश्व युद्ध (1939 से 1945 )और स्वतंत्रता प्राप्ति जैसी युगांतकारी ऐतिहासिक घटनाओं के फलस्वरुप उथलपुथल और मानसिक एवं बौद्धिक हलचल के वातावरण में कवियों के समक्ष अनेक सामाजिक रूढ़ियों,मान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत सभी कुछ क्षत-विक्षत था।
छायावाद पर जहां कल्पना की आतिशयता का आरोप था, वहीं प्रगतिवाद में भावनात्मक शुष्कता एवं राजनीति की बू आती थी।कवि भी इसी तरह से वातावरण से कटा और ठगा-सा महसूस कर रहा था।तभी कविता एक नये आस्वाद, एक नए वाद के साथ हमारे बीच आई, जिसका नाम है- प्रयोगवाद
“प्रयोग” का अर्थ यहां अंग्रेजी के समानार्थी शब्द “एक्सपेरिमेंट” से थोड़ा हटकर रहा और वैसे भी प्रयोग और वाद का कोई मेल नहीं है ।
प्रयोगवाद चला तो था नए रागात्मक संबंध स्थापित करने किंतु हो गया समाज निरपेक्ष,रूप विधान प्रधान। प्रयोगवाद आशापूर्ण संदेश लेकर आया था और जो समय समाज का अनोखा आंदोलन था वह अपनी अतिशय बौद्धिकता,चौंका देने वाले शिल्प प्रयोग और अविकसित व्यक्तित्व के फलस्वरूप युग की धरती पर टिक न सका।
कालांतर में कवियों को जब अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उन्होंने अपने भाव-बोध और शैली में बदलाव लाकर नई काव्यधारा का मार्ग प्रशस्त किया । वही प्रयोगवाद का परिष्कृत रूप नई कविता के नाम से जाना जाता है । अब चूंकि प्रयोगवाद के जनक अज्ञेय हैं,अत: प्रकारांतर से नई कविता के जनक व प्रेरक भी उन्हीं माना जाता है।अन्य कवियों में मुक्तिबोध गिरिजाकुमार माथुर, भारत भूषण अग्रवाल, नरेश मेहता, हरिनारायण व्यास, कुंवर नारायण, दुष्यंत कुमार, रघुवीर सहाय, मदन वात्सायन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, धूमिल तथा शमशेर बहादुर इत़्यादि हैं।
मुक्तिबोध का तो प्रयोगवाद और नयी कविता की परिकल्पना में भी बहुत बड़ा योगदान है । नई कविता और प्रयोगवादी कविता के कवियों का युगबोध एक ही है।अंतर केवल इतना है कि नई कविता के कवियों ने अपने को परिधि से बाहर निकाल व्यापक धरातल पर स्थित किया,जिसमें रहकर प्रयोगवादियों ने अपने को बंद कर लिया था । इस अंतर को छोड़कर दोनों की संवेदना का मूल एक ही है । इसने तो प्रयोगवाद की ज़रूरी अक्षमता का विरोध कर कविता को एक रोग से मुक्त करने का काम किया था ।
नई कविता की काव्यगत प्रवृत्तियाँ अधोलिखित हैं –
1-जीवन संघर्ष और चेतना का काव्य-
प्रयोगवादी कवियों के विपरीत नयी कविता जीवन,आस्था और विश्वास की कविता है।ये कवि जीवन को व्यक्ति समाज और देश से भी जुड़ा मानते हैं और संघर्ष को अपनी शक्ति मानते हैं
उदाहरण-
इस दु:खी संसार में जितना बने
हम सुख लुटा दें
बन सके तो निष्कपट मृदु हास के
ये मन जुटा दें
कि टूटना बिखरना
कुछ नहीं है
जीवन संघर्ष है
लड़ो… ।
2- क्षण का उपयोग-
क्षणों को सत्य मानने का अर्थ है जीवन की प्रत्येक अनुभूति, प्रत्येक व्यथा ,प्रत्येक सुख को सत्य मानकर जीवन की सघनता और चिरंतनता को स्वीकार करना। नयी कविता क्षण-बोध और उसके उपयोग के सत्य की अनुभूति कराती है।
उदाहरण-
फूल को प्यार करो
पर जो झरे उसे झर जाने दो
जीवन का रस लो-
देह मन आत्मा की रसना से
पर जो मरे उसे मर जाने दो।
-अज्ञेय
क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत, लंबे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते।
अज्ञेय
3-लघु मानव का महत्व-
इन कवियों ने लघु मानव की अवधारणा को जन्म दिया । समाज का वह वर्ग,जो सर्वथा उपेक्षित,व्यथित और निर्बल था,वह नए कवियों का लघु मानव बना । इन्होंने अपने काव्य में इसे सर्वोपरि स्थान देते हुए उपेक्षित और गौण पात्र से करीब से देखने,जानने और समझने वाले पात्र में परिवर्तित कर दिया।
उदाहरण-
कल आऊंगा मैं
आज तो कुछ भी नहीं हूं
एक नन्हा बीच मेैं अज्ञात नवयुग का
समूचा विश्व होना चाहता हूं।
हरे भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं
बहुत महतो का मान
मगर दो मुट्ठी धान नहीं।
4-विषय वस्तु में वैविध्य-
नई कविता प्रयोगवाद का ही विकसित रूप है। मूल प्रवृत्ति इसमें उसी के समान है समुद्रों का विस्तार,आकाश की गहनता,विज्ञान के आविष्कार,थर्मस, पेन,पेंट,ब्रश,चाय ,बीड़ी और नानाविध गंध माला इत्यादि अनेक अनगिनत विषयों को कवियों ने प्रस्तुत किया है। शकुंतला माथुर दुष्यंत कुमार भवानी प्रसाद मिश्र शंभूनाथ सिंह ने विषयों की सीमा का विस्तार किया है।
उदाहरण-
मुक्ति से सवार यह बंधन
तोड़ दे सीमा सकरी
बुझा बत्तियां लाल हरी
चुन तारे
कलियां थी पथ पर
बिखरी
उपजीव्य तेरा जीवन।
– शंभूनाथ सिंह
5-सत्यानुभूति-
अनुभूति की सच्चाई जीवन और कविता दोनों के लिए आवश्यक है । नयी कविता में ठीक इसी तरह सूक्ष्म अनुभवों को सच्चाई और ईमानदारी के साथ व्यक्त किया गया है । कवि समाज की अनुभूतियों को भी आत्मसात करता है और अपनी कविता में व्यक्त करता है । नयी कविता चुंकि क्षण को सत्य मानती है तो अन्य वस्तु सत्य को भी मार्मिकता के साथ पकड़कर व्यक्त कर देती है,जिससे उस भाव को एक नया अर्थ मिल जाता है।
उदाहरण-साथियों आओ किसी मीनार के पार्श्व में खड़े हो जाएं
महसूस करें कि हम शुद्ध हैं
बने हैं स्वप्नों के शीश महल झिलमिल सितारे
अपने नौ हुए और ना होने हैं आदमी! आदमी तो मर गया हम महज डमी है।
6. बौद्धिकता और यथार्थ चित्रण-
नयी कविता में भावना की अपेक्षा बुद्धि को अधिक महत्व दिया गया है । नयी कविता अपने ही परिवेश से जीवन ग्रहण करती है । इस कविता में ग्रामीण एवं शहरी दोनों परिवेश हैं । परिवेश की इस व्यापकता के कारण इस कविता का अनुभव क्षेत्र भी व्यापक है। नये कवि मध्यम मार्ग की कुंठा को, औद्योगिक नगरों की विसंगतियों को तीखेपन के साथ व्यक्त करता है। मुक्तिबोध सर्वाधिक बौद्धिक है नए कवियों में । नयी कविता का जीवन के यथार्थ का या बौद्धिक विश्लेषण दृष्टव्य है।
उदाहरण-
भर दो इस त्वचा को मृतात्मा की
सुखी ठाठर में
यह घास पात कूड़ा कबाड़ा
सबकुछ भर दो
लगा दो इन नकली कौड़ियों की आंखे
कानों में सीपियां
पैरों में खपचियां
मेरी इस हृदयहीन
धमनीहीन
स्नायुहीन
काया में!
-लक्ष्मीकांत वर्मा
7-अति यथार्थवादी-
पीड़ा और निराशा की अभिव्यक्ति-प्रयोगवादी काव्य के अवशेष स्वरूप इस कविता में भी कहीं कहीं आ गयी है. बाकी तो यथार्थ का स्वर है इस काव्य में। असल में पीड़ा और निराशा कुंठा तथा मरणशीलता का बोध आज बहुतायत में मिलता है,जिसकी अभिव्यक्ति यहाँ भी हुई है। आज का मनुष्य पीड़ा और कुंठा को अभिन्न अंग मानकर ही भोगता है इसलिए यह सामाजिक विकास की प्रवृत्तियों प्रेम,करुणा,सहयोग,प्रसन्नता को कभी-कभी अस्वीकार कर देता है फिर भी नयी कविता में निराशा,कुंठा पीड़ा इत्यादि स्थाई प्रवृत्ति नहीं है और ना इससे जीवन में ठहराव ही आता है। ये कवि इनसे भी प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
उदाहरण-ओ मेजों की कोरों
पर माथा रखकर रोने वाले
हर एक दर्द को
नए अर्थ तक जाने दो ।
-धर्मवीर भारती
8-सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता-
नयी कविता उत्तरदायित्व को पूरा करने में पीछे नहीं है । इनमें लोक के जीवन विश्वास सुख-दुख,हर्ष, शोक,आशा,निराशा और युग सम्मत परिवर्तनों को वाणी देकर समाज के प्रति सहयोग का रुख अपनाया गया है।
उदाहरण-
माटी को हक दो
वह सरसे फूटे अखुआएं
इनमें से लेकर उनमें तक छाए
और कभी हारे तब भी उससे
माथे पर हिले और हिले और उठती ही जाए
यह दुख की पताका नए मानव के लिए।
-केदारनाथ सिंह
बह चुकी बहकी हवाएं चैत की
कट गई पूलें हमारे खेत की
कोठरी में लौ बढ़ाकर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।
-अज्ञेय
9-प्रणयानुभूति-
नयी कविता में प्रेम को भी नितांत नूतन भाषा एवं भावों के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है । नये कवियों की वाणी में,अनुभूति में एक ताजगी और विराटता के दर्शन होते हैं अज्ञेय तो यहां तक कहते हैं कि जिसे तुम प्यार करते हो उसके निकट तब तक मत जाओ जब तक तुम्हारे पास उसे देने को कुछ ना हो और देने की उत्कट अभिलाषा ना हो। यह आत्मदान से युक्त प्यार ही वरेण्य है और यदि ऐसा प्यार मिल जाए तो व्यक्ति दर्द से भी ऊपर उठ जाता है
उदाहरण-
क्या कहीं प्यार से इतर ठौर है कोई
जो इतना दर्द संभालेगा
पर मैं कहता हूं
पा गया आज प्यार में वैसा
दर्द नहीं अब मुझको सालेगा.
10-व्यंग्यात्मकता-
नयी कविता वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों,भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था और मनुष्य की बदलती हुई क्षुद्र मानसिकता पर मर्मस्पर्शी शब्दों में करारा व्यंग्य करती है।
अज्ञेय की सांप नामक कविता से गृहीत उदाहरण देखिए-
सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं,ना होगे
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया
फिर एक बात पूछूं (उत्तर दोगे)?
फिर कैसे सीखा डंसना
विष कहां पाया?
इस प्रकार नयी कविता प्रयोगवाद से विछिन्न भी है और नहीं भी.आज लिखी जा रही कविता बहुत अर्थों में नयी कविता ही कही जाती है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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