टूटा पहिया कविता की मूल संवेदना : Toota Pahiya kavita ki mool samvedna

 

टूटा पहिया कविता की मूल संवेदना : Toota Pahiya kavita ki mool samvedna

  

 

टूटा पहिया कविता के रचनाकार धर्मवीर भारती नयी कविता के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि हैं। सात गीत वर्ष, ठण्डा लोहा और कनुप्रिया उनकी महत्वपूर्ण काव्य-कृतियाँ हैं। अन्धा युग इनका अत्यंत लोकप्रिय गीतिनाट्य है। गुनाहों का देवता और सूरज का सातवाँ घोड़ा इनके उपन्यास हैं। इन्होंने लम्बे समय तक धर्मयुग पत्रिका का सम्पादन किया,जो हिन्दी पत्रिकायों में उल्लेखनय स्थान रखती है।

 

‘टूटा पहिया’ धर्मवीर भारती द्वारा रचित एक बेहद सारगर्भित और वर्तमान परिदृश्य में प्रासंगिक कविता है। कविता के माध्यम से कवि यह संदेश दे रहे हैं कि किसी वस्तु के टूट जाने पर उसे एकाएक व्यर्थ और अनुपयोगी नहीं समझ लेना चाहिए। गाढ़े समय में (विपत्ति काल में) जैसे खोटा सिक्का काम आ जाता है, कदाचित वह टूटी वस्तु उस समय साबुत चीजों से अधिक उपयोगी सिद्ध हो जाये!

अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने महाभारत की कथा से अभिमन्यु और कौरवों के बीच युद्ध के प्रसंग को उठाया है। अभिमन्यु कौरवों के बड़े-बड़े योद्धाओं के बीच में फंस जाता है। उसका रथ टूट जाता है। उसके हथियार छूट जाते है। अपनी मृत्यु के पहले बहुत देर तक अभिमन्यु अपने टूटे हुए रथ के पहिये से शस्त्र और ढाल का काम लेता रहा और सात -सात विरोधी सुरमाओं से तुरंत हार मानने के बजाय देर तक उनसे जूझ पाया।

टूटा पहिया उसे हथियार डालने से रोककर उसकी अदम्य वीरता और बहादुरी का साक्षी बना। उन “बड़े-बड़े सूरमाओं” और अक्षौहिणी सेना को अकेले निहत्था अभिमन्यु टूटे पहिये के सहारे चुनौती दे रहा था।

 

कवि ने ये भी बताया है कि युद्ध सत्य और असत्य के बीच होने के साथ-साथ अलग – अलग निष्ठाओं के बीच भी होता है। अपने पक्ष को असत्य जानकर भी सत्य,जो कि इनका विरोधी हैं, के तरफ बह्मास्त्रों (सबसे घातक हथियारों) का प्रयोग निर्ममतापूर्वक कर सकते हैं। ऐसे में बचाव के लिए अपने पास मौजूद टूटी-फूटी चीज ही उपयोगी सिद्ध होगी, न कि हाथ से दूर कोई साबूत हथियार !

 

अन्तिम पंक्तियों में कवि ने बेहद मार्मिकता के साथ समाज की उस क्रूर व्यवस्था का चित्रण किया है,जिसमें बाहुबली शासक वर्ग द्वारा असत्य का प्रचार करने पर सत्य का बचाव कोई मामूली हस्ती करे। आज के जमाने मे मीडिया के बड़े- बड़े घरानों द्वारा सत्ता का झूठा गुणगान करने पर जैसे छोटे चैनलों द्वारा उस झूठ का पर्दाफाश किया जाता है,उससे कवि की पक्तियाँ न सिर्फ मेल खाती हैं बल्कि प्रासंगिक और जरूरी भी है।

इस प्रकार इस कविता के माध्यम से कवि ने किसी भी वस्तु को अनुपयोगी न समझने का एक सार्थक संदेश देने के साथ-साथ सत्य,असत्य और व्यवस्था पर भी सांकेतिक रूप से प्रहार किया है।

 

© डॉ. संजू सदानीरा

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