केवल हिम कविता की व्याख्या/ भाव सौंदर्य
केवल हिम कविता नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक नरेश मेहता द्वारा रचित है। इस कविता के माध्यम से नरेश मेहता की काव्य दृष्टि, भाषा सौंदर्य और वैचारिकता को समझा जा सकता है। नई कविता में अपना अमूल्य योगदान देने वाले नरेश मेहता नकेनवाद के कवियों में भी शामिल थे। वन पाखी सुनो, उत्सव और किरण धेनुएं इत्यादि उनकी काव्य कृतियां हैं।
केवल हिम कविता संभवतः कैलाश मानसरोवर की यात्रा अथवा कवि के वहां प्रवास के दौरान लिखी गई प्रतीत होती है। कवि को अपने चारों तरफ केवल और केवल बर्फ दिखाई दे रही है और बर्फ भी किसी प्रकार की कृत्रिम रंग में रंगी हुई नहीं वरन पूर्णतः अपने प्राकृतिक रंग रूप (ठोस एवं श्वेत)में। बर्फ के इस बिना मिलावट के रूप को कवि ने शिव रूप बताया है। कदाचित इसके पीछे शिव के आडंबरहीन असल रूप को याद किया गया है। संपूर्ण परिवेश हिमाच्छादित है और वनस्पतियों का अभाव है। रंग गंध सबका त्याग करके जैसे धरती स्वयं तपस्यारत है। अर्थात वहां की भूमि हर प्रकार की हलचल से शून्य है।
मनुष्य के कदमों के निशान और गतिविधियां न होने से ऐसा लगता है जैसे समय सैकड़ो वर्षों से किसी इतिहास के रचे जाने की प्रतीक्षा में रत है। कवि ने पर्वतमालाओं की लंबाई की तुलना शिवा (पार्वती) की लंबी भुजाओं से करते हुए उन्हें आकाश की नीली स्लेट पर धरती के श्लोक लिखते हुए दिखाया है। ब्रह्मांड की उपमा महासागर से करते हुए कवि ने उसे जल राशि की तरह हिम राशि से भरा हुआ चित्रित किया है। यह हिम राशि इस प्रकार ओर छोर तक व्याप्त है मानो यह आकाश को छूने के लिए व्याकुल है। कवि ने धर्म रूपी वृषभ बताते हुए इस हिम प्रदेश को अत्यंत पवित्र घोषित किया है।
इस प्रकार केवल हिम कविता के माध्यम से कवि नरेश मेहता ने कैलाश मानसरोवर के हिमाच्छादित जनशून्य रूप का मनोहारी चित्रण किया है। कवि ने उस प्रदेश की पावनता एवं अक्षुण्णता का चित्रण अपनी आध्यात्मिक रुचि के अनुसार किया है। कविता अपने अर्थ संप्रेषण में पूरी तरह से सफल है।
केवल हिम
हिम, केवल हिम-
अपने शिवःरूप में
हिम ही हिम अब!
रग-गंध सब परित्याग कर
भोजपत्रवत हिमाच्छादित
वनस्पित से हीन
धरित्री-
स्वयं तपस्या।
पता नहीं
किस इतिहास-प्रतीक्षा में
यहाँ शताब्दियाँ भी लेटी हैं
हिम गुल़्मों में।
शिवा की गौर-प्रलम्ब भुजाओं सी
पवर्त-मालाएँ
नभ के नील पटल पर
पृथिवी-सूक्त लिख रहीं।
नीलमवणीर् नभ के
इस ब्रर्ह्माण्ड -सिन्धु में
हिम का राशिभूत
यह ज्वार
शिखर, प्रतिशखर
गगनाकुल।
याक सरीखेधमर्वृषभ
इस हिम प्रदेश में।
नरेश मेहता
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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