कुट्टिल केस सुदेस पद की व्याख्या
कुट्टिल केस सुदेस, पौहप रवियत पिक्क सद ।
कमलगंध वयसंध, हंसगति चलत मन्द – मद ।।
सेत वस्त्र सोहै सरीर, नष स्वांति बुंद जस ।
भ्रमर भंवहि भुल्लहि, सुभाव, मकरन्द बास रम ।।
नैन निरखि सुष पाय सुक, यह सुदिन मूरति रचिय
उमा प्रसाद हर हेरियत, मिलहि राज प्रथिराज जिय ।।
प्रसंग
प्रस्तुत कुट्टिल केस सुदेस पद आदिकाल की अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति पृथ्वीराजरासो के पद्मावती समय से लिया गया है जिसकी रचना महाकवि चंदबरदाई ने की है।
संदर्भ
कवि ने इस पद में रानी पद्मसेन और राजा विजयपाल की पुत्री पद्मावती के अलौकिक रूप सौंदर्य का बखान पूर्ववत किया है।
व्याख्या
कन्या पद्मावती की केशों के घुंघरालेपन की तुलना कवि ने कुट्टिल कहकर स्पष्ट की है। अर्थात उसके बालों की लट सर्पीली (घुमावदार, घुंघराली, टेढ़ी-मेढ़ी) है। उन बालों का शृंगार सुवासित पुष्पों से किया गया है। उस बालिका की आवाज (शब्द, स्वर) कोयल की भांति सुमधुर है। वयः संधि में पहुंच रही उस बालिका के कोमल गात से मकरंद की-सी सुवास आती है। हंस की चाल (काव्य में हंस की चाल अत्यंत सुंदर मानी जाती है) से पद्मावती मंद-मंद चल रही है। उसके शरीर पर श्वेत वस्त्र बहुत ही आकर्षक लग रहे हैं। उसके नाखूनों की चमक ऐसी है जैसे स्वाति की बूंद ! पद्मावती के गात्र से उठने वाली मादक सुरभि का पान करने के लिए भ्रमर उसके आसपास मंडरा रहे हैं।
इस प्रकार के अद्वितीय एवं निष्कलुष सौंदर्य को देखकर तोते के मन को अत्यंत सुख की अनुभूति हुई। तोते के मन में विचार आया कि विधाता ने अत्यंत शुभ घड़ी में इस बालिका को घड़ा (गढ़ा) होगा अन्यथा पृथ्वी पर इतना अदभुत रूप देखने को कैसे मिल सकता है! तत्पश्चात उस तोते ने उमा पार्वती का ध्यान कर उनका प्रसाद (कृपा) पाया और शिव-पार्वती का ध्यान कर पद्मावती का संयोग (विवाह) पृथ्वीराज से होने की अरदास की।
विशेष :
1.पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य का चित्रण नखशिख वर्णन की प्राचीन परिपाटी के अनुसार किया गया है।
2.बालों में पुष्प सज्जा करना बताता है कि सौंदर्य के साधन के रूप में फूलों का प्रयोग कितना प्राचीन है।
3.सुवास/ खुशबू का महत्त्व भी इस पद में विशिष्टता के साथ चित्रित किया गया है। भंवरे तक उस सुवास के भ्रम में फूल समझ पद्मावती के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगते हैं।
4.पक्षी (तोता) का सोचना, प्रार्थना करना, सुखी होना कथानक रूढ़ि का ही एक रूप है।
5.वयःसंधि में शारीरिक परिवर्तनों को किंचित भिन्न प्रकार से (साहित्यिक अथवा कलात्मक प्रकार से) दर्शाया गया है।
6.अनुप्रास, उपमा, पुनरूक्ति प्रकाश और भ्रांतिमान अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
7.भाषा तत्कालीन अपभ्रंश का काव्य स्वीकृत रूप है।
8.शैली वर्णनात्मक है।
9.कवित्त छंद का प्रयोग किया गया है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा