ऊधौ अँखियाँ अति अनुरागी पद की व्याख्या
ऊधौ अँखियाँ अति अनुरागी |
इकटक मग जोवतिं अरु रोवतिं, भूलेहुँ पलक न लागी ||
बिनु पावस पावस करि राखी, देखत हौ बिदमान |
अब धौं कहा कियौ चाहत हौ, छाँड़ौ निरगुन ज्ञान ||
तुम हौ सखा स्याम सुंदर के, जानत सकल सुभाइ |
जैसैं मिलै सूर के स्वामी, सोई करहु उपाइ ||
प्रसंग
ऊधौ अँखियाँ अति अनुरागी पद भ्रमरगीत सार से उद्धृत है जो महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित अमर गीतिकाव्य है।
संदर्भ
कृष्ण भक्ति शाखा के महानतम कवि सूरदास जी ने इस पद में उद्धव-गोपी संवाद के माध्यम से निर्गुण पर सगुण की विजय के साथ ही गोपियों के कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाया है।
व्याख्या
श्रीकृष्ण ने मथुरा जाने के बाद वहां से अपने प्रिय सखा उद्धव जी को गोपियों के पास भेजा है। उद्धव उन्हें निर्गुण का ज्ञान देने आए हैं। उद्धव को गोपियां तरह-तरह से अपनी बात समझा रही हैं।
गोपियां कहती हैं कि हे उद्धव जी यह आंखें श्रीकृष्ण के प्रति अत्यंत अनुरागी (प्रेमिल) हैं। ये एकटक श्रीकृष्ण का रास्ता निहार रही हैं। रास्ता निहारती रहती हैं और रोती रहती हैं। एक पल के लिए भी इन्हें नींद नहीं आती है। गोपियां उद्धव से कहती हैं कि बिना बरसात के मौसम के उनकी आंखें बरसती रहती हैं मानो पावस ऋतु चल रही हो,जैसा कि स्वयं उद्धव भी प्रत्यक्ष देख पा रहे हैं।
वे उनसे यह भी कहती हैं कि यह सब देखकर भी उद्धव उनसे क्या चाहते हैं? उन्हें अपना निर्गुण ज्ञान (सगुण श्रीकृष्ण के स्थान पर निर्गुण ब्रह्म को पूजने की सलाह ) अब छोड़ देना चाहिए । उद्धव तो कृष्ण के परम प्रिय मित्र हैं अतः उन्हें तो सभी के स्वभाव का पूरा भान होगा ही। ईश्वर के सखा होने के कारण वह भी अंतर्यामी हुए, इसलिए गोपियों के स्वभाव के विपरीत बात उन्हें नहीं करनी चाहिए। सूरदास कहते हैं कि गोपियां उद्धव से निवेदन करती हैं कि उन्हें कृष्ण किस भांति पुनः प्राप्त हो सकते हैं ,वे इसका उपाय करें या उन्हें साधन बताएं।
विशेष
1.गोपियों की कृष्ण के वियोग से उपजी विरह दशा का मार्मिक चित्रण इस पद में हुआ है।
2.उद्धव जी के निर्गुण ब्रह्म के ज्ञान को गोपियों के द्वारा अस्वीकार करना अत्यंत व्यावहारिकता के साथ दर्शाया गया है।
3.ब्रजभाषा का सौंदर्य पूरे पद में दर्शनीय है।
4.शैली मार्मिक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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