उनको प्रणाम कविता की मूल संवेदना

उनको प्रणाम कविता की मूल संवेदना

 
उनको प्रणाम कविता प्रगतिवाद के प्रवर्तक कवियों में से एक नागार्जुन द्वारा रचित है।
 
यह कविता एक नए विषय का स्पर्श करती है। आज तक हमारे अनुभव में सफल एवं यशस्वी लोगों का गुणगान सुनने-पढ़ने में आया है, पहली बार कोई कविता उन योद्धाओं की बात करती है जो समर में अकथनीय प्रयास करने के बाद भी जीवन हार गए। संसार का अत्यंत क्रूर नियम है कि यहां सभी चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं।
जीवन में लोगों का ध्यान अपनी किसी विशिष्टता से खींच चुके लोग पूजनीय माने जाते हैं। इस पूजनीय बनने की यात्रा में जो मार्ग में प्राण गंवा बैठते हैं, वे अल्प अफसोस के बाद विस्मृत कर दिए जाते हैं।
 
उनको प्रणाम कविता में कवि उन सभी लोगों को प्रणाम करते हैं जिनके अभिमंत्रित तीर या तो नोंक खो बैठे या लक्ष्य भ्रष्ट हो गए एवं जिन वीरों के तरकश युद्ध की समाप्ति के पहले ही खाली हो गये।
 
जो लोग छोटी सी नाव लेकर सागर को पार करने निकले और मन की साथ लिए हुए ही सागर में विलीन हो गए, कवि उनको भी प्रणाम करते हैं । 
 
जो लोग हिमालय को फतह करने के इरादे से बढ़े और या तो मार्ग में ही बर्फ में जम गए अथवा बचकर बीच में ही नीचे उतर आए, कवि उनके साहस और परिश्रम को भी नमन करते हैं।
 
कुछ लोग जीवट के धनी होते हैं और अल्प साधनों के साथ ही धरती की प्रदक्षिणा करने निकलते हैं लेकिन पग-पग पर विधाता इतनी चाल चलता है कि वह अपंग होकर बैठ जाते हैं। ऐसे यात्रा जीवी लोगों को कवि नमन करते हैं। 
 
कवि उनको भी प्रणाम करते हैं, जिन लोगों ने पवित्र उद्देश्यों की पूर्ति के लिए फांसी के फंदे पर चढ़कर अपने प्राण भी गंवाए और उद्देश्य प्राप्ति में सफल भी नहीं हुए एवं जिनका बलिदान भी समाज द्वारा भुला दिया जाता है । 
 
कुछ लोग बाल्यकाल से ही मेधावी और तेजस्वी होते हैं । परिवर्तन के लिए उनकी साधना उग्र होती है। कवि को दुख है कि वह दीर्घायु होने की बजाय असमय ही काल के क्रूर पंजों में समा गए। कवि उन अल्पायु योद्धाओं को नमन करते हैं। 
लंबे बंदी जीवन ने जिन दृढ़ प्रतिज्ञ और साहस की मूर्तियों की बहादुरी को सुन्न कर दिया-कवि उनको भी प्रणाम करते हैं।
 
जिन लोगों ने अनुपम सेवाएं देने के बाद भी स्वयं को प्रशंसा से बचा कर रखा और विपरीत परिस्थितियों में जिनके मनोरथ नष्ट हो गए-कवि उनको भी प्रणाम करते हैं।
 
इस प्रकार यह कविता उन नायक-नायिकाओं को समर्पित है, जिन्होंने बेशक सफलता का स्वाद नहीं चखा हो लेकिन सफलता अथवा विश्व कल्याण के लिए अपार कष्ट उठाए और अपने प्राण गंवाए।
 
© डॉ. संजू सदानीरा
 

नागार्जुन

 
उनको प्रणाम!
 
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम 
मैं उनको करता हूँ प्रणाम।
 
कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट 
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; 
रण की समाप्ति के पहले ही 
जो वीर रिक्त तूणीर हुए।
-उनको प्रणाम!
 
जो छोटी-सी नैया लेकर 
उतरे करने को उदधि-पार; 
मन ही मन में ही रही, 
स्वयं हो गये उसी में निराकार!
-उनको प्रणाम !
 
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े 
रह-रह नव-नव उत्साह भरे; 
पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि 
कुछ असफल ही नीचे उतरे !.
-उनको प्रणाम !
 
एकाकी और अकिंचन हो-
 जो भू-परिक्रमा को निकले; 
हो गये पंगु, प्रति-पद इतने 
अदृष्ट के दांव चले !
-उनको प्रणाम !
 
कृत-कृत्य नहीं जो हो पाये; 
प्रत्युत फाँसी पर गये झूल
कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी 
यह दुनिया जिनको गयी भूल !
-उनको प्रणाम
 
थी उग्र साधना, पर जिनका 
जीवन-नाटक दुःखांत हुआ; 
था जन्म-काल में सिंह लग्न 
पर कुसमय ही देहांत हुआ!
-उनको प्रणाम !
 
दृढ़ व्रत औ’ दुर्दम साहस के 
जो उदाहरण थे मूर्ति-मंत; 
पर निरवधि बंदी जीवन ने 
जिनकी धुन का कर दिया अंत ! 
-उनको प्रणाम !
 
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय 
पर विज्ञापन से रहे दूर 
प्रतिकूल परिस्थिति में जिनके 
कर दिये मनोरथ चूर-चूर!
-उनको प्रणाम !
 

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