भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान : इसरो : ISRO; Indian Space Research Organisation

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान : इसरो : ISRO; Indian Space Research Organisation

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान जिसे इसरो के नाम से जाना जाता है भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है। पिछले दशकों में इसरो ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं जिसने देश-विदेश में भारत का नाम ऊंचा किया है। इसरो का मुख्यालय कर्नाटक के बेंगलुरु में अवस्थित है।

 

इसरो की स्थापना और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1957 में रूस के द्वारा स्पूतनिक विमान के प्रक्षेपण के बाद से दुनिया भर में कृत्रिम उपग्रहों के महत्त्व और उपयोगिता पर वैश्विक विमर्श शुरू हो गया था। 1961 में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत क्रियान्वित किया जाता था। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव तब आया जब 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए ‘भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (इनकॉस्पार) का गठन किया गया था।

इसका कार्य अंतरिक्ष अनुसंधान, ग्रहों-उपग्रहों, अंतरिक्ष यान और मिशन इत्यादि से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान करना था। यही आगे चलकर इसरो के नाम से जाना गया। व्यवस्थित रूप से इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले विक्रम साराभाई के दिशानिर्देश में की गई थी।

 

इसरो के अध्यक्ष

इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एस सोमनाथ हैं, जिन्होंने 15 जनवरी 2022 से कार्यभार संभाला। इन्होंने के सिवान का स्थान लिया था। इसरो की स्थापना के समय इसके पहले अध्यक्ष विक्रम साराभाई थे जिन्होंने 1963 से 73 तक पदभार संभाला था जब इसका नाम इनकॉस्पार पर था। अब तक इसरो के कुल 11 अध्यक्ष हो चुके हैं, जिसमें सतीश धवन सबसे लंबी अवधि तक कार्यभार संभालने वाले अध्यक्ष हैं। इन्होंने 1973 से लेकर 1984 तक कुल 12 वर्षों तक इसरो के अध्यक्ष पद पर काम किया।

 

इसरो की प्रमुख महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां

 

इसरो का उपग्रह प्रक्षेपण यान (सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल SLV)

इसरो द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना की शुरुआत 1970 के दशक में मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध भारत के महान वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा की गई। हालांकि 1979 में एसएलवी की पहली प्रयोग उड़ान विफल रही। इसके बाद संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) तथा भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) का विकास इसरो के द्वारा किया गया। इस लगातार होने वाले अनुसंधान और विकास का नतीजा यह हुआ कि आज देश ही नहीं विदेश के भी सैकड़ों सफल प्रक्षेपण के साथ ही इस क्षेत्र में इसरो ने नए कीर्तिमान स्थापित किया।

 

आर्यभट्ट उपग्रह का प्रक्षेपण

अपने अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत इसरो ने आर्यभट्ट उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ कई। 19 अप्रैल 1975 वह ऐतिहासिक दिन था जब भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के अंतरिक्ष यान की सहायता से लॉन्च किया गया।

 

भास्कर उपग्रह का प्रक्षेपण

भास्कर भारत का दूसरा उपग्रह था इसका प्रक्षेपण 7 जून 1979 को इसरो के निर्देशन में किया गया।

 

रोहिणी उपग्रहों की शृंखला

1980 में रोहिणी उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया। यह पहली बार भारत के स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी के माध्यम से किया गया था। इससे उपग्रह प्रक्षेपण हेतु न सिर्फ़ दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता ख़त्म हुई बल्कि उपग्रह प्रक्षेपण यान की मदद से इसरो ने अन्य देशों को भी उपग्रह प्रक्षेपण की सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिए।

 

चंद्रयान मिशन-1, 2 और 3

22 अक्टूबर 2008 को इसरो ने अपने पहले चंद्र मिशन चंद्रयान1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इस मिशन का हासिल यह रहा कि इसने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की थी। यह इसरो की एक बड़ी उपलब्धि रही। इसके बाद तत्कालीन इसरो प्रमुख के सिवन की निगरानी में प्रथम पूर्ण स्वदेशी चंद्र मिशन चंद्रयान 2, 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। हालांकि यह अपने आखिरी चरण में सफल हो गया और इसका संपर्क धरती से टूट गया लेकिन यह चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक था।

चंद्रयान3, चंद्रयान2 का पूरक मिशन था। ये लॉन्च व्हीकल मार्क 3 की सहायता से 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से लॉन्च किया गया । चंद्रयान3 ने डार्क साइड ऑफ़ द मून पर लैंड किया। यह चंद्रयान 2 से इस मामले में अलग है कि इसमें कोई ऑर्बिटर नहीं है, बल्कि प्रोपल्शन माड्यूल को जोड़ा गया है। यह सभी चंद्रयान मिशन इसरो की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक हैं।

 

मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन- MOM)

5 नवंबर 2013 को इसरो ने भारत का पहला अंतर्ग्रहीय मिशन मंगलयान अंतरिक्ष में भेजा। इस मिशन को अपने पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में स्थापित किया गया था। इसके साथ ही भारत मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला एशियाई देश और दुनिया का चौथा देश बन गया था। बेहद कम लागत में इस तरह का मिशन अन्य विकसित देशों के लिए आश्चर्यजनक था।

 

आदित्य एल-1 मिशन-

इसरो का एक अन्य महत्वपूर्ण अभियान आदित्य एल-1 सूर्य को समर्पित एक स्पेस ऑब्जर्वेटरी मिशन है। आदित्य एल-1 मिशन 2 सितंबर 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। मूल रूप से इसकी घोषणा इसरो द्वारा 2008 में की गई थी, लेकिन इसको लॉन्च 2023 में किया गया। इस मिशन के साथ ही भारत, अमेरिका, यूरोप, और जापान के बाद चौथा देश बन गया जिसने अपना उपग्रह सूर्य पर भेजा।

 

नाविक (IRNSS)

इसरो ने क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) का निर्माण किया, जिसे ‘नाविक’ के नाम से जाना जाता है। यह भारतीय सीमा से लगभग 1500 किलोमीटर की दायरे में नेविगेशन की सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। इससे परिवहन, सुरक्षा, नेविगेशन और ट्रैकिंग तथा आपदा प्रबंधन प्रबंधन को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है।

 

इसरो की राह में आने वाली चुनौतियां

हम जानते हैं कि भारत से एक विकासशील देश है और इसके पास सीमित संसाधन उपलब्ध हैं। वित्तीय चुनौतियां इसरो के लिए संघर्ष पूर्ण परिस्थितियां पैदा कर रही हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार नौकरशाही भी इसकी एक बड़ी वजह है। हमारे संविधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना मौलिक कर्तव्यों में शामिल है लेकिन देश का बहुसंख्यक समाज आज भी पारंपरिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलता है जिसकी वजह से वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होना आज भी बेहद चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

इसके साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए आधारभूत संरचनाओं और प्रोत्साहन की कमी देश में प्रतिभा पलायन को बढ़ावा दे रही है। इस वजह से देश के वैज्ञानिक उच्च शिक्षा के लिए विकसित देशों का रुख कर रहे हैं इसे रोकना अत्यंत आवश्यक है। नासा, स्पेस एक्स व अन्य विश्व स्तर की अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना और नए अनुसंधान व नवाचार को बढ़ावा देना इसरो के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।

 

भविष्य की संभावनाएं

इसरो ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ मिलकर गगनयान मिशन के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं अगस्त 2024 से अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण भी प्रारंभ हो गया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रौद्योगिकी के विकास हेतु तकनीकी सहयोग भी उपलब्ध हो सकेगा। इसके साथ ही चंद्र मिशन, मंगल मिशन और सूर्य मिशन जैसे महत्त्वपूर्ण अभियान नए वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए इसरो की भूमिका को रेखांकित कर सकता है। इन सब से भविष्य में अंतरिक्ष, मौसम, सूर्य, चंद्रमा इत्यादि गतिविधियों और उनसे होने वाले प्रभावों का आकलन और भविष्यवाणी संभव होगी जिससे पृथ्वी पर होने वाली आपदा का सफल प्रबंध सुनिश्चित किया जा सकेगा। इसके अलावा इसरो के व्यवसायीकरण की दिशा में भी अपार संभावनाएं हैं।

लेकिन इन सबके लिए ज़रूरी है कि स्कूली स्तर से ही बच्चों में वैज्ञानिक चेतना का विकास सुनिश्चित किया जाए और देश में वैज्ञानिक अनुसंधान से जुड़े आधारभूत संरचनाओं को उपलब्ध कराया जाए जिससे प्रतिभा पलायन पर रोक लगे। तभी इसरो समेत विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान अपने पूरी क्षमता के साथ कार्य कर सकेंगे और भारत को वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में सक्षम हो पाएँगे।

 

© प्रीति खरवार

 

इसी तरह अगर आप भारत छोड़ो आन्दोलन के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें..

https://www.duniyahindime.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4_%e0%a4%9b%e0%a5%8b%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%8b_%e0%a4%86%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a4%a8_8_%e0%a4%85%e0%a4%97%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4/

2 thoughts on “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान : इसरो : ISRO; Indian Space Research Organisation”

Leave a Comment