इंद्रधनुषी रंग प्रेम का
कुछ हीरें रांझों पर नहीं रीझती
उनकी नज़रें हीर को ढूंढ रही होती है,
लैलाएं मजनुओं पर ही नहीं छिड़कती जान
लैलाएं भी जान ले लेती हैं उनकी,
जूलियट को रोमियो की तलाश ही नहीं होती
जूलियट के लिए भटक रही होती है हर मेले में निगाहें
मिल जाए अगर हीर,लैला या जूलियट
तो जां निसार कर देती हैं ये .
ज़माने की ज़मीन पर लहलहाती आई है
ये प्यार की फसलें
बस, जिक्र नहीं होता इन प्रेम कहानियों का…
अपराध की तरह
या रोग की तरह की जाती है चर्चा!!!
प्रेम –
जिसकी जात नहीं होती
मजहब नहीं होता
आखिर उसका जेंडर क्यों होता है???
इश्क़ जानलेवा रोग है जहाँ
वहाँ एक और रंग कैसे हो स्वीकार
और फिर इसका एक रंग भी तो नहीं है न!
सतरंगी इंद्रधनुषी होता है ये
सचमुच छाते जैसा
धूप-घाम से ही नहीं
हारी-बीमारी में तीमारदारी
करने वाला भी!
कैसे न तने भौंहे,
जो मुट्ठी में रखे बैठी है
एक पूरी आबादी के सपनों को?
सपने जिद्द पर जब उतरते हैं
बंद सब मुट्ठियों को खोल कर
बिखर जाते हैं हवाओं में
फैल जाती खुशबू फिज़ाओं में,
तनी भृकुटियों को अंगूठा दिखाते
मन ही मन मुसकुराते!!!
प्यार फिर परवान चढ़ता है
परवाह एक-दूसरे की करते!
© संजू सदानीरा
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