राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी : National Girl Child Day 24 January

 

 

राष्ट्रीय बालिका दिवस : National Girl Child Day 24 January


हमारे देश को आज़ाद हुए एक लंबा अरसा हो चुका है फिर भी राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ रही है । हमारा देश भारत आज विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चुका है। वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रगति करते हुए हम चांद और सूरज तक पहुंच गए हैं। आज हमारे देश की प्रथम नागरिक (प्रेसीडेंट) एक महिला हैं। हर साल यहां हाईस्कूल और इंटर में लड़कियां टॉप करती आ रही हैं। यहां तक कि यूपीएससी जैसी प्रतियोगिताओं में भी लड़कियों ने अपना परचम लहराया है।

इन सब के बावजूद दुखद यह है कि आज भी इसी देश में कन्या भ्रूण हत्या हो रही है। दहेज की वज़ह से जन्म के समय से ही लड़कियों के विवाह की चिंता हावी हो जाती है। आज भी अधिकांशतः टॉपर लड़कियां विवाह के बाद अवैतनिक घरेलू कार्यों में झोंक दी जाती हैं। कभी पीरियड में उचित व्यवस्था न मिलने की वज़ह से तो कभी यौन उत्पीड़न के चलते लड़कियों को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है। इन सब के बावजूद जो पढ़-लिखकर किसी तरह अपना कॅरियर बना पाती हैं,उन्हें भी नौकरी के साथ घरेलू जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ उठाना पड़ता है।

अधिकतर लड़कियों को घर-परिवार से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का सामना करना पड़ता है। इसलिए लड़कियों को भेदभाव से मुक्ति दिलाने, समाज में जागरुकता लाने और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशेष दिवस मनाए जाते हैं,जिसमें से एक है राष्ट्रीय बालिका दिवस।

राष्ट्रीय बालिका दिवस-

राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को प्रतिवर्ष देश भर में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2008 में भारत सरकार के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी। इस अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित कर जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को खत्म करने, जेंडर गैप को कम करने और बालिकाओं के लिए स्वस्थ एवं सुरक्षित वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रयास किए जाते हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता,भाषण,निबंध प्रतियोगिताओं एवं नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से समाज को जागरुक करने का प्रयास किया जाता है। 

 

2023 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी जेंडर इक्वलिटी इंडेक्स के अनुसार भारत का स्थान 146 देशों में 127वां है। यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय बालिका दिवस की प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है,जो कि अत्यंत निराशाजनक है। ग़ौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस प्रतिवर्ष 11 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है।

 

24 जनवरी का ऐतिहासिक महत्त्व-

राष्ट्रीय बालिका दिवस प्रतिवर्ष 24 जनवरी को मनाया जाता है। इसके पीछे भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। इस दिन का ऐतिहासिक महत्त्व इस रूप में है कि 24 जनवरी को ही 1966 में देश को पहली महिला प्रधानमंत्री मिली थी। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला। इसके बाद 1980 से 31 अक्टूबर 1984 को हुई उनकी हत्या तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद पर बनी रहीं। इंदिरा गांधी को न सिर्फ़ भारत की पहली बल्कि अब तक के इतिहास में भारत की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है।


राष्ट्रीय बालिका दिवस की आवश्यकता-

किसी भी दिवस की आवश्यकता और प्रासंगिकता तब तक बनी रहती है,जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता। इसी क्रम में अगर हम राष्ट्रीय बालिका दिवस की आवश्यकता पर बात करें तो हमें कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों पर ग़ौर फरमाना होगा। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के जनगणना के पिछले (2011) रिपोर्ट के अनुसार बाल लिंगानुपात 919 है, जो कि स्वतंत्र भारत में अब तक की हुई जनगणना में सबसे कम है।

नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन्स राइट यानी एनसीपीसीआर की हालिया रिपोर्ट में भी बताया गया कि भारत में 6 से 14 साल की ज़्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज़्यादा समय अपने घर के छोटे बच्चों या भाई-बहनों को संभालने में देना पड़ता है। इसी तरह 6 से 10 साल की 25% लड़कियों को घरेलू कामों की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ता है,जबकि 10 से 13 साल की लगभग 50% लड़कियों को इन्हीं कारणों से स्कूल छोड़ना पड़ता है।

विश्व आर्थिक मंच की 2023 की रिपोर्ट,जो आर्थिक भागीदारी और अवसर,शिक्षा का अवसर,स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता और राजनीतिक सशक्तीकरण जैसे चार पैमाने पर आधारित है,के अनुसार भारत में जेंडर गैप ख़त्म करने और जेंडर इक्वैलिटी आने में वर्तमान प्रगति दर के अनुसार 131 वर्ष और लग जाएंगे।


नेशनल फैमिली एवं हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट-

नेशनल फैमिली एवं हेल्थ सर्वे की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 14 से 49 साल के बीच की 60% महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं,जबकि पुरुषों के इसी आयु वर्ग के पुरुषों में एनीमिया का प्रतिशत 8.1 है। बालक एवं बालिकाओं में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को प्रदर्शित करती एक और रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय ने हाल में “ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति” के नाम से प्रकाशित की है। यह 20 राज्यों के 6229 ग्रामीण परिवारों पर अध्ययन करके ज़ारी किया गया था।

इसमें पाया गया कि 36.8 प्रतिशत लड़कियों को घरेलू आमदनी में सहयोग करने और मजदूरी करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा,जबकि 21.1 प्रतिशत लड़कियों को घर का कामकाज और भाई-बहनों की देखभाल करने के लिए स्कूल छुड़वाया गया। इसी तरह प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ 30 लाख लड़कियों को पीरियड के दौरान उचित सुविधाएं न होने की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ता है।

 

लड़कियों के खिलाफ अपराध और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े-

एनसीआरबी के 2023 में ज़ारी रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में 1 लाख की आबादी पर महिला अपराध दर 66.4 फीसदी रिकॉर्ड की गई। 1 साल में अपराध की 4.45 लाख मामले दर्ज हुए,जो पिछली वर्ष की तुलना में 4% अधिक थे। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि इसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा 31.4 फ़ीसदी अपराध पति या ससुराल वालों ने किए थे। यह आंकड़े तब हैं जबकि आर्थिक सक्षमता और संबल न होने की वज़ह से ज़्यादातर महिलाएं अपने ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों को दर्ज़ भी नहीं करा पाती हैं।

 

चुनौतियां-

हमारा भारतीय समाज पितृसत्तात्मक अवधारणा पर केंद्रित है। यहां के अधिकतर हिस्सों में आज भी लड़की के जन्म पर खुशी के बजाय चिंता की लकीरें आ जाती हैं। कानून बनने के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या बदस्तूर ज़ारी है। जन्म लेने के पहले से ही जेंडर आधारित यह डिस्क्रिमिनेशन शुरू हो जाता है। बचपन से ही पोषण और शिक्षा के मामले में लड़कियों को दोयम दर्ज़ा दिया जाता है। अवैतनिक घरेलू कार्यों में छोटी-छोटी बच्चियों को बचपन से ही झोंक कर एक तरीके से ससुराल जाने की ट्रेनिंग शुरू कर दी जाती है।

कन्या को पराया धन और दान की वस्तु के तौर पर देखा जाता है, इसलिए उनके शिक्षा,स्वास्थ्य पर पैसे न खर्च कर उसे उनके दहेज के लिए जोड़ा जाता है। धार्मिक अंधविश्वासों ने जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को और भी गहरा किया है। कम उम्र में शादी, दहेज और कन्या विदाई जैसी कुप्रथाओं ने जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को और ज्यादा पोषित किया है। 

 

संभावनाएं-

हमारा समाज आज भी लड़कियों के लिए प्रगतिशील नहीं हुआ है। ऐसे में राष्ट्रीय बालिका दिवस जैसे महत्त्वपूर्ण अवसर इसके लिए एक मंच प्रदान कर सकते हैं। सरकार की तरफ से लिंगभेद पर कठोर कानून बनाकर और उस पर दृढ़ता से अमल कर के इस दिशा में कार्य किया जा सकता है। इसके अलावा विभिन्न जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को जेंडर डिस्क्रिमिनेशन ख़त्म करने के लिए प्रयास किया जाना आवश्यक है। अभिभावकों को यह समझना होगा कि  संविधान सभी जेंडर को एक समान समझता है और यह सार्वभौमिक मानवाधिकारों के अनुरूप भी है।

इसके अलावा पिताओं को चाहिए कि अपने बेटों को जेंडर सेंसिटिव बनाएं, जिससे वह आगे चलकर एक संवेदनशील इंसान बन सकें। राष्ट्रीय बालिका दिवस बालिकाओं के ख़िलाफ़ होने वाले भेदभाव को दूर करने का एक अच्छा अवसर साबित हो सकता है । सरकार और समाज दोनों को अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए, जिससे बालिकाओं को अपनी ऊर्जा अपने अधिकारों के लिए लड़ने के बजाय अपने व्यक्तित्व के विकास में खर्च करने के लिए मिले। हम सभी की सहभागिता से ही यह संभव है,इसलिए बालिकाओं के ख़िलाफ़ होने वाले भेदभाव को कम करके सही मायने में सभ्य समाज का निर्माण संभव हो सकेगा।


© प्रीति खरवार 

 

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