मीरा मगन भई हरि के गुण गाय पद की व्याख्या
मीरा मगन भई हरि के गुण गाय॥
सांप पिटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दिया जाय।
न्हाय धोय जब देखन लागी, सालिगराम गई पाय॥
जहर का प्याला राणा भेज्या, इम्रत दिया बनाय।
न्हाय धोय जब पीवन लागी, हो गई अमर अंचाय॥
सूली सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय॥
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पर बलि जाय ।।
प्रसंग
मीरा मगन भई हरि के गुण गाय पद प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवयित्री मीरांबाई की लेखनी से निःसृत है।
संदर्भ
इस पद में कृष्ण भक्त मीरां को ससुराल द्वारा दी गई प्रताड़ना एवं भक्ति स्वरूप प्रभु के साथ का चित्रण मार्मिकता के साथ किया गया है।
व्याख्या
मीरां अपनी अनन्य कृष्ण भक्ति में लीन रहती हैं। ससुराल वाले अपने राजसी ठाट बाट के बीच ऐसी साध्वी बहू को एक चुनौती और प्रतिष्ठा के प्रश्न की तरह देखते हैं। ऐसे में उनके दिवंगत पति के पिता और भाई आदि मीरा को भांति भांति से कष्ट देते हैं और उन्हें मारने की कोशिश करते हैं। इसी क्रम में जब उनके ससुर या देवर (राणा जी से अभिप्रेत यही निकलता है) ने उनके लिए महल के एक भृत्य के जरिए सांप का पिटारा तोहफ़े के शक्ल में भिजवाए तो मीरा ने उसे सहर्ष स्वीकार किया और सोचा कि नहा धोकर पिटारा खोल कर देखेंगी और बाद में पिटारा खोलने पर उसमें से सांप की जगह शालिग्राम निकलते हैं।
राणा जी ने दूसरी बार उनके लिए पेय के रूप में जहर का प्याला भिजवाया वह भी अमृत के रूप में परिवर्तित हो गया। मीरां ने उसे भी स्नान के उपरांत पिया और उसे पीकर अमर हो गई (विष निष्प्रभावी रहा)।
अगली बार राणा ने कांटो भरी सेज मीरां के सोने के लिए भिजवाई। साँझ होने के बाद जब मीरां उस पर लेटी तो वह काँटों की सेज ऐसी लागी मानो उस पर फूल बिछाए गए हैं!
मीरां कहती हैं कि उनके प्रभु ने हमेशा कष्टों के बीच उनकी सहायता की और उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को पार करने का काम किया। अपने प्रभु की इसी कृपा की कारण मीरां भजन कीर्तन में मगन रहती हैं। उनकी कृपा के कारण मीरां प्रभु श्री कृष्ण पर बलिहारी जाती हैं।
विशेष
1.परिवार से बाहर जाकर कुछ करने पर परिवार किस प्रकार से मार्ग में बाधा बनता है- पद में इसे भली भांति दिखाया गया है।
2.स्त्रियों का अपने पति के बाद जीवन ससुराली मर्दों की आंख में किस प्रकार से चुभता है मीरां ने इसका भी चित्रण किया है।
3.इस पद में कुछ चमत्कारपूर्ण घटनाओं का भी ज़िक्र है जो भक्ति काल के लगभग सभी कवियों के काव्य में आया है। ईश भक्ति में भगवत कृपा दर्शाने का यह कदाचित सबसे सरल और सफल माध्यम है।
4. “मस्त डोलती “ में बिम्ब और भाव अद्भुत है।
5.अंत्यानुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
6.भक्ति रस की उद्भावना हुई है।
7.प्रसाद गुण और पांचाली रीति है।
8.भाषा में ठेठ राजस्थानी का सौंदर्य विद्यमान है।
9.शैली मार्मिक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
इसी तरह मीराबाई के एक अन्य पद राणा जी थे जहर दियो महें जाणी पद की व्याख्या हेतु नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें…
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