प्रिय प्रथिराज नरेस जोग लिखि पद की व्याख्या
प्रिय प्रथिराज नरेस, जोग लिखि कग्गर दिन्नौ ।
लगुनि बरगि रचिं सरब,दिन द्वादस ससि लिन्नौ।।
सै अरु ग्यारह तीस साष संवत परमानह ।
जोवित्री कुल सुद्ध बरनि वर रष्बहु प्रानह ।।
दिष्यत दिष्ट उच्चरिय वर, इक पलक विलंब न करिय।
अलगार रयन दिन पंच महि, ज्यों रुकमिनि कन्हर बरिय ।।
प्रसंग
प्रस्तुत पद चंदबरदाई द्वारा रचित महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय से उद्धृत है।
संदर्भ
इस पद में पद्मावती पृथ्वीराज को संदेश भेज कर ले जाने की अपनी कामना व्यक्त करती हैं।
व्याख्या
पद्मावती अपने प्रिय के रूप में पृथ्वीराज को संबोधित करते हुए किसी और के साथ अपने विवाह होने की सूचना देते हुए पत्र लिखती हैं। यथायोग्य सभी समाचार लिखने के उपरांत अपनी इच्छा के विरुद्ध होने वाले विवाह से बचने व अपनी पत्नी बनाने की इच्छा व्यक्त करते हुए तोते के साथ पत्र भिजवाती है। पत्र में अपने विवाह का लग्न, अपनी राशि आदि सब विस्तार से उल्लेख करके वह बताती हैं कि उनका विवाह शक संवत 1130 ईस्वी उसी महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को किसी अन्य राजा के साथ होना निश्चित हुआ है। अगर पृथ्वीराज उसे शुद्ध क्षत्रिय कुल की अथवा अपने लिए योग्य कुल की कन्या मानते हैं तो विवाह पूर्व आकर उसकी रक्षा करें।
वह विनती करती है कि उसकी ओर समुचित दृष्टि से देखकर विचार कर एक पल का भी विलंब वे न करें। गुप्त रूप से 5 दिनों (वहां पहुंचने में लगने वाला कुल समय) के भीतर पहुंच कर ठीक उसी प्रकार उसका हरण कर लें, जैसे कृष्ण ने सबके बीच से रुक्मणी का हरण व वरण किया था।
विशेष
1.पद्मावती का पृथ्वीराज के प्रति अटूट आकर्षण दिखाया गया है।
2.तोते के माध्यम से प्रेम पत्र भेजना कथानक रूढ़ि है।
3.पृथ्वीराज की वीरता और सौंदर्य के समक्ष पद्मावती का आकर्षण, नाम रूप वर्णन सुनकर होने वाले कथानक रूढ़ि का पालन है।
4. कृष्ण-रुक्मिणी की पौराणिक कथा का उल्लेख किया गया है।
5.स्वयंवर, वरण और हरण क्रियाओं द्वारा तत्कालीन राज कन्याओं के विवाह का वर्णन हुआ है।
6. क्षत्रिय कुल की शुद्धता का वर्णन करना दरबारी काव्य की विशेषताओं में गिना जाता है।
7.प्रिय प्रथिराज में छेकानुप्रास अलंकार है, दृष्टांत और अन्त्यानुप्रास का सौंदर्य भी हैं।
8.भाषा अपभ्रंश मिश्रित राजस्थानी है।
9.शैली वर्णनात्मक है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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