कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो : Kabhunk haun yahi rahani rahaungo

तुलसीदास रचित “कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो” पद की व्याख्या : Kabhunk haun yahi rahani rahaungo

 

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो।

श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तैं, संत सुभाव गहौंगो।

जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो।

परहित निरत निरंतर, मन क्रम बचन नेम निबहौंगो।

परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौंगो।

बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौंगो।

परिहरि देहजनित चिंता दुख सुख समबुद्धि सहौंगो।

तुलसिदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौंगो।

प्रसंग-

प्रस्तुत कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो पद रामभक्ति शाखा के भक्त शिरोमणि और कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है और उनके मुक्तक काव्य संकलन ” विनय पत्रिका ” से उद्धृत है।

सन्दर्भ-

इस पद में गोस्वामी जी संत स्वभाव के व्यक्ति की पहचान और स्वयं के वैसा बनने की चाह व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या-

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो पद में तुलसीदास जी विनम्रतापूर्वक स्वयं को अपने गुरु जनों की तुलना में अत्यंत हीन मानते हुए उनके जैसे गुणों से युक्त होने की श्री राम से प्रार्थना करते हुए प्रश्नाकुल है कि क्या वे भी कभी अपने गुरु जनों की तरह संत स्वभाव से युक्त हो पाएंगे?

वे कहते हैं कि श्री रघुनाथ की कृपा से वे भी संत स्वभाव को धारण करेंगे।जितना मिलेगा,उतने में संतोष करेंगे कभी किसी से ज्यादा की आस नहीं रखेंगे।निरंतर पर हित में निरत रहेंगे अर्थात हमेशा दूसरों के कल्याण में संलग्न रहेंगे । मन,कर्म और वचन से इन नियमों का पालन करेंगे । कठोर वचन सुनकर,अति असहनीय,न सुनने योग्य कटु वचन सुनकर भी क्रोध एवं प्रतिकार की अग्नि में नहीं जलेंगे । मान बीत जाने (विगत मान होने )पर भी मन को शीतल रखेंगे और दूसरों के गुण बताएंगे, उनके दोषों पर चर्चा नहीं करेंगे।देहजनित (शरीर जन्म)चिंताओं को भूलकर सुख-दुख में समान रहेंगे । तुलसीदास जी अरज करते हैं कि प्रभु राम की कृपा से इस भांति वे अविचल रह कर हरि भक्ति ( राम भक्ति) की अपनी मनोकामना को पूर्ण करेंगे।

विशेष-

1. इस पद के माध्यम से उन्होंने संत स्वभाव व समदर्शी व्यक्ति की पहचान बताई है।

2.उन्होंने स्वयं को भक्ति-भाव से परिपूर्ण करने के मनोरथ को व्यक्त किया है ।

3.भाषा– ब्रजभाषा का स्वाभाविक सौंदर्य द्रष्टव्य है।

4.शैली वर्णनात्मक है।शांत रस की उद्भावना हुई है।

© डॉ. संजू सदानीरा

 

“ऐसो को उदार जग माहीं” पद की व्याख्या : Aeso ko udaar jag maahi pad ki vyakhya

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

1 thought on “कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो : Kabhunk haun yahi rahani rahaungo”

Leave a Comment